विपक्षी दल लंबे समय से चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की पहल पर बिहार में हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने इसे न केवल एक बड़े गंभीर मुद्दे में बदल दिया है, बल्कि इसने देश के राजनीतिक परिदृश्य में हलचल पैदा कर दी है।
संभवतः ऐसा पहली बार हुआ है, जब सत्तारूढ़ दल और चुनाव आयोग के बीच संबंधों को लेकर मजबूत दावों के साथ बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिससे चुनाव आयोग और सरकार दोनों की साख दांव पर लग गई है। इन आरोपों को तब और बल मिला जब मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 17 अगस्त को अपने साथी आयुक्तों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गांधी को राजनीतिक अंदाज में चुनौती दी और उनके आरोपों पर लचर तरीके से बचाव किया था।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद राहुल गांधी और महा विकास अघाड़ी के सहयोगी शिव सेना (उद्धव ठाकरे) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) ने आरोप लगाया था कि कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के महज कुछ महीने के भीतर ही महाराष्ट्र में एक करोड़ मतदाता बढ़ गए थे। उनका आरोप है कि यह कथित गड़बड़ी भाजपा की अगुआई वाली महायुति को लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी।
राहुल ने आज पटना में वोटर अधिकार यात्रा की समाप्ति पर न केवल यह आरोप दोहराया, बल्कि चुनाव आयोग के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती दी है कि वह आने वाले समय में कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख वोटों की गड़बड़ी से भी बड़ी गड़बड़ी उजागर करने वाले हैं। राहुल ने कहा है कि यह ‘हाइड्रोजन बम’ जैसा धमाका होगा!
इस पर कोई कयास लगाना ठीक नहीं है, लेकिन इससे यह तो साफ है कि चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस और भाजपा के तीखे हमलों के बावजूद राहुल गांधी मतदान की गड़बड़ियों के आरोपों से पीछे नहीं हटे हैं, बल्कि उन्होंने तो यही संकेत दिया है कि वह कुछ और बड़ा खुलासा कर सकते हैं।
उनकी इस यात्रा के संदर्भ में इस पर गौऱ करना चाहिए कि राहुल ने अपने अकेले दम पर बिहार में तीन दशकों से सुस्त पड़ी कांग्रेस में जान डाल दी। दूसरा यह कि वोटर यात्रा के बहाने इंडिया गठबंधन ने जिस तरह की एकजुटता दिखाई है, उससे भी बड़ा संदेश गया है।
इस यात्रा में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन से लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार तथा कम्युनिस्ट पार्टियों की मौजूदगी विपक्षी एकता की ताकत को ही दिखाती है, जिसकी धुरी राहुल गांधी बने हुए हैं, जिसे अब राजनीतिक प्रेक्षक और अमूमन इंडिया गठबंधन को उपेक्षा के भाव से देखने वाला मीडिया का एक वर्ग भी स्वीकार कर रहा है।
16 दिनों तक चली वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा राजग नेता तेजस्वी यादव ने 1300 किलोमीटर का सफर किया। क्या यह इस यात्रा और विपक्षी नेताओं का दबाव नहीं है, जिसकी वजह से चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एस आई आर) को लेकर कई बार सफाई देनी पड़ी है और नियमों में बदलाव करना पड़ा है!
यात्रा के समापन पर सीपीआई (एमएल) के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है, उसे रेखांकित करना जरूरी है। भट्टाचार्य ने कहा कि ‘चुनाव आयोग का कहना है कि जो लोग बिहार से बाहर चले गए हैं (जिनमें बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर हैं) उनके नाम काटे गए हैं।
हमारे आंदोलन के दबाव में मतदाता सूची से कटने वाले नामों की संख्या 65 लाख है, लेकिन यदि एसआईआर को लेकर हम सवाल नहीं उठाते तो हो सकता है कि एक करोड़ लोगों के नाम कट जाते।‘ यह यात्रा बिहार के 25 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी।
कुछ महीने बाद प्रस्तावित बिहार के विधानसभा चुनाव में इसका क्या असर होगा, इस पर अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा, लेकिन इस यात्रा ने ‘वोट चोरी’ के नारे को एक नए सियासी कथानक में बदल दिया है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।