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लेंस संपादकीय

धुंध छंटनी चाहिए

Editorial Board
Last updated: August 9, 2025 9:08 pm
Editorial Board
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Sharad Pawar
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लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के महाराष्ट्र और कर्नाटक में मतदाता सूची में गड़बड़ी के दस्तावेजी सबूत सामने रखने के बाद अब एनसीपी (एसपी) नेता शरद पवार ने दावा किया है कि नवंबर 2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले दो लोगों ने उनसे मिलकर चुनाव जितवाने की पेशकश की थी। पवार ने यह भी कहा है कि उन्होंने इन लोगों से राहुल गांधी से मिलने के लिए कहा था और उन्होंने और राहुल दोनों ने उनके प्रस्ताव ठुकरा दिए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल के शोधपरक प्रेजेंटेशन के बाद पवार के इस दावे ने चुनाव आयोग के कामकाज और महाराष्ट्र चुनाव को लेकर उठ रहे सवालों को और गहरा कर दिया है। शरद पवार का दावा है कि उनसे महाराष्ट्र विधानसभा की 288 में से 160 सीटें महा विकास अघाड़ी को दिलाने की पेशकश की गई थी। इस चुनाव में कांग्रेस, एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूटीबी) को कुल 49 सीटें ही मिल सकी थीं, जबकि विधानसभा चुनाव से पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी ने राज्य की 48 में से 30 सीटें जीती थीं। दूसरी ओर लोकसभा में भाजपा को राज्य में कम सीटें मिलीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसकी अगुआई वाली महायुति ने भारी जीत दर्ज की। बेशक मतदाताओं के विवेक पर इस बात को लेकर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि क्या वे पांच महीने में अपनी राय बदल सकते हैं, लेकिन जिन हालात में ऐसा हुआ है, उससे मतदाताओं पर नहीं, बल्कि सवाल चुनाव आयोग से है। विधानसभा चुनाव के बाद से राहुल के साथ ही एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूटीबी) ने मतदाता सूची में गड़बड़ियों का मुद्दा उठाया था और सवाल किया था कि लोकसभा चुनाव के बाद महज पांच महीने में राज्य में 40 लाख मतदाता कैसे बढ़ गए। राहुल ने लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के सेंट्रल बंगलुरू लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले महादेवपुरा में एक लाख फर्जी वोट होने का दावा करते हुए जो दस्तावेज और प्रमाण पेश किए थे, उस पर भी चुनाव आयोग का रवैया स्वीकार्य नहीं है। यह सचमुच परेशान करने वाला है कि मीडिया के बड़े हिस्से में चुनाव आयोग के ‘सूत्रों’ के हवाले से खबरें परोसी जा रही हैं और उलटे राहुल से ही सवाल किए जा रहे हैं। आखिर ये ‘सूत्र’ कौन हैं? चुनाव आयोग एक संवैधानिक और स्वायत्त संस्था है और उसकी निष्पक्षता पर ही हमारे संसदीय लोकतंत्र की बुनियाद टिकी हुई है। इसलिए यह उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी भी बनती है कि वह मतदाता सूची में गड़बड़ी या चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर उठ रहे बेहद गंभीर सवालों के जवाब दे।

TAGGED:EditorialRahul GandhiSharad PawarVoter List Controversy
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