Bhupen Hazarika: आज 8 सितंबर 2025 को देश के जाने माने गीतकार, संगीतकार और गायक भारत रत्न भूपेन हजारिका की जयंती असम में मनाई जा रही है। इस वर्ष डॉ. भूपेन हजारिका की 100वीं जन्म जयंती है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भावपूर्ण लेख के माध्यम से उनकी सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक योगदान को याद किया। अपने आधिकारिक ब्लॉग पर प्रकाशित ‘भूपेन दा को श्रद्धांजलि’ शीर्षक वाले इस लेख में पीएम ने भूपेन दा की जीवनी, उनके संगीत की यात्रा और सामाजिक योगदान को सरल शब्दों में बयां किया है।
उनकी जयंती पर असम में उत्साह का माहौल है, जहां साल भर चलने वाला उनका जन्म शताब्दी समारोह शुरू हुआ है। रविवार को तेजपुर सहित राज्य के 32 जिलों में लगभग 50,000 लोगों ने उनकी कविता “मृत्यु जिनार गान, एटा गान सेस होल” का सामूहिक पाठ किया।
भूपेन दा का संगीत उनके बचपन की यादों से गहराई से जुड़ा था। उनकी मां शांतिप्रिया की लोरियों ने उन्हें संगीत की पहली सीख दी। खास तौर पर “हूम हूम” की धुन, जो उनकी मां गुनगुनाती थीं, ने उनके गीत “दिल हूम हूम करे” को एक अनोखा दर्द और भावना दी।
यह गीत फिल्म रुदाली (1993) का हिस्सा है, जिसमें डिंपल कपाड़िया के किरदार की भावनाओं को भूपेन दा ने अपनी रचना से जीवंत किया। उनकी आत्मकथा ” मई एति यायाबार” में वे बताते हैं कि ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बिताए पल और मां की लोरियां उनके संगीत की आत्मा थीं।
असम सरकार और कई संगठनों ने भूपेन हजारिका को श्रद्धांजलि देने के लिए विशेष आयोजन किए। रविवार को 65 मिनट की डॉक्यूमेंट्री “भूपेन दा अनकट” रिलीज हुई, जिसे बोबीता शर्मा ने निर्देशित किया है। यह फिल्म उनके जीवन, संगीत और सामाजिक योगदान को खूबसूरती से दर्शाती है।
भूपेन दा ने असमिया फिल्म “इंद्रमालती” में 12 साल की उम्र में काम किया था और 10 साल की उम्र में अपना पहला गाना लिखा। उनके गीत जैसे “समय ओ धीरे चलो”, “वैष्णव जन” और “मानुष मानुषेर जन्ये” आज भी सामाजिक एकता और मानवीय करुणा का संदेश देते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूपेन हजारिका की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि भूपेन दा भारत की सबसे असाधारण आवाजों में से एक थे, जिनके गीतों में करुणा, सामाजिक न्याय और एकता की गूंज है।
पीएम ने उनके जन्म शताब्दी समारोह की शुरुआत को भारतीय संस्कृति और संगीत प्रेमियों के लिए खास बताया। भूपेन दा की विरासत न केवल असम, बल्कि पूरे भारत में संगीत और सामाजिक चेतना का प्रतीक बनी रहेगी।