Fake EWS ceritificate Case: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक बड़ा घोटाला सामने आया है जिसमें तीन छात्राओं ने फर्जी EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) प्रमाणपत्र का इस्तेमाल कर NEET-UG परीक्षा के जरिए मेडिकल कॉलेज में MBBS की सीट हासिल की थी। जांच में दस्तावेज फर्जी पाए जाने के बाद इन छात्राओं का दाखिला रद्द कर दिया गया है। इस मामले ने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है।
कौन हैं ये छात्राएं?
फर्जीवाड़े में शामिल तीन छात्राएं बिलासपुर की रहने वाली हैं:
- सुहानी सिंह, पिता सुधीर कुमार सिंह, सीपत रोड, लिंगियाडीह।
- श्रेयांशी गुप्ता, पिता सुनील गुप्ता, सरकंडा। ये स्थानीय बीजेपी नेता सतीश गुप्ता की भतीजी हैं।
- भव्या मिश्रा, पिता सूरज कुमार मिश्रा, पटवारी गली, सरकंडा।
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
इन तीनों छात्राओं ने NEET-UG परीक्षा पास करने के बाद EWS कोटे के तहत मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। EWS कोटा सामान्य वर्ग के उन छात्रों के लिए है, जिनकी सालाना पारिवारिक आय 8 लाख रुपये से कम हो। इसके लिए तहसील कार्यालय से जारी वैध प्रमाणपत्र जरूरी होता है। लेकिन जांच में पता चला कि इन छात्राओं ने जो EWS प्रमाणपत्र जमा किए, वे नकली थे। इन प्रमाणपत्रों पर हस्ताक्षर और सील फर्जी पाए गए। बिलासपुर तहसील कार्यालय ने साफ किया कि इनके नाम से कोई आवेदन या प्रमाणपत्र कभी दर्ज ही नहीं हुआ।
जांच में क्या सामने आया?
मेडिकल शिक्षा संचालनालय (DME) ने दाखिला प्रक्रिया के दौरान सभी दस्तावेजों की जांच के लिए तहसील कार्यालय को भेजा। तहसीलदार गरिमा ठाकुर ने बताया कि इन छात्राओं के प्रमाणपत्रों में लगे हस्ताक्षर और सील पूरी तरह फर्जी थे। जांच के बाद यह भी पता चला कि जिस समय ये प्रमाणपत्र कथित तौर पर जारी किए गए, उस दौरान केवल एक ही तहसीलदार कार्यरत थीं, लेकिन हस्ताक्षर अलग-अलग थे। इसकी विस्तृत रिपोर्ट कलेक्टर संजय अग्रवाल को सौंपी गई।
छात्राओं को दिया गया था मौका
DME ने तीनों छात्राओं को 8 सितंबर तक वैध प्रमाणपत्र और स्पष्टीकरण देने का मौका दिया था। लेकिन वे कोई सही दस्तावेज पेश नहीं कर सकीं। नतीजतन, नियमों के तहत उनका दाखिला रद्द कर दिया गया। अब ये छात्राएं इस साल किसी भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं ले पाएंगी।
क्या कहते हैं अधिकारी?
कलेक्टर संजय अग्रवाल ने कहा कि छात्राओं ने EWS प्रमाणपत्र नियमों के मुताबिक नहीं बनवाए। जांच में फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद सख्त कार्रवाई की गई है। एसडीएम मनीष साहू ने पुष्टि की कि तहसील कार्यालय में इन छात्राओं के नाम से कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह एक गंभीर मामला है और आगे की जांच जारी है। तहसील कार्यालय ने यह भी बताया कि जब छात्राओं के दिए पते और मोबाइल नंबर की जांच की गई तो वहां कोई जानकारी नहीं मिली। स्थानीय लोगों ने भी इनके बारे में कुछ नहीं बताया।
परिजनों का दावा और क्लर्क पर कार्रवाई
छात्राओं के परिजनों का कहना है कि उन्होंने ऑनलाइन आवेदन किया था लेकिन उनके दस्तावेज तहसील कार्यालय से गायब हो गए। उनका आरोप है कि फर्जीवाड़ा कार्यालय के अंदर हुआ। इस बीच तहसील कार्यालय के क्लर्क प्रहलाद सिंह नेताम को नोटिस जारी कर उनके प्रभार से हटा दिया गया है।
EWS कोटा और NEET प्रक्रिया
NEET-UG परीक्षा के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिला होता है। इसमें रैंक और अंकों के आधार पर काउंसलिंग के जरिए सीटें दी जाती हैं। EWS कोटे के तहत सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को 10% आरक्षण मिलता है। इस कोटे का लाभ उठाने के लिए वैध प्रमाणपत्र जरूरी है, जो तहसील कार्यालय से सख्त नियमों के तहत जारी होता है। लेकिन इस मामले में छात्राओं ने फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया।
आगे क्या होगा?
यह मामला अब प्रशासनिक और कानूनी जांच के दायरे में है। तहसील और मेडिकल शिक्षा विभाग इस फर्जीवाड़े की तह तक जाने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी जांच का विषय है कि फर्जी प्रमाणपत्र कहां से और कैसे बनाए गए। इस घोटाले ने मेडिकल दाखिला प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।