नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा ने महाभियोग का प्रस्ताव मंजूर कर लिया है। यशवंत वर्मा नकदी कांड के कारण चर्चा में आए थे।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक समिति गठित की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरविंद कुमार, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता बीवी आचार्य शामिल हैं।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि समिति जल्द ही अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और जब तक रिपोर्ट नहीं मिलती, प्रस्ताव पर कार्यवाही स्थगित रहेगी। ओम बिरला ने बताया कि इसी साल 31 जुलाई को उन्हें महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त हुआ था, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता सहित 146 लोकसभा सांसदों और 63 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर थे। प्रस्ताव को पढ़कर सुनाए जाने के बाद संविधान के अनुच्छेद 124(4), 217 और 218 के तहत उन्हें पद से हटाने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई।
घर के बाहर मिले थे जले नोट
यह विवाद तब शुरू हुआ जब 14 मार्च को नई दिल्ली में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के बाहर जले हुए नोट पाए गए। उनके आवास में आग लगने की घटना हुई, और वहां से जले हुए नोटों के बंडल बरामद हुए। उस समय जस्टिस वर्मा घर पर मौजूद नहीं थे, लेकिन एक आंतरिक न्यायिक जांच समिति ने निष्कर्ष निकाला कि नकदी पर उनका नियंत्रण था।
इस जांच के आधार पर भारत के मुख्य न्यायाधीश ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा ने इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने इसे पारदर्शी और संवैधानिक करार देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। इस घटना ने न्यायिक क्षेत्र में खलबली मचा दी, जिसके बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया।