नई दिल्ली। निजी स्वास्थ्य और जीवन बीमा पॉलिसियों को कर मुक्त कर दिया गया है। पहले इस पर 18 फीसदी GST लगता था। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद बाद यह फैसला लिया गया। जिसे ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्प्लाइज एसोसिएशन (AIIEA) ने अपनी जीत बताया है। AIIEA का कहना है कि स्वास्थ्य और जीवन बीमा पॉलिसियों को कर मुक्त करने की मांग दशकों से की जा रही थी।
एआईआईईए के राष्ट्रीय सहसचिव धर्मराज महापात्र ने इस अभियान के लिए किए गए अथक प्रयासों की सराहना की और इसे आम लोगों के लिए राहत देने वाला कदम बताया।
जीएसटी लागू होने से पहले, जीवन बीमा प्रीमियम पर सेवा कर 2004-05 में शुरू किया गया था, जिसे बाद में जीएसटी ने बदल दिया। एआईआईईए ने मई 2004 में लगभग 30 लाख हस्ताक्षर एकत्र कर इस कर के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया।
संगठन ने 29 मई 2014 और 22 जनवरी 2016 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर बीमा प्रीमियम से जीएसटी हटाने की मांग की। इस दौरान, संगठन की इकाइयों ने 187 सांसदों से मुलाकात कर समर्थन मांगा।
जनवरी-फरवरी 2016 में एआईआईईए की उत्तरी इकाई ने लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 240 सांसदों से संपर्क कर बीमा पॉलिसियों पर कर हटाने के लिए “EEE” नोट प्रस्तुत किया। अगस्त 2017 में, संगठन ने देशभर में 45.23 लाख पॉलिसीधारकों के हस्ताक्षर एकत्र किए और इन्हें 4 सितंबर 2017 को वित्त मंत्री को सौंपा।
धर्मराज महापात्र ने बताया कि 11 जुलाई 2024 को लोकसभा अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिखकर व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग की गई, जिसका जवाब देते हुए उन्होंने समर्थन का आश्वासन दिया। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी वित्त मंत्री को पत्र लिखकर इस मांग का समर्थन किया।
जून-जुलाई 2024 में एआईआईईए की इकाइयों ने 400 से अधिक सांसदों से मुलाकात कर बीमा प्रीमियम पर जीएसटी को जीवन की अनिश्चितताओं पर कर लगाने के समान बताया। भारतीय ट्रेड यूनियन इतिहास में शायद ही कभी किसी एक मुद्दे पर इतने सांसदों का समर्थन जुटाया गया हो।
इसके बाद जीएसटी परिषद ने इस मुद्दे पर विचार के लिए उप-समिति बनाई और सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों से मुलाकात की गई। संगठन ने इस जीत को देश की जनता को समर्पित किया। इससे पहले निजीकरण के खिलाफ 1.5 करोड़ हस्ताक्षर जुटाने की उपलब्धि के बाद यह एआईआईईए की एक और ऐतिहासिक सफलता है।
एआईआईईए ने इस अभियान को सामाजिक न्याय और कमजोर वर्गों के हितों के लिए चलाया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी सभी नागरिकों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने को सरकार का दायित्व माना है। लेकिन वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण को बढ़ावा देने और बीमा प्रीमियम पर कर लगाने जैसे कदम इस दायित्व के विपरीत हैं। एआईआईईए ने इसी सिद्धांत के आधार पर यह अभियान चलाया और इसे ऐतिहासिक जीत तक पहुंचाया।