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डॉ. दिनेश मिश्र ने छात्रों के साथ देखा चंद्रग्रहण, बताया – यह राहू-केतू का निगलना नहीं बल्कि खगोलीय घटना है
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डॉ. दिनेश मिश्र ने छात्रों के साथ देखा चंद्रग्रहण, बताया – यह राहू-केतू का निगलना नहीं बल्कि खगोलीय घटना है

Lens News
Last updated: September 9, 2025 4:44 am
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Dr Dinesh Mishra
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रायपुर। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में चंद्रग्रहण के मौके पर रविवार को खगोल विज्ञान के छात्रों को टेलीस्कोप से चंद्रग्रहण की पूरी प्रक्रिया को दिखाया गया। इस दौरान अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र चंद्रग्रहण में छात्रों से मिल कर उनसे चंद्रग्रहण जैसी खगोलीय घटना पर चर्चा की। टेलीस्कोप, ग्रहण पर आधारित खुद की लिखी किताबें दी और छात्रों से संवाद किया।

विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ. एन के चक्रधारी से मिलकर उस जगह पहुंचे जहां टेलीस्कोप से ग्रहण देखने की तैयारियां थी। साथ ही बरसात के मौसम को देखते हुए ग्रहण को स्क्रीन पर भी देखा जा रहा था। डॉ. एन के चक्रधारी ने ग्रहण की खगोलीय प्रक्रिया को छात्रों को समझाया।

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना है। पर शुरुआत में यह माना जा रहा था कि चंद्रग्रहण राहू-केतू के चंद्रमा को निगलने से होता है। इससे -धीरे विभिन्न अंधविश्वास व मान्यताएं जुड़ती चली गईं। बाद में विज्ञान ने यह सिद्ध किया कि चंद्रग्रहण पृथ्वी की छाया के कारण होता है।

डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया कि जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है, तब उसका एक किनारा जिस पर छाया पड़ने लगती है, काला होना शुरू हो जाता है। इसे स्पर्श कहते हैं। जब पूरा चंद्रमा छाया में आ जाता है तब पूर्णग्रहण हो जाता है।

डॉ. मिश्र ने बताया कि कुछ लोगों ने इस चंद्र ग्रहण के रंग को लेकर इसे खूनी चंद्र ग्रहण कहा है और इसके दुष्प्रभाव की आशंका जाहिर की है। पर यह सब आशंकाएं और भविष्यवाणियां सही नहीं हैं।

उन्होंने आगे कहा कि वास्तव में चंद्र ग्रहण में पूर्णता के दौरान चंद्रमा का लाल रंग पृथ्वी के किनारे के चारों ओर वायुमंडल से होकर गुजरने वाले सूर्य के प्रकाश के कारण होता है।

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा चंद्रग्रहण का कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इसे लेकर तरह-तरह के भ्रम व अंधविश्वास हैं। लेकिन, लोगों को इन अंधविश्वासों में नहीं पड़ना चाहिए। ग्रहण को देखा जा सकता है और वैज्ञानिक इसका अध्ययन भी करते हैं।

भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पहले 499 ईस्वी में यह सिद्ध कर दिया था कि चन्द्रग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है जो कि चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने से होती है। उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय के गोलाध्याय में इस बात का वर्णन किया है। इसके बाद भी चन्द्रग्रहण की प्रक्रिया को लेकर विभिन्न भ्रम और अंधविश्वास कायम है।

डॉ. मिश्र ने कहा कि यह एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है। सभी नागरिकों को इसे बिना किसी डर या संशय के देखना चाहिए। चंद्रग्रहण देखना पूर्णत: सुरक्षित है।

डॉ. मिश्र ने कहा जब चंद्रग्रहण होने वाला होता है तब विभिन्न भविष्यवाणियां सामने आने लगती हैं। इससे आम लोग संशय में पड़ जाते हैं। जबकि, चंद्रग्रहण में खाने-पीने, बाहर निकलने की बंदिशों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ग्रहण से खाद्य वस्तुएं अशुद्ध नहीं होती तथा उनका सेवन करना उतना ही सुरक्षित है जितना किसी सामान्य दिन या रात में भोजन करना।

उन्होंने आगे बताया कि इस धारणा का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए चंद्रग्रहण हानिकारक होता है। और ग्रहण की वजह से स्नान करना कोई जरूरी नहीं है। अर्थात इस प्रकार की आवश्यकता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ग्रहण का अलग-अलग व्यक्तियों पर भिन्न प्रभाव पड़ने की मान्यता भी काल्पनिक है। यह सब बातें केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी पुस्तिका में भी दर्शायी गयी है।

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