नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने सुप्रीमकोर्ट में एक नया हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति का नाम पूर्व सूचना दिए बिना और सुनवाई का अवसर दिए बिना सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग ने आरोप लगाया कि संशोधनों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता अदालत को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं और उसने शीर्ष अदालत से इस प्रयास के लिए ‘भारी जुर्माना’ लगाने का आग्रह किया। हालांकि, चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया कि वह इस प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कड़ाई से पालन करेगा।
आयोग ने अपने हलफनामे में कहा, ‘नीतिगत मामले के रूप में और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते हुए, 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से किसी भी मतदाता का नाम हटाए जाने से पहले संबंधित मतदाता को प्रस्तावित नाम हटाने के कारण और उसके कारणों की जानकारी देना, सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करना और संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करना तथा सक्षम प्राधिकारी द्वारा तर्कपूर्ण और स्पष्ट आदेश पारित करना आवश्यक है।’
मतदाता सूची संशोधन शुरू से ही विवादों के घेरे में है। विपक्ष का आरोप है कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले शुरू की गई यह प्रक्रिया, कड़े और मनमाने दस्तावेजों की जरूरतों को लागू करके, लाखों असली मतदाताओं, खासकर हाशिए के समुदायों को मताधिकार से वंचित कर सकती है। वे इसे भाजपा द्वारा रची गई ‘वोट चोरी’ बता रहे हैं।
चुनाव आयोग ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है कि कोई भी पात्र मतदाता मतदाता सूची से बाहर न रहे। आयोग ने आगे कहा कि प्रत्येक मतदाता को किसी भी प्रतिकूल कार्रवाई के विरुद्ध पर्याप्त उपाय प्रदान करने के लिए दो-स्तरीय अपील प्रणाली लागू है।
आयोग ने कहा, ‘यहां तक कि ऐसे मामलों में भी, जहां किसी असुरक्षित मतदाता के पास वर्तमान में कोई दस्तावेज नहीं है, उसे ऐसे दस्तावेज प्राप्त करने की प्रक्रिया में सुविधा प्रदान की जाएगी।’
आयोग ने यह भी कहा कि, ‘7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से अधिक ने अपने गणना फार्म जमा कर दिए हैं।’ इसमें कहा गया है कि 1 अगस्त से 1 सितम्बर तक मसौदा नामावली की गहन जांच की सुविधा के लिए राजनीतिक दलों को मुद्रित और डिजिटल प्रतियां उपलब्ध कराई गई हैं, साथ ही आम जनता के लिए ऑनलाइन सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। चुनाव निकाय ने अपने हलफनामे में मतदाता भागीदारी को अधिकतम करने के लिए बहुआयामी रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की है।
आयोग ने शीर्ष अदालत को बताया, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि बिहार में कोई भी पात्र मतदाता छूट न जाए, एसएमएस, बैठकों और बार-बार बीएलओ दौरों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए गए… यह सुनिश्चित करने के लिए कि बिहार से कोई भी अस्थायी प्रवासी छूट न जाए, 246 समाचार पत्रों में हिंदी में विज्ञापन जारी किए गए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी शहरी मतदाता छूट न जाए, सभी 261 शहरी स्थानीय निकायों में विशेष शहरी शिविर आयोजित किए गए।’
तो याचिकाकर्ता पर लगाया जाए भारी जुर्माना
आयोग ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया कि विपक्षी नेताओं सहित याचिकाकर्ता मतदाता सूची संशोधन के खिलाफ अपने तर्कों से अदालत को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता के आवेदनों में लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए न्यायालय ने कहा, ‘यह याचिकाकर्ता की ओर से जानबूझकर झूठे और त्रुटिपूर्ण दावे करके माननीय न्यायालय को गुमराह करने का एक स्पष्ट प्रयास है। याचिकाकर्ता का दृष्टिकोण डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया पर झूठे आख्यान बनाकर ईसीआई को बदनाम करने के उसके पहले के प्रयासों के अनुरूप है। इस माननीय न्यायालय द्वारा इस तरह के प्रयासों से उचित तरीके से निपटा जाना चाहिए, और जानबूझकर इस माननीय न्यायालय को गुमराह करने के याचिकाकर्ता के प्रयासों पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए।’