नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण बैंकों में प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) लाने के प्रस्ताव के खिलाफ देशभर के ग्रामीण बैंक कर्मचारी यूनियनों ने अपनी आवाज बुलंद की। इसी कड़ी में आज 19 अगस्त 2025 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़े धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के लगभग एक दर्जन सांसदों ने हिस्सा लिया। इस प्रदर्शन में यूनियनों ने सरकार के इस कदम को ग्रामीण जनता और बैंक कर्मचारियों के हितों के खिलाफ बताते हुए इसे निजीकरण की ओर एक खतरनाक कदम करार दिया। प्रदर्शन में शामिल सांसदों ने मंच से जोरदार भाषण दिए और संसद के अंदर व बाहर इस मुद्दे को उठाने का वादा किया। I RRB IPO PROTEST


ग्रामीण बैंकों के कर्मचारी संगठनों का कहना है कि IPO के जरिए निजीकरण से बैंकों का मूल उद्देश्य जो ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों, कारीगरों और कमजोर वर्गों की सेवा करना है, खतरे में पड़ सकता है। देश में वर्तमान में 28 ग्रामीण बैंक कार्यरत हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस धरने में सुप्रिया सुले, जान ब्रियस, शिवदासन, सच्चिदानंदन, रवि मल्लू, रघुराम रेड्डी, आर.सी. खुंटिया (पूर्व सांसद), किरण कुमार और शाफी परंबल जैसे सांसदों ने हिस्सा लिया। इन नेताओं ने सरकार पर ग्रामीण बैंकों को निजी हाथों में सौंपने का आरोप लगाया और इसे ग्रामीण विकास के लिए नुकसानदायक बताया।

यह विरोध प्रदर्शन न केवल कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा और कल्याणकारी नीतियों को लेकर है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता को बनाए रखने का भी सवाल उठाता है। सांसदों ने अपने भाषणों में कहा कि ग्रामीण बैंक ग्रामीण भारत की आर्थिक रीढ़ हैं और इनका निजीकरण ग्रामीण जनता के लिए वित्तीय सेवाओं को और मुश्किल बना सकता है।

प्रदर्शनकारियों ने सरकार से इस प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की और इसे ग्रामीण भारत के हितों के खिलाफ बताया। इस बीच यूनियनों ने सांसदों के समर्थन को सराहा और इसे अपनी लड़ाई में एक बड़ी ताकत बताया। ग्रामीण बैंक यूनियन की इस लड़ाई में आज आए सभी सांसदों ने अपना पुरजोर समर्थन एवं संघर्ष में आगे भी साथ देने का आश्वासन दिया।