नई दिल्ली। भारतीय रुपये की कीमत भले ही अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर के करीब पहुंच गई है, लेकिन ऐसा नहीं है कि डॉलर मजबूती के साथ कारोबार कर रहा है। इस साल अब तक रुपये में 2.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, तो डॉलर की कीमत में भी 9.53 प्रतिशत की कमी आई है। गिरावट का यह आंकड़ा दर्ज किया है डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को मापता है। यह तब है जब अमेरिका भारत पर 50 फीसदी आयात का ऐलान कर चुका है। मंगलवार को रुपये की कीमत 87.78 प्रति डॉलर तक पहुंच गई।
बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, कमजोर डॉलर के बावजूद रुपये पर दबाव बना हुआ है, क्योंकि विदेशी निवेश में कमी और बाहरी आर्थिक चुनौतियां निवेशकों का भरोसा कम कर रही हैं। हाल ही में अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत तक का आयात शुल्क बढ़ाया है, जिससे व्यापारिक तनाव बढ़ा है और विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालना शुरू कर दिया है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में आईएफए ग्लोबल के सीईओ अभिषेक गोयनका ने कहा, “फिलहाल शुल्क ही सबसे बड़ी चिंता है। सामान्य तौर पर रुपये में हर साल 1 से 2 प्रतिशत की गिरावट आती है, लेकिन इस बार अतिरिक्त कमजोरी शुल्कों की वजह से है। हम उम्मीद करते हैं कि वित्त वर्ष 2026 में रुपये की औसत कीमत 87 प्रति डॉलर रहेगी।”
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, जून में रुपये का वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) 100.36 था, जो मई में 101.12 था। यह दर भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ मुद्रास्फीति के अंतर को समायोजित करती है। 100 से ऊपर का मूल्य निर्यात प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकता है।
1 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 9.3 अरब डॉलर घटकर 688 अरब डॉलर रह गया, जो 2025 की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट है। इसमें से 6.9 अरब डॉलर की बिक्री और 2.1 अरब डॉलर का पुनर्मूल्यांकन नुकसान शामिल है।
कम हो रहा विदेशी मुद्रा का प्रवाह
अमेरिका के टैरिफ से भारत के निर्यात से होने वाली कमाई पर असर पड़ रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा का प्रवाह कम हो रहा है और स्थानीय बाजार में डॉलर की मांग बढ़ रही है। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने जून में अचानक नीतिगत ब्याज दर में 50 आधार अंकों की कटौती की, जिससे रुपये के प्रति रुझान कम हुआ और रुपया कमजोर होता गया।
यूरो और पाउंड के मुकाबले रुपये में इस साल क्रमशः 12 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की गिरावट आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक निवेशक अब विकसित देशों के बाजारों की ओर रुख कर रहे हैं, जो रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं। इस महीने (सोमवार तक) विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से 10,147 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की।
शेयर बाजार से लगातार निकल रहा पैसा
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, “डॉलर इंडेक्स कमजोर हुआ है, यानी डॉलर यूरो और पाउंड जैसी मुद्राओं के मुकाबले कमजोर हुआ है। लेकिन रुपये पर दबाव बना हुआ है, क्योंकि शेयर बाजार से लगातार पैसा निकल रहा है।”
2025 की शुरुआत में यूरो और पाउंड में तेजी आई, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंताओं ने निवेशकों को यूरोपीय बाजारों की ओर आकर्षित किया। 10 फरवरी को रुपये ने 87.95 प्रति डॉलर का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ, लेकिन जुलाई की शुरुआत में बेहतर व्यापारिक माहौल और निवेश के कारण यह 2.5 प्रतिशत सुधरकर 85.59 पर पहुंच गया।
हालांकि, अगस्त में फिर से शुल्क की चिंताओं, निवेश के बाहर जाने और कमजोर बाजार भावनाओं के कारण रुपये फिर से अपने निचले स्तर की ओर बढ़ा और 87.80 से 87.88 के बीच रहा। बाजार पर्यवेक्षकों के अनुसार, रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप ने रुपये को 88 के स्तर से नीचे रखा है।