रायपुर। मध्य भारत के धार्मिक महत्व वाले रामगढ़ की पहाड़ी में दरारें पड़ने लगी हैं। यह वही पहाड़ी है जिसे न केवल आदिवासी आस्था और सरगुजा का धार्मिक केंद्र माना जाता है, बल्कि पुरातात्विक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अहम है। यह वही पहाड़ी है जिसे राम व सीता का निवास भी माना जाता है। इसी पहाड़ी में कालीदास ने मेघदूत की रचना की थी।
इस पहाड़ी की इन दिनों राजनीतिक गलियारे में चर्चा तेज है। पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को रामगढ़ की पहाड़ी को लेकर एक पत्र लिखा है। टीएस सिंह देव ने सरगुजा केे रामगढ़ पहाड़ी के संरक्षण को लेकर पत्र लिखा है।
स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि खनन की वजह से पहाड़ी में दरारें पड़ रही हैं। इसका असर ऐतिहासिक महत्व वाले राम सीता मंदिर पर भी पड़ रहा है।
मंगलवार को सिंह देव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में लगाया कि रामगढ़ पहाड़ी का धार्मिक महत्व है और खनन गतिविधियों के कारण पहाड़ी और मंदिर में दरारें आ रही हैं। टीएस सिंह देव ने कहा कि मुख्यमंत्री को 6 पन्नों का तथ्यात्मक पत्र लिखकर उन्होंने सरगुजा की धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर रामगढ़ पर्वत को बचाने की गुहार लगाई है।
पूर्व उप मुख्यमंत्री ने कहा कि परसा-केंते कोल ब्लॉक एक्सटेंशन की खुदाई से रामगढ़ की पहाड़ी इस धरोहर पर संकट मंडरा रहा है। श्रीराम के वनवास काल से जुड़ा यह महत्वपूर्ण स्थल है और इसे हर हाल में बचाना जरूरी है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने कहा कि हाल ही में वन मंडला अधिकारी (DFO) ने परसा क्षेत्र में खनन प्रक्रिया की अनुमति देने वाला एक पत्र जारी किया। परसा क्षेत्र को लेकर दो NOC जारी की है, जो गलत जानकारी देकर जारी की गई है।
सिंहदेव ने डीएफओ की रिपोर्ट में उल्लेखित निर्देशांकों पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, ‘NOC में जानकारी दी गई है कि पहाड़ी और मंदिर 11 किमी दूर है लेकिन अगर निर्देशांकों को देखें तो दूरी 10 किमी से कम है। ऐसे में साफ है कि NOC देने के लिए गलत जानकारी दी गई है।
उन्होंने कहा कि लोगों ने चिंता व्यक्त की है कि यदि खनन प्रक्रिया आगे बढ़ी, तो यह धार्मिक स्थल को और अधिक नुकसान पहुंचेगा। सिंहदेव ने आगे बताया कि कांग्रेस शासन के दौरान विधानसभा में खनन के आगे विस्तार को रोकने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
इस मुद्दे को एनजीटी के समक्ष उठाया गया था और ट्रिब्यूनल ने वन्यजीव संस्थान भारत के समक्ष जाने का निर्देश दिया। इसके अलावा इसे ‘नो गो क्षेत्र’ घोषित करने की सिफारिश भी की थी। सिंहदेव ने कहा कि रामगढ़ पहाड़ी के संरक्षण के लिए एक समिति का गठन किया गया है।
टीएस ने सीएम को जो पत्र लिखा कि मैं यह पत्र गहन व्यथा के साथ लिख रहा हूं, क्योंकि 26 जून 2025 को डीएफओ ने केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक के संबंध में प्रस्तुत स्थल निरीक्षण प्रतिवेदन में 1742.155 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्सन की अनुशंसा की गई है।
टीएस ने पत्र में लिखा है कि प्रतिवेदन का संंक्षिप्त अवलोकन बताता है कि इसमें कई महत्वपूर्ण तथ्यों की उपेक्षा की गई है। यदि इस खनन को स्वीकृति प्रदान की जाती है तो यह रामगढ़ पहाड़ी के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा होगा। डीएफओ ने सरगुजा के 10 बिंदुओं वाले प्रतिवेदन को शासकीय रिकॉर्ड के हवाले से खंडित किया है।
टीएस सिंह देव ने कहा कि स्थल निरीक्षण प्रतिवेदन में बिंदु 10 के अंतर्गत प्रश्न पूछा गया था कि क्या आवेदित क्षेत्र किसी इकोलॉजिकल सेंसेटिव क्षेत्र यानी कि राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्य, बायो स्फेयर रिजर्व, प्राकृतिक झील, आदिवासी सेटलमेंट क्षेत्र, धार्मिक स्थल की सीमा के 10 वर्ग किमी के अंतर्गत है या नहीं।
इस सवाल के जवाब में डीएफओ ने अपने पत्र में लिखा कि रामगढ़ पुरातात्विक स्थल और पर्यटन क्षेेत्र केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक से 11 किलाे मीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक पुरातात्विक महत्व का धार्मिक स्थल है।
इस जवाब के साथ डीएफओ के दिए रामगढ़ के जीपीएस लोकेशन को टीएस सिंह देव ने गलत बताया।
टीएस ने आगे बताया कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून ने एनजीटी के आदेश के तहत पूरे हसदेव अरण्य कोलफील्ड को लेकर जो बायोडायवर्सिटी असेसमेंट स्टडी ने रिपोर्ट दी, उसमें भी साफ जिक्र किया गया था कि वर्तमान में संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोल ब्लॉक के अतिरिक्त हसदेव अरण्य कोल फील्ड के अन्य क्षेत्रों को नो गो एरिया घोषित कर खनन पर रोक लगाने की अनुशंसा की है।
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