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छत्तीसगढ़

अमीर धरती के बेबस लोग

दानिश अनवर
Last updated: August 14, 2025 8:42 pm
दानिश अनवर
Byदानिश अनवर
Journalist
दानिश अनवर, द लेंस में जर्नलिस्‍ट के तौर पर काम कर रहे हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 13 वर्षों का अनुभव है। 2022 से दैनिक भास्‍कर...
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देश जब आजादी की 78 वीं वर्षगांठ मना रहा है, द लेंस ने छत्तीसगढ़ के एक ऐसे इलाके से सबसे वंचित माने जाने वाले आदिवासियों का हाल जानने की कोशिश की जहां की धरती के गर्भ में एलेक्जेंड्राइट, प्लेटिनम और हीरा जैसे कीमती रत्न दफन हैं। राज्य की राजधानी रायपुर से महज डेढ सौ किलोमीटर दूर ओडिशा से सटे गरियाबंद जिले के देवभोग इलाके में अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही हीरे की खदानों के बारे में पता चला था और उसके खनन के लिए औपचारिकताएं भी शुरू कर दी गई थीं। याद किया जा सकता है कि राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एक सांसद के रूप में 2004 में छत्तीसगढ़ में हीरा, बॉक्साइट और सोना की खदानों के बारे में पूछा था और उसके जवाब में तत्कालीन कोयला और खदान मंत्री दसई राजू ने बताया था कि गरियाबंद के मैनपुर सहित, सरायपाली, बस्तर के तोकापाल, कांकेर, सांरगढ़ और रायगढ़ में हीरा खदानों का पता लगाने के लिए सर्वे किया गया था। वैसे यहां हीरा खनन का मामला एक दशक से भी लंबे समय से हाई कोर्ट में लंबित है, लेकिन इस इलाके से अवैध खनन की खबरें आती रही हैं। जाहिर है, देर सबेर यहां हीरे का खनन शुरू हो ही जाएगा, लेकिन द लेंस की टीम ने जो देखा वह यह बताने के लिए काफी है कि इस रत्नगर्भा धरती तक आजादी की रोशनी अभी ठीक से नहीं पड़ी है और यह इलाका हीरे की चमक से अभी कोसों दूर है। वास्तव में गरियाबंद का यह इलाका देश के उन हिस्सों से अलग नही है, जहां खदानों या विकास परियोजनाओं के कारण स्थानीय लोगों और आदिवासियों को अपनी जमीन से बेदखल होना पड़ा है या जिसकी सर्वाधिक कीमत चुकानी पड़ती है। यह कहानी मध्य प्रदेश के सिंगरौली से लेकर छत्तीसगढ़ के ही हसदेव अरण्य तक दोहराई जा रही है, जहां कोयला खदानों के लिए जंगलों के सफाए का सरकारी अनुष्ठान चल रहा है। हैरानी इस बात की है कि कई दशक पहले इस इलाके की शिनाख्त कीमती खदानों वाली धरती के रूप में हो चुकी है, लेकिन न तो केंद्र और न ही राज्य की किसी सरकार ने इस क्षेत्र के लोगों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने की ठोस पहल की। गरियाबंद जिले के इस इलाके के लोग किस हाल में रह रहे हैं, उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी इलाके में के दो गांवों धवलपुर और जरनडीह के लोगों को आवाजाही करने के लिए बरसात में उफनते बाकड़ी पैरा नाला को पार करना पड़ता है और उनके पास कोई और साधन भी नहीं है। घर-घर नल और हर घर तक बिजली पहुंचाने के दावों को परखना हो, तो यहां के गांवों में अदम गोंडवी के शब्दों में इसे पऱखा जा सकता है, तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है!

Byदानिश अनवर
Journalist
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दानिश अनवर, द लेंस में जर्नलिस्‍ट के तौर पर काम कर रहे हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 13 वर्षों का अनुभव है। 2022 से दैनिक भास्‍कर में इन्‍वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग टीम में सीनियर रिपोर्टर के तौर पर काम किया है। इस दौरान स्‍पेशल इन्‍वेस्टिगेशन खबरें लिखीं। दैनिक भास्‍कर से पहले नवभारत, नईदुनिया, पत्रिका अखबार में 10 साल काम किया। इन सभी अखबारों में दानिश अनवर ने विभिन्न विषयों जैसे- क्राइम, पॉलिटिकल, एजुकेशन, स्‍पोर्ट्स, कल्‍चरल और स्‍पेशल इन्‍वेस्टिगेशन स्‍टोरीज कवर की हैं। दानिश को प्रिंट का अच्‍छा अनुभव है। वह सेंट्रल इंडिया के कई शहरों में काम कर चुके हैं।
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