बस्तर के कांकेर जिले के बिनागुंडा से विचलित कर देने वाली खबर सामने आई है, जहां नक्सिलयों ने एक आदिवासी युवक मनेश नरेटी की सिर्फ इसलिए बेरहमी से हत्या कर दी, क्योंकि उसने आजादी की 78 वीं वर्षगांठ के मौके पर 15 अगस्त को गांव के बच्चों के साथ एक पूर्व नक्सल स्मारक पर तिरंगा फहरा दिया था। जिन नक्सलियों को इस देश की आजादी की कीमत पता नहीं. वही ऐसा काम कर सकते हैं। नक्सलियों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए बकायदा जन अदालत लगाकर फैसला सुनाया। इस गांव में तिरंगा फहराये जाने वाला वायरल वीडियो देखने से पता चलेगा कि बेहद बेबसी में जी रहे इस युवक और गांव के छोटे-छोटे बच्चों ने कितनी खुशियों और उत्साह के साथ अपने सीमित संसाधनों में आजादी का पर्व मनाया। यह वीडियो इसलिए भी देखा जाना चाहिए कि यह बस्तर के उन गांवों की कहानी है, जहां 78 साल बाद भी आजादी की रोशनी ठीक से नहीं पहुंच सकी है। इसी पंद्रह अगस्त को 29 नक्सल प्रभावित गांवों में पहली बार तिरंगा फहराये जाने की भी खबरें आई हैं, जो इस बात की तस्दीक करती हैं कि बस्तर में माओवादियों और नक्सलियों का प्रभाव बेहद कम हो गया है। और इससे यह भी समझने की जरूरत है कि नक्सलियों के यहां पहुंचने से पहले सरकार भी यहां तक ठीक से नहीं पहुंच सकी थी। गृह मंत्री अमित शाह ने अगले साल मार्च तक बस्तर सहित देश से माओवाद के सफाए का ऐलान कर रखा है और हाल के महीनों में सुरक्षा बलों को माओवादियों के खिलाफ बड़ी सफलताएं भी मिली हैं। इससे तो कोई इनकार नहीं कर सकता कि सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में खनिज और वन संसाधनों को भरपूर दोहन तो किया गया, लेकिन इसके साथ ही आदिवासियों के शोषण का एक समानातंर उपक्रम भी चलता रहा, जिसका फायदा नक्सलियों ने उठाया। नक्सली हिंसा और सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों में सर्वाधिक कीमत बस्तर के आदिवासियों को चुकानी पड़ी है। नक्सलियों को यह समझने की जरूरत है कि वे हिंसा के जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उसकी भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न तो पहले कभी कोई जगह थी और न ही आगे है।
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पूनम ऋतु सेन