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लेंस संपादकीय

उत्तर भारत में बाढ़ से तबाहीः दूरगामी नीतियों की जरूरत

Editorial Board
Editorial Board
Published: September 3, 2025 9:22 PM
Last updated: September 3, 2025 9:22 PM
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उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा पिछले कुछ दिनों से भीषण बारिश और बाढ़ से प्रभावित है, जहां तुरंत बड़ी राहत की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण बारिश के मौसम में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं के कारण तबाही देखते आए हैं।

इन पहाड़ी राज्यों में प्रकृति की भयावह तबाही की कीमत पर हो रहे विकास का असर साल दर साल देखा जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से खासतौर से पंजाब और दिल्ली-एनसीआर में बाढ़ की वजह से जैसे हालात बन गए हैं, वह पूरे तंत्र की चौतरफा नाकामियों को भी उजागर कर रहे हैं।

पंजाब में दशकों बाद ऐसी बाढ़ आई है, जिसकी वजह से राज्य के सभी 23 जिलों को राज्य सरकार ने बाढ़ पीड़ित घोषित कर दिया है। सतलुज, राबी और ब्यास सहित राज्य की सभी प्रमुख नदियां उफन रही हैं। पंजाब के बड़े हिस्से के लिए जीवनरेखा का काम करने वाले भाखड़ा नंगल बांध में पिछले दो दिनों के दौरान पानी खतरे के निशान से दो फीट नीचे 1678 फीट तक पहुंच गया है, वहीं एक अन्य प्रमुख पोंग बांध में पानी खतरे के निशान से तीन फीट ऊपर 1393 फीट तक पहुंच गया है।

पंजाब में 3.75 लाख एकड़ की फसल बाढ़ के पानी में डूब गई है। यह हालत तब है, जब थोड़े दिनों बाद ही फसल कटाई होनी है। पंजाब की तीन करोड़ में से एक चौथाई आबादी खेती पर निर्भर है और इसका मतलब है कि भारी बारिश और बाढ़ ने लाखों परिवारों के लिए आजीविका का संकट पैदा कर दिया है।

ध्यान रहे, फसल के साथ बहुत से मवेशी भी बाढ़ के पानी में बह गए हैं। पहले ही खेती के संकट से जूझ रहे पंजाब पर आई इस आपदा से ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। यही हाल दिल्ली-एनसीआर का है, जिसका संकट अलग तरह का है।

दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ बरसों के दौरान देखा गया है कि थोड़ी-सी बारिश में ही वहां भारी जाम लग जाता है और जनजीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है, लेकिन अभी पिछले कुछ दिनों की बारिश ने जैसी तबाही मचाई है, वह दिखा रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की व्यवस्था बेतरतीब और मनमाने तरीके से हो रहे निर्माण के कारण कैसे चरमराती जा रही है।

दिल्ली से सटे नोएडा और गुरुग्राम जैसे देश के आईटी हब के रूप में मशहूर शहरों को यों तो आर्थिक तरक्की के मामले में यूरोपीय या अमेरिकी शहरों के समकक्ष माना जाता है, लेकिन ऐसे सारे दावे कुछ घंटों की बारिश में बह गए। ऐसे हालात के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिसकी वजह से पिछले कुछ वर्षों में चरम मौसम की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।

लेकिन इसके आलावा नौकरशाही की जड़ता, शहर नियोजन की खामियां और मनमाने और बेतरतीब तरीके से हो रहे निर्माण भी बड़ी वजहें हैं। दिल्ली-एनसीआर में एक ओर तो जहां बारिश और बाढ़ के पानी के निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से घंटों जाम लग जाता है, वहीं ऐसे पानी को संचयित करने की व्यवस्था नहीं होने से गर्मियों में इन्हीं इलाकों में गंभीर पेयजल संकट पैदा हो जाता है।

बीते कुछ वर्षों में खासतौर से राजधानी दिल्ली का कायाकल्प कर दिया गया है, जिसके चलते मोदी सरकार की बहुप्रचारित सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत अनेक अंडरपास बनाए गए हैं, लेकिन हालत यह है कि वहां बारिश का पानी भर गया है! हमने कुछ दिनों पूर्व यहां बस्तर की बारिश और बाढ़ से हुई तबाही के बारे में भी लिखा था।

बस्तर से पंजाब तक बारिश और बाढ़ के हालात बता रहे हैं कि हमारी विकास की पटकथा में ऐसी आपदाओं को लेकर दूरगामी नीतियां कहीं नजर नहीं आ रही हैं। खासतौर से पंजाब जैसे समृद्ध माने जाने वाले राज्य की स्थिति राष्ट्रीय संकट की ओर इशारा कर रही है, जहां हालत बदतर होते जा रहे हैं। क्या इस आसन्न संकट की चेतावनी हम सुन रहे हैं?

यह भी देखें: बारिश और बाढ़ से बदहाल बस्तर

TAGGED:Editorialfloodheavy rainNorth India
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