प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आजादी की 78 वीं वर्षगांठ के मौके पर लालकिले से अब तक दिए गए अपने सबसे लंबे भाषण में ऑपरेशन सिंदूर से लेकर सेमीकंडक्टर और किसानों से लेकर महिला स्वसहायता समूह तक की बात की, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आपातकाल को लेकर उन्होंने जो कहा है, उस पर गौर करने की जरूरत है। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद नरेंद्र मोदी आरएसएस के दूसरे स्वयंसेवक हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री बनने के मौका मिला है, लेकिन पिछले 11 सालों में यह पहला मौका है, जब उन्होंने लाल किले से आरएसएस की तारीफ की है। बेशक, इस साल आरएसएस की स्थापना की शताब्दी है और इसका जिक्र करते हुए मोदी ने इसके राष्ट्र को दिए गए योगदान को याद करते हुए इसे दुनिया का सबसे बड़ा गैरसरकारी संगठन बताया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आजादी के आंदोलन में आरएसएस का क्या योगदान था? महात्मा गांधी की अगुआई में जब देश की तमाम धाराएं देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रही थीं, हमारे राष्ट्रीय नायक जेल जा रहे थे, तब आरएसएस की भूमिका कहीं नजर नहीं आती है और यदि उससे जुड़े लोगों का जिक्र भी कहीं आता है, तो वह विवादों से जुड़ा रहा है। लालकिले से 15 अगस्त को दिए जाने वाले प्रधानमंत्री के भाषण का ऐतिहासिक संदर्भ है और यह हमारी देश की आजादी से जुड़ा हुआ है और ऐसे विशिष्ट मौके पर आरएसएस का महिमांडन दरअसल इतिहास को नए सिरे से लिखने की परियोजना का हिस्सा ही लगता है, जिस पर पिछले एक दशक से काम चल रहा है। वास्तविकता यह है कि आजादी मिलने के महज छह महीने बाद ही महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी और तब तत्कालीन उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह तथ्य है कि आजादी के आंदोलन के दौरान आरएसएस ने हिन्दू राष्ट्र की वकालत की थी और यह आज भी उसके एजेंडे में सबसे ऊपर है। आरएसएस खुद को गैरराजनीतिक संगठन बताता है, लेकिन उसकी राजनीतिक गतिविधियां छिपी नहीं हैं। यह जगजाहिर है कि पहले भारतीय जनसंघ और अब भाजपा आरएसएस की राजनीतिक शाखाएं हैं। यही नहीं, उसके सौ से अधिक अनुषांगिक संगठन हैं और उनमें बीएमएस से लेकर एबीवीपी जैसे संगठन हैं जो अपनी प्रकृति में राजनीतिक संगठन हैं। वास्तविकता यह है कि वृहत संघ परिवार भाजपा की सबसे बड़ी ताकत है। दरअसल भाजपा की राजनीतिक सफलता में आरएसएस के योगदान को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इस पर चर्चा करने से पहले यह भी जानना जरूरी है कि जनसंघ और उसके बाद भाजपा के लिए रास्ता बनाने में आरएसएस की अपनी अहम भूमिका रही है, जिसे खासतौर से आपातकाल और जेपी आंदोलन के दौर से समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में आपातकाल को भी याद कर कांग्रेस पर हमला किया है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि आरएसएस के तीसरे सरसंचालक बालासाहेब देवरस ने न केवल आपातकाल का समर्थन किया था, बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखे पत्र में उन्होंने जेपी आंदोलन में हिस्सेदारी से भी इनकार कर दिया था! यहां यह भी दर्ज किया ही जाना चाहिए कि जेपी ने 1974 से 77 के दौरान अपने आंदोलन में आरएसएस को साथ जरूर लिया था, लेकिन उन्होंने हिंदू राष्ट्र की उसकी विचारधारा का विरोध किया था। यही नहीं, जनता पार्टी की सरकार के आने के बाद और अपने मृत्यु से कुछ समय पूर्व जेपी ने इस बात पर अफसोस जताया था कि आरएसएस ने हिंदू राष्ट्र की अपनी विचारधारा से किनारा नहीं किया है। लालकिले के प्राचीर से आरएसएस की तारीफ करते प्रधानमंत्री मोदी को यह एहसास तो हुआ ही होगा कि आरएसएस की हिन्दू राष्ट्र की कल्पना संविधान निर्माताओं के सपने से मेल नहीं खाती। वास्तव में लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी भाजपा और संघ के इतिहास के सबसे बडे नेता हैं, ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर उन्हें आरएसएस के कसीदे पढ़ने की जरूरत क्यों पड़ गई? क्या इसकी वजह बिहार और पश्चिम बंगाल के आगामी चुनाव हैं, जहां भाजपा को जमीनी स्तर पर आरएसएस की जरूरत है? यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें न केवल घटकर 240 रह गईं बल्कि उसे दो सहयोगी दलों के सहारे टिकना पड़ा है।
लालकिले से आरएसएस की तारीफ

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