नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने आज कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वह स्वयं संन्यास लेंगे या किसी और को 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट लेना चाहिए। भागवत दिल्ली में संघ के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में सवालों का जवाब दे रहे थे।
मोहन भागवत ने कहा कि उन्होंने यह बात दिवंगत वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले के विचारों का उल्लेख करते हुए कही थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका यह कहना नहीं था कि वह या कोई अन्य व्यक्ति संन्यास ले। वह जीवन में किसी भी समय सेवानिवृत्त होने को तैयार हैं, लेकिन जब तक संघ उनसे काम लेना चाहेगा, वह उसके लिए तत्पर रहेंगे।
उन्होंने उदाहरण दिया कि अगर वह 80 साल के हों और संघ उन्हें शाखा चलाने का निर्देश दे, तो वह ऐसा करेंगे। भागवत ने कहा कि संघ का निर्देश सर्वोपरि है, और वह जो भी काम सौंपा जाता है, उसे स्वीकार करते हैं।
भागवत ने बताया कि संघ में कोई भी कार्यकर्ता यह नहीं कहता कि वह क्या करेगा या क्या नहीं। संघ में निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि संगठन में कई लोग सरसंघचालक बनने की क्षमता रखते हैं, लेकिन वे अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं। अभी वह स्वयं ही उपलब्ध हैं, इसलिए यह भूमिका निभा रहे हैं।
हिंदू विचारधारा और सहिष्णुता
मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू विचारधारा कभी यह नहीं कहती कि इस्लाम या कोई अन्य धर्म यहां नहीं होना चाहिए। संघ किसी भी आधार पर, चाहे वह धार्मिक हो या अन्य, किसी पर हमला करने में विश्वास नहीं करता। उन्होंने कहा कि धर्म व्यक्तिगत पसंद का विषय है, और इसमें जबरदस्ती या प्रलोभन का कोई स्थान नहीं है।
भागवत ने यह भी कहा कि हिंदुओं में आत्मविश्वास की कमी के कारण असुरक्षा की भावना हो सकती है, लेकिन कोई हिंदू यह नहीं चाहता कि इस्लाम समाप्त हो। उन्होंने यह भी जोड़ा कि आक्रांताओं के नाम पर सड़कों या स्थानों के नाम नहीं रखे जाने चाहिए।
भागवत ने कहा कि आरएसएस संविधान द्वारा निर्धारित आरक्षण नीतियों का पूरी तरह समर्थन करता है और जब तक जरूरत होगी, यह समर्थन जारी रहेगा। जाति व्यवस्था पर उन्होंने कहा कि यह अब पुरानी पड़ चुकी है और इसका कोई औचित्य नहीं है। इसे समाप्त होना ही चाहिए।
भागवत ने दोहराया कि राम मंदिर आंदोलन ही एकमात्र ऐसा अभियान था, जिसे संघ ने समर्थन दिया था। काशी-मथुरा जैसे अन्य आंदोलनों को संघ समर्थन नहीं देगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से ऐसे आंदोलनों में भाग लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
संघ प्रमुख ने कहा कि अखंड भारत एक सत्य है। जिन देशों ने भारत से अलग होने का फैसला किया, उनकी स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इन देशों ने भारत की साझा संस्कृति, पूर्वजों और मातृभूमि को नकारने की कीमत चुकाई।
भागवत ने बताया कि संघ ने हमेशा देश के बंटवारे का विरोध किया था। संघ के संस्थापक का मानना था कि महात्मा गांधी, जिनका उस समय पूरा देश अनुसरण करता था, ने कहा था कि बंटवारा उनकी लाश पर होगा। हालांकि, बाद में गांधीजी ने इसे स्वीकार कर लिया। उस समय संघ के पास इतनी शक्ति नहीं थी कि वह बंटवारे को रोक सके।