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लेंस संपादकीय

कुत्तों पर फैसला तो ठीक पर तंत्र भी सक्षम हो

Editorial Board
Editorial Board
Published: August 22, 2025 9:25 PM
Last updated: August 22, 2025 9:25 PM
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Supreme Court
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सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त के फैसले में बदलाव करते हुए अब आदेश दिया है कि आवारा कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद शेल्टर होम से उन्हीं जगहों पर छोड़ दिया जाए जहां से उन्हें पकड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में भेजने के निर्देश दिए थे, जिस पर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी और उस फैसले के खिलाफ कुत्ता प्रेमियों और अनेक एनजीओ ने अपील की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बदलाव तो किया ही है, और उसके साथ ही अपने आदेश का दायरा पूरे देश तक बढ़ा दिया है, जिसके मुताबिक सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना दिए जाने पर रोक लगा दी गई है और निर्देश दिए गए हैं कि इसके लिए अलग जगहें तय की जाएं।

निश्चित रूप से यह फैसला राहत देने वाला है, और मनुष्यों के सबसे नजदीक सहअस्तित्व में रहने वाले जानवरों में से एक कुत्तों के प्रति संवेदना दिखाता है।

इसके साथ ही इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आवारा कुत्तों की समस्या सिर्फ महानगरों या दिल्ली-एनसीआर तक सीमित नहीं है, बल्कि छोटे शहरों और कस्बों तक में है, जिनके काटने से लोगों की जान तक चली जाती है। गरीबों और वंचितों पर यह कितना भारी पड़ता होगा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुत्तों के काटने से लगने वाले इंजेक्शन काफी महंगे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में रैबिज से होने वाली 36 फीसदी मौतें भारत में होती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि आक्रामक और रैबिज से पीड़ित कुत्तों को शेल्टर होम से नहीं छोड़ा जाएगा। हालांकि इस पर भी सवाल है कि आखिर कैसे आक्रामक कुत्तों को पता लगाया जाएगा।

फैसले का एक अहम पहलू यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता कुत्ता प्रेमियों और एनजीओ को 25 हजार रुपये और एक लाख रुपये डॉग शेल्टर के लिए जमा करने के निर्देश भी दिए हैं। हालांकि इस व्यापक आदेश के साथ जो व्यावहारिक दिक्कतें हैं उस पर भी गौर किए जाने की जरूरत है।

इस आदेश पर जमीनी स्तर पर अमल का खासा दारोमदार स्थानीय निकायों पर है, जिन्हें आवारा कुत्तों के खाने की जगहें तय करनी होंगी, जिनका अपना रिकॉर्ड आम तौर पर कोई बहुत अच्छा नहीं है।

यह भी देखना होगा कि उनके इस कामकाज की निगरानी कैसे होगी? इसके साथ ही यह भी देखना होगा कि आवारा कुत्तों के काटने से होने वाली परेशानियों से निपटने में हमारा तंत्र कितना सक्षम और जवाबदेह है? वैसे सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने हमें पशुओं के प्रति थोड़ा और सहज, थोड़ा और संवेदनशील बनने का अवसर दिया है।

यह भी पढ़ें : दिल्ली एनसीआर में पकड़े गए कुत्तों को छोड़ने के आदेश, पशुप्रेमियों की न्यायालय में जीत

TAGGED:Editorialsupreme court
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