लेंस डेस्क । लद्दाख में सक्रिय जलवायु कार्यकर्ता Sonam Wangchuk को ट्रोल करने वाले एक पत्रकार को आखिरकार मांगनी पड़ी। इस मामले को लेकर सोनम वांगचुक ने एक वीडियो जारी किया है। पत्रकार ने यू टूयूब के एक शो में वांगचुक को चीनी एजेंट, आईएसआई का पिट्ठू, डीप स्टेट एजेंट बताया था। जिसके खिलाफ वांगचुक ने कानूनी कदम उठाने की तैयारी की थी।
जारी किए गए वीडियो में सोनम वांगचुक ने अपने समर्थकों से पूछा है कि पत्रकार ने लद्दाख आकार व्यक्तिगत रूप से माफी तो मांग ली है, लेकिन उसे माफ करना चाहिए या नहीं?
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग के साथ सोनम वांगचुक शनिवार से कारगिल में तीन दिवसीय अनशन की शुरुआत करने की घोषणा की है। शुक्रवार को एक इंटरव्यूव में उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर दिल्ली तक फिर से मार्च कर सकते हैं।
आपको बता दें कि मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित वांगचुक लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग के लिए लंबे समय से आंदोलनरत हैं।
जरूरत पड़ी तो दिल्ली तक फिर करेंगे मार्च

वांगचुक ने निराशा जताई कि लद्दाख समूहों और गृह मंत्रालय के बीच बातचीत रुक गई है, क्योंकि अगली बैठक की तारीख तय नहीं हुई है। लद्दाख समूह में केडीए और लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) शामिल हैं। वांगचुक ने कहा, “यह दुखद है कि बातचीत में इतनी देरी हो रही है। पिछले आठ महीनों में सिर्फ दो बैठकें हुई हैं।” उन्होंने बताया कि छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा जैसे अहम मुद्दों पर अभी तक कोई चर्चा शुरू नहीं हुई है।
उन्होंने कहा कि इस देरी से लद्दाख के लोगों में नाराजगी बढ़ रही है। चूंकि दलाई लामा इस समय लेह में हैं इसलिए विरोध प्रदर्शन कारगिल में करने का फैसला लिया गया। वांगचुक ने कहा, “हमारा दोबारा दिल्ली आने का इरादा नहीं है, लेकिन अगर यही स्थिति रही और लोकतंत्र की अनदेखी हुई तो हमें मजबूरन ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे।”
उन्होंने चेतावनी दी कि पांच-छह हफ्ते की लंबी भूख हड़ताल हो सकती है। उन्होंने कहा, “अगर हमें लेह से दिल्ली दस बार भी मार्च करना पड़े, हम करेंगे। दुनिया को देखना चाहिए कि गांधी के रास्ते पर चलना कितना कठिन है।” उन्होंने संभावना जताई कि वह सितंबर में दिल्ली आएंगे और दो अक्टूबर को फिर से पहुंच सकते हैं।
वांगचुक ने जोर दिया कि छठी अनुसूची भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का चुनावी वादा था, जिसे पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की बात हो रही है, लेकिन लद्दाख को भुला दिया गया है। उन्होंने कहा, “राज्य का दर्जा लोकतंत्र का आधार है। जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अलग हुए थे, तब दोनों लोकतांत्रिक राज्य थे। इसलिए दोनों को यह दर्जा मिलना चाहिए।”