देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल ही में छत्तीसगढ़ में पार्टी की अंदरूनी खींचतान जिस रूप में सामने आई है, उसने पार्टी की एक पुरानी कमजोरी को उजागर किया है। छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता चरणदास महंत का एक बयान खूब वायरल है, जिसमें वह पार्टी के सभी नेताओं और पार्टी के जिलाध्यक्षों को यह नसीहत देते नजर आ रहे हैं कि वे अपने ‘चमचों’ को संभाल कर रखें।
दरअसल कुछ दिनों पूर्व ही छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे पार्टी के एक वरिष्ठ नेता रवींद्र चौबे ने यह कहते हुए हलचल पैदा कर दी थी कि प्रदेश में पार्टी की कमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि भाजपा से लड़ने का दम उन्हीं में है। काफी विवाद होने पर चौबे ने तो उस बयान से कदम खींच लिए, लेकिन इसने पार्टी की खींचतान को सामने ला दिया।
इसे लेकर पार्टी की बैठक में भी काफी विवाद हुआ और फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के साथ खड़े महंत ने कहा कि नेताओं को अपने ‘चमचों’ को संभालकर रखना चाहिए, क्योंकि अक्सर उन्हीं के कारण अनावश्यक बयानबाजी होती है! उनके इस बयान को व्यक्तिगत भी माना जाए, तब भी यह नहीं भूलना चाहिए कि महंत न केवल पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, वह विधानसभा अध्यक्ष, यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और अभी विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं।
महंत ने संभव है कि किसी का अपमान करने के लिहाज से ऐसा न कहा हो, लेकिन आम कार्यकर्ताओं को ‘चमचा’ कहना अशोभनीय ही नहीं, बल्कि सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार के लिहाज से भी उचित नहीं है। कोई भी राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं से ही बनता है और ऐसे बयान उसे हतोत्साहित ही करते हैं। सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस के भीतर पनपने वाली इस प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार कौन है? आखिर क्यों नेता कार्यकर्ताओं से पार्टी की विचारधारा और सिद्धांतों के आधार पर नहीं व्यक्तिगत निष्ठा और वफादारी के आधार पर जुड़ना चाहते हैं?
कांग्रेस पार्टी अपने 140 साल के इतिहास की दुहाई देती है, तो यह पार्टी ऐसे ही नहीं बनी थी, इसे गांधी, नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने गढ़ा था। कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की कोशिश करते लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं से ही नहीं, बल्कि आम लोगों से किसानों से, मजदूरों से, मैकेनिकों से जिस सह्रदतया और उदारता से मिलते हैं, उन्हें सम्मान देते हैं, उस पर गौर करने की जरूरत है। कहने की जरूरत नहीं कि चरणदास महंत सहित और उन जैसे तमाम नेताओं को अपने नेता राहुल से सीख लेने की जरूरत है।