नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
भारत अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया के अर्ध-विनियमित बाजारों में दवा निर्यात को बढ़ावा देने पर विचार कर रहा हैं।
अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रायटर्स को बताया है कि भारतीय औषधि निर्यात संवर्धन परिषद भी व्यापार घाटे को पाटने के लिए चीन को तैयार माल की बिक्री को बढ़ावा देने की योजना बना रही है। भारतीय उद्योग अपने कच्चे माल और सक्रिय औषधि अवयवों का 60 फीसदी से अधिक चीन से आयात करता है।
नहीं भूलना चाहिए भारतीय दवा निर्यात को वर्तमान में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के 50 फीसदी तक के टैरिफ से छूट प्राप्त है, लेकिन दोनों देशों के बीच बढ़ती अनिश्चितता और तनाव ने उद्योग को सतर्क रखा है।फार्मेक्सिल के चेयरमैन नमित जोशी ने अमेरिकी टैरिफ का जिक्र करते हुए कहा, “यह हमारे लिए चिंता का विषय है।”
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा बाज़ार है और भारत के दवा निर्यात में एक तिहाई से थोड़ा ज़्यादा का योगदान देता है, जिसमें मुख्य रूप से लोकप्रिय दवाओं के सस्ते जेनेरिक संस्करण शामिल हैं। वित्त वर्ष 2025 में अमेरिका को निर्यात 20 फीसदी बढ़कर लगभग 10.5 अरब डॉलर हो जाएगा।
फार्मेक्सिल के उपाध्यक्ष भाविन मेहता ने एक सम्मेलन के अवसर पर कहा, “मुद्दा यह है कि मध्यम और लघु उद्यम तथा बड़ी कंपनियां किस प्रकार एक साथ आ सकती हैं और उन (अर्ध-विनियमित) बाजारों पर काम कर सकती हैं।”
मेहता ने कहा कि व्यापार मंडल अगले सप्ताह तक सरकार को अपनी संबंधित योजना सौंपने की योजना बना रहा है।इस सप्ताह के आरंभ में समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दो उद्योग सूत्रों का हवाला देते हुए रूस, नीदरलैंड और ब्राजील को दवा निर्यात बढ़ाने की भारत की योजना के बारे में रिपोर्ट दी थी।
मार्च 2025 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में भारत ने चीन के साथ 99.2 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा दर्ज किया , जो इलेक्ट्रॉनिक सामान और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के आयात में वृद्धि के कारण हुआ।फार्मेक्सिल के जोशी ने गुरुवार को कहा, “यदि चीन को निर्यात करके 20% व्यापार घाटे की भरपाई हो जाती है, तो मुझे लगता है कि हम चीन से 6 बिलियन डॉलर कमा सकते हैं।”
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