नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी के प्रति एकजुटता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के 18 पूर्व न्यायाधीशों ने एक बयान जारी किया है। इस बयान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हाल ही में न्यायमूर्ति रेड्डी और सर्वोच्च न्यायालय पर 2011 के सलवा जुडूम फैसले के लिए की गई आलोचना की निंदा की गई है।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी की पीठ ने छत्तीसगढ़ में नक्सली विद्रोह के खिलाफ सशस्त्र निगरानी समूहों के उपयोग को गैरकानूनी घोषित किया था। शाह ने न्यायमूर्ति रेड्डी और सर्वोच्च न्यायालय पर इस फैसले के माध्यम से “नक्सलवाद का समर्थन” करने का आरोप लगाया और कहा कि न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी “नक्सली विचारधारा” से प्रेरित थे।
शाह के बयान को सलवा जुडूम फैसले की गलत व्याख्या बताते हुए, पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि यह “दुर्भाग्यपूर्ण” है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह फैसला “कहीं भी, न तो स्पष्ट रूप से और न ही अपने पाठ के बाध्यकारी निहितार्थों के माध्यम से, नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है।” बयान पर हस्ताक्षर करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक, अभय ओका, गोपाल गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर, और जे. चेलमेश्वर शामिल हैं।
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा, “भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रचार भले ही वैचारिक हो, लेकिन इसे सभ्य और गरिमापूर्ण तरीके से चलाया जाना चाहिए। किसी भी उम्मीदवार की तथाकथित विचारधारा की आलोचना से बचना चाहिए।”
न्यायपालिका पर ‘नकारात्मक प्रभाव‘
न्यायाधीशों के बयान में इस बात पर भी ध्यान आकर्षित किया गया कि शाह द्वारा फैसले की गलत व्याख्या से भारत में न्यायिक स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा, “किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आंच आ सकती है।” उन्होंने आगे कहा, “भारत के उपराष्ट्रपति के पद के प्रति सम्मान के कारण, नाम-गाली से बचना बुद्धिमानी होगी।”
2011 का यह फैसला न्यायमूर्ति रेड्डी और न्यायमूर्ति एस.एस. निज्जर (जिनका अब निधन हो चुका है) द्वारा सुनाया गया था। यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों द्वारा दिए गए क्रमिक न्यायिक आदेशों का हिस्सा था, जो 2007 में नंदिनी सुंदर और अन्य द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आधारित थे। इस याचिका में सलवा जुडूम दस्तों द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों से प्रभावित आदिवासी लोगों के लिए न्याय की मांग की गई थी।
वर्ष 2008 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन, जो उस समय मामले की सुनवाई कर रहे थे, ने कहा था कि सलवा जुडूम को राज्य का समर्थन अपराध को बढ़ावा देने के समान होगा।
पूर्व न्यायाधीशों का पूरा बयान
केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह का सलवा जुडूम मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करने वाला बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। यह निर्णय कहीं भी, न तो स्पष्ट रूप से और न ही अपने पाठ के निहितार्थ के माध्यम से, नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है।
भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रचार भले ही वैचारिक हो, लेकिन इसे शालीनता और गरिमा के साथ चलाया जा सकता है। किसी भी उम्मीदवार की तथाकथित विचारधारा की आलोचना से बचना चाहिए।
किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आंच आ सकती है।
भारत के उपराष्ट्रपति के पद के प्रति सम्मान के कारण, नाम-गाली से बचना बुद्धिमानी होगी।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश : ए.के. पटनायक, अभय ओका, गोपाल गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर, जे. चेलमेश्वर।
उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश : गोविंद माथुर, एस. मुरलीधर, संजीब बनर्जी।
उच्च न्यायालयों के पूर्व न्यायाधीश : अंजना प्रकाश, सी. प्रवीण कुमार, ए. गोपाल रेड्डी, जी. रघुराम, के. कन्नन, के. चंद्रू, बी. चंद्रकुमार।