रायपुर। 9 अगस्त, विश्व आदिवासी दिवस (World Indigenous Day) गुजर गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर हर साल यह दिवस दुनिया भर में बनाया जाता है, सिर्फ एक राजनीतिक विचार धारा है, जिसने इसे मान्यता नहीं दी है और वह है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उससे जुड़ी भारतीय जनता पार्टी। हालांकि दो महीने पहले संघ के मुख्यालय नागपुर में एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए आदिवासियों के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि वे आदिवासियों को लेकर संघ की विचारधारा से सहमत नहीं हैं और वे खुद विश्व आदिवासी दिवस को आदिवासियों के लिए गौरव मानते हैं।
विश्व आदिवासी दिवस बीत जाने के बाद thelens.in ने इस पर एक रिपोर्ट की। इस रिपोर्ट में आदिवासी दिवस न मनाने के बीजेपी और आरएसएस के कारणों को सामने रखा। साथ ही संघ मुख्यालय से होकर लौटे वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम इस पर क्या सोचते हैं, वह हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में बता रहे हैं।
इस बार 9 अगस्त को दुनिया भर में विश्व आदिवासी दिवस पर उनकी संस्कृति, प्रकृति के संरक्षण में उनके योगदान से लेकर उन पर मंडरा रहे खतरों और उनकी जिंदगी की चुनौतियों पर चर्चा हुई।
संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आदिवासी दिवस 2025 की थीम ‘स्वदेशी लोग और आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस: अधिकारों की रक्षा, भविष्य को आकार देना’ रखा। इस पर कार्यक्रम भी हुए। दुनियाभर में आदिवासी समाज में आदिवासी मुद्दों पर मंथन किया गया। विचार विमर्श किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम किए गए। भारत में भी झारखंड जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्य में 9 से 11 अगस्त तक तीन दिवसीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन हो रहा है। देश के कई हिस्सों में इस तरह के आयोजन हुए।
न केंद्र सरकार, न राज्य सरकार और न ही भारतीय जनता पार्टी और न ही भाजपा सरकार के आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस मौके पर आदिवासी समाज को कोई शुभकामनाएं ही दी। शासकीय तौर पर किसी तरह के अवकाश का तो सवाल ही नहीं उठता। भाजपा से जुड़े नेताओं का कहना है कि विश्व आदिवासी दिवस स्वदेशी अवधारणा नहीं है। यह एक पश्चिमी अवधारणा है। उल्लेखनीय है कि आरएसएस अथवा भाजपा आदिवासी की जगह वनवासी शब्द के ही प्रयोग को प्राथमिकता देते हैं। हालांकि भाजपा के रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने सोशल मीडिया में जरूर आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं दीं।
आरएसएस आदिवासी को हिंदू समाज का ही अंग मानती है। यही लाइन स्वाभाविक रूप से बीजेपी की भी है। आरएसएस अथवा बीजेपी आदिवासियों के हिंदू समाज से अलग अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं। दूसरी ओर आदिवासियों की तरफ से देशभर में यह मांग हो रही है कि जनगणना में अलग आदिवासी धर्म को मान्यता दी जाए। ऐसी मांग करने वाले आदिवासी प्रतिनिधि इसे आदिवासी पहचान का मुद्दा मानते हैं।
रेलवे ने घोषणा के बाद वापस लिया था फैसला
छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने विश्व आदिवासी दिवस पर अवकाश की घोषणा की थी। यह अवकाश तो आज भी बरकरार है। मध्यप्रदेश में भी तात्कालीन कमलनाथ सरकार ने विश्व आदिवासी दिवस पर अवकाश की घोषणा की थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस सरकार द्वारा घोषित अवकाश को मध्यप्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार ने रद्द कर दिया। यह भी खबर है कि भारतीय रेलवे ने पूर्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में रेलवे ने भी इस घोषणा को रद्द कर दिया। इसे लेकर भी आदिवासी समाज के अन्य संगठनों ने भी नाराजगी व्यक्त की थी।
अरविंद नेताम ने इस दिन को बताया आदिवासियों के लिए गौरव
इस मामले में हमने देश के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम से चर्चा की जो पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक कार्यक्रम में नागपुर में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे और इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी खास तौर पर उपस्थित थे।

अरविंद नेताम ने thelens.in से बातचीत में कहा कि ये आदिवासियों के लिए गौरव की बात है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व आदिवासी दिवस की कल्पना की और उसे विश्व भर में मनाया जाता है। उन्होंने आरएसएस और भाजपा के विश्व आदिवासी दिवस न मनाने की वजह बताई कि भाजपा 1984 से लेकर 1994 तक के भारत सरकार के उस स्टैंड पर कायम है कि जिसमें भारत सरकार ने विश्व आदिवासी दिवस के अंग्रेजी नाम World Indigenous Day का विरोध किया था। भारत सरकार ने Indigenous शब्द को स्वीकार नहीं किया, यह कहकर कि हमारे संविधान में आदिवासियों के लिए अलग से व्यवस्था है। इसका मतलब यह है कि भारत सरकार इसके विरोध में थी। भाजपा भारत सरकार के उस स्टैंड में कायम है। कांग्रेस ने केंद्र में कभी भी इस दिन में छुट्टी नहीं दी। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने वोट बैंक के लिए इस दिन छुट्टी जरूर दी।
इसके अलावा अरविंद नेताम ने भाजपा और संघ की विचारधारा से सहमत नहीं होने की बात कही। आदिवासियों के वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम का यह दावा इसलिए भी अहम हो जाता है, क्योंकि उनके आरएसएस के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही थीं। इतना ही नहीं, उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें भी चल रहीं थीं।
जनगणना में धर्म का कॉलम आदिवासियों के लिए जरूरी : नेताम
अरविंद नेताम ने thelens.in से चर्चा के दौरान जनगणना में धर्म का कॉलम आदिवासियों के लिए बेहद जरूरी बताया। श्री नेताम ने बताया कि उन्होंने संघ मुख्यालय में कार्यक्रम के दौरान भी संघ के शीर्ष नेताओं से कहा कि उन्हें आदिवासियों को लेकर अपनी सोच थोड़ी से बदलनी होगी। हालांकि उन्होंने नाम को लेकर थोड़ा बदलाव किया है और अब वे वनवासी की जगह जनजाति शब्द इस्तेमाल करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह जैन, बौद्ध और सिख धर्म को संघ और भाजपा ने मान्यता दी है, उसी तरह आदिवासियों को भी मान्यता देनी चाहिए। हालांकि इस मान्यता से पहले उन्होंने आदिवासी समाज में इस निर्णय को लेकर एक मंच पर आने की बात कही।
उन्होंने कहा कि आदिवासी संगठन इस मुद्दे पर एक राय नहीं हो रहे हैं। शहरी इलाकों में रहने वाले अपने आपको सनातनी मानने लगे हैं। वहीं, जंगलों में आज भी प्रकृति के बीच में रहने वाला आदिवासी अपने आप को सनातनी नहीं मानते। वे कहते हैं कि धर्म का कॉलम अब आदिवासियों के लिए बेहद अहम हो गया है। इसके लिए सभी संगठनों को एक मंच पर एक होना होगा, तभी इस पर सरकार के साथ चुनाव आयोग की मूहर लग सकेगी।
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