नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
असम पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार करण थापर और सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और द वायर के सलाहकार संपादक करण थापर को भारत की संप्रभुता को कथित रूप से खतरे में डालने के आरोप में गुवाहाटी बुलाया गया है। दोनों पत्रकारों को 22 अगस्त को गुवाहाटी के पानबाजार स्थित अपराध शाखा कार्यालय में पेश होने का समन भेजा गया है।
यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा वरदराजन और अन्य को द वायर द्वारा प्रकाशित एक लेख पर दर्ज एक अन्य प्राथमिकी के संबंध में असम पुलिस द्वारा किसी भी “दंडात्मक कार्रवाई” से संरक्षण प्रदान करने के कुछ ही दिनों बाद आया है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि नवीनतम प्राथमिकी भी उसी लेख से जुड़ी है या नहीं, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार की आलोचना की गई थी।
मोरीगांव पुलिस स्टेशन में दर्ज पिछली एफआईआर की तरह, इस नए मामले में भी भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 लगाई गई है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित है। धारा 152 के अलावा, एफआईआर में कई अन्य प्रावधान भी लगाए गए हैं: धारा 196 (सांप्रदायिक द्वेष), धारा 197(1)(डी)/3(6) (झूठा प्रचार), धारा 353 (सार्वजनिक उपद्रव), धारा 45 (उकसाना), और धारा 61 (आपराधिक षड्यंत्र)।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस एफआईआर पर कहा है कि विभिन्न राज्यों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा आपराधिक संहिता की कई धाराओं का हवाला देकर पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के इस चलन से वह बेहद व्यथित है। यह प्रथा स्वतंत्र पत्रकारिता पर प्रभावी रूप से अंकुश लगाती है, क्योंकि नोटिस, सम्मन और लंबी न्यायिक कार्यवाही का जवाब देना ही एक प्रकार की सजा बन जाती है।
गिल्ड का कहना है कि बीएनएस की धारा 152 विशेष रूप से परेशान करने वाला है, क्योंकि इसे व्यापक रूप से कठोर राजद्रोह कानून का नया रूप माना जाता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में गिल्ड और अन्य द्वारा इसकी संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में स्थगित रखने का आदेश दिया था। न्यायालय द्वारा उठाई गई चिंताओं पर सार्थक रूप से विचार करने के बजाय, सरकार ने नए कानून के तहत प्रावधान को व्यापक रूप में फिर से लागू कर दिया।
एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में कहा है कि बीएनएस की धारा 152 अब भाषण कृत्यों से आगे बढ़कर कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वित्तीय साधनों के कथित उपयोग को भी शामिल करती है। गिल्ड ने जुलाई 2024 में गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इन चिंताओं को उजागर किया था, विशेष रूप से धारा 152 और अन्य प्रावधानों के बारे में जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ दुरुपयोग का गंभीर खतरा पैदा करते हैं। इसने पत्रकारों के खिलाफ उनके पेशेवर काम के दौरान ऐसे कानूनों के मनमाने ढंग से लागू होने से रोकने के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय शुरू करने का भी आग्रह किया था।