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लेंस संपादकीय

जीएसटी 2.0: आखिरकार करना पड़ा बदलाव

Editorial Board
Last updated: September 4, 2025 8:46 pm
Editorial Board
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GST 2.0
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जीएसटी काउंसिल की 56 वीं बैठक में सर्वसम्मति से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों में बदलाव के फैसले को बड़ी राहत के तौर पर देखा जा सकता है। इस बदलाव में 12 फीसदी और 28 फीसदी की दरों को समाप्त कर दिया गया है और अब व्यापक रूप से दो दरें होंगी, पांच फीसदी और 18 फीसदी। दूध, पनीर और व्‍यक्तिगत बीमा को कर मुक्‍त कर दिया गया है।

इसके अलावा विलासिता की चुनिंदा वस्तुओं और तमाखू, सिगरेट और गुटखा जैसी नशीली वस्तुओं के लिए 40 फीसदी कर की नई व्यवस्था की गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में जीएसटी में बदलाव किए जाने की घोषणा की थी और जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जानकारी दी है कि नई दरें 22 सितंबर से लागू हो जाएंगी।

जीएसटी में इस बदलाव को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर 50 फीसदी टैरिफ से उत्पन्न परिस्थितियों से जोड़कर देखा जा रहा है, और काफी हद तक यह सही भी है, क्योंकि इससे भारतीय उद्योगों खासतौर से एमएसएमई को नई ताकत मिलेगी। लेकिन जीएसटी में इस बदलाव के लिए लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को भी श्रेय दिया जाना चाहिए, जिन्होंने पहली जुलाई, 2017 को लागू जीएसटी की विसंगतियों का विरोध करते हुए इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ करार दिया था!

दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी ने जीएसटी को लागू किए जाने के लिए बुलाए गए संसद के संयुक्त विशेष सत्र को संबोधित करते हुए इसकी तुलना सरदार पटेल द्वारा पांच सौ से अधिक रियासतों के भारत में विलय जैसी घटना से करते हुए जीएसटी को आर्थिक एकीकरण करार दिया था।

मोदी ने कहा था कि यह संघीय ढांचे की नई व्यवस्था है। हालांकि दूसरी ओर पिछले आठ सालों से खासतौर से गैर भाजपा शासित राज्य जीएसटी की खामियों और अपने हिस्से के बकाए को लेकर असंतोष जताते रहे हैं। कारोबारी हलकों में भी जीएसटी को लेकर शिकायतें और अधिकारियों द्वारा की जाने वाली मनमानी की खबरें आती रही हैं।

छत्तीसगढ़ के एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल ने तो हाल ही में वित्त मंत्री से मुलाकात कर अधिकारियों की मनमानी की शिकायतें की थीं। दरअसल जीएसटी को लेकर जब मंथन चल रहा था, तभी से इसकी दरों को लेकर विवाद था। भारत में जीएसटी के वास्तुकार माने जाने वाले 13 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष विजय केलकर ने अनेक पश्चिमी देशों की तर्ज पर जीएसटी की एक दर रखने की वकालत की थी।

राहुल गांधी भी लगातार 18 फीसदी की एक दर की मांग कर रहे थे। कोरोना काल को छोड़ कर पिछले आठ सालों में जीएसटी को लेकर चौतरफा असंतोष सामने आता रहा है। और अब मोदी सरकार आठ साल बाद ही सही, दो दरों के लिए राजी हुई है।

इस बदलाव से 12 फीसदी कर वाली लगभग 99 फीसदी वस्तुएं और सेवाएं पांच फीसदी के दायरे में आई गई हैं और इसी तरह 28 फीसदी की दरें वाली 90 फीसदी वस्तुएं और सेवाएं 18 फीसदी कर के दायरे में आ गई हैं, जिससे बड़ी आबादी को लाभ होगा।

यह कदम अपने आपमें इस बात की स्वीकारोक्ति है कि आठ साल पहले लागू की गई जीएसटी व्यवस्था में भारी खामियां थीं। अब यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि नौकरशाही के शिकंजे में जीएसटी दरों में किए गए बदलाव न उलझें और इनका सही लाभ उपभोक्तओं और कारोबारियों को मिल सके।

यह भी देखें : उत्तर भारत में बाढ़ से तबाहीः दूरगामी नीतियों की जरूरत

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