लेंस डेस्क। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चसोटी गांव में 14 अगस्त बादल फटने से आई भयानक आपदा ने संकट की स्थिति बना दी है। इस त्रासदी में अब तक 65 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 200 से ज्यादा लोग अभी भी लापता हैं। राहत और बचाव कार्य तीसरे दिन भी जारी है। kishtwar cloud burst
इस हादसे में मलबे के नीचे दबकर मरने वालों में से 34 शवों की शिनाख्त हो चुकी है। 500 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला गया है। 180 लोग घायल हैं, जिनमें से 40 की हालत बेहद नाजुक है। घायलों को किश्तवाड़ और जम्मू के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। 75 लापता लोगों की जानकारी उनके परिजनों ने प्रशासन को दी है।
रेस्क्यू में जुटी टीमें
बचाव कार्य में एनडीआरएफ की तीन टीमें, सेना के 300 से ज्यादा जवान, व्हाइट नाइट कोर की मेडिकल टीम, पुलिस, एसडीआरएफ और अन्य एजेंसियां दिन-रात काम कर रही हैं। स्थानीय लोग भी इस मुश्किल घड़ी में हाथ बंटा रहे हैं। घायलों को कीचड़ भरे इलाके से निकालकर, कई बार पीठ पर लादकर अस्पताल पहुंचाया गया।
यह आपदा तब हुई जब हजारों श्रद्धालु मचैल माता यात्रा के लिए चसोटी गांव में जमा थे। चसोटी, पड्डर घाटी में स्थित पहला पड़ाव है जहां श्रद्धालुओं के लिए बसें, टेंट, लंगर और दुकानें थीं। लेकिन बाढ़ ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। मलबे में दबे शवों का दृश्य दिल दहलाने वाला था। कई शवों के फेफड़ों में कीचड़ भरा था, पसलियां टूटी थीं और अंग बिखरे पड़े थे।
चसोटी गांव और मचैल माता यात्रा
चसोटी गांव किश्तवाड़ शहर से करीब 90 किमी दूर है और मचैल माता मंदिर के रास्ते में पहला पड़ाव है। यह पड्डर घाटी में बसा है जहां पहाड़ 1,818 से 3,888 मीटर तक ऊंचे हैं। ऊंचाई पर मौजूद ग्लेशियर और ढलानें पानी के बहाव को और तेज कर देती हैं, जिससे यह हादसा और भयानक हो गया। मचैल माता तीर्थयात्रा हर साल 25 जुलाई से 5 सितंबर तक होती है। इसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। जम्मू से किश्तवाड़ तक 210 किमी का सफर तय करने के बाद, पड्डर से चसोटी तक 19.5 किमी सड़क मार्ग है। इसके बाद 8.5 किमी की पैदल यात्रा कर मंदिर पहुंचा जाता है।
रेस्क्यू टीमें और स्थानीय लोग दिन-रात घायलों को बचाने और लापता लोगों की तलाश में जुटे हैं। प्रशासन ने प्रभावित परिवारों की मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं।यह त्रासदी पूरे जम्मू-कश्मीर के लिए एक बड़ा झटका है।