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लेंस रिपोर्ट

बीसीसीआई को आरटीआई से बचाने का ‘खेल’

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Last updated: August 9, 2025 1:48 pm
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BCCI
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देश में खेल प्रशासन के लिए नया कानून बनने जा रहा है। नाम में ‘गवर्नेंस’ शब्द जुड़ा है। इससे सुशासन की उम्मीद बंधी थी। लेकिन कानून बनने से पहले ही ‘खेल सुशासन’ की भ्रूण हत्या हो गई। मूल विधेयक के तहत ‘बीसीसीआई’ जैसे संगठन आरटीआई के दायरे में आते। लेकिन अचानक इसमें एक संशोधन लाकर ‘बीसीसीआई’ जैसे संगठनों को आरटीआई से बाहर रखने का ‘खेल’ हो गया। खेल मंत्रालय यह भूल गया कि पारदर्शिता के बगैर ‘गवर्नेंस’ असंभव है। विधेयक में ‘बीसीसीआई’ का नाम कहीं नहीं आया। लेकिन सब समझ गए कि कानून बनने से पहले ही उसमें संशोधन क्यों हो गया।

केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मंडाविया ने 23 जुलाई को लोकसभा में ‘नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल, 2025’ पेश किया था। यह विधेयक राष्ट्रीय खेल निकायों को मान्यता देकर उनके कामकाज को विनियमित करेगा। इसका मकसद खेल संगठनों को नियमानुसार कामकाज के लिए बाध्य करना है। इसके लिए उन्हें पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाएगा। विधेयक में खेलों के विकास के लिए नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बॉडी, नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड, नेशनल खेल इलेक्शन पैनल और नेशनल स्पोर्ट्स ट्रिब्यूनल बनाने के प्रावधान हैं। इसमें राष्ट्रीय ओलंपिक समिति, राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति और प्रत्येक खेल के लिए राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय खेल महासंघ बनाने का प्रावधान है। राष्ट्रीय निकायों का उनसे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय निकायों से जुड़ाव होगा। इन निकायों की राज्य और जिला स्तर पर संबद्ध इकाइयां भी होंगी।

इस मूल विधेयक में सभी मान्यताप्राप्त खेल संगठनों को आरटीआई के दायरे में लाने की बात कही गई थी। लोकसभा में 23 जुलाई को पेश विधेयक की धारा 15(2) के अनुसार “सभी मान्यता प्राप्त खेल संगठनों को आरटीआई एक्ट के तहत लोक प्राधिकार माना जाएगा।” इसका अर्थ यह है कि उन्हें अपने कार्यालयों में जनसूचना अधिकारी नियुक्त करके नागरिकों को सूचना देनी होगी। इस प्रावधान के तहत बीसीसीआई को भी आरटीआई के दायरे में आना पड़ता। लोकसभा में चर्चा से पहले ही चार अगस्त को इसमें संशोधन कर दिया गया। इसके अनुसार सिर्फ सरकार से आर्थिक सहायता लेने वाले खेल संगठनों को ही आरटीआई एक्ट के तहत लोक प्राधिकार माना जाएगा।

बीसीसीआई खेल मंत्रालय या सरकार से कोई अनुदान नहीं लेता है। इसलिए इस धारा के कारण वह आरटीआई के तहत नहीं आएगा। हालांकि यह समझना जरूरी है कि इससे मूल आरटीआई एक्ट के प्रावधानों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। आरटीआई एक्ट 2005 के तहत बीसीसीसीआई एक लोक प्राधिकार है, और रहेगा। यह सूचना देने के लिए बाध्य है। यह बात केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले में भी स्पष्ट है। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के स्थगन आदेश का सहारा लेकर बीसीसीआई अब तक सूचना देने से इंकार करता रहा है। इसके कारण केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले पर रोक है। दरअसल ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल फोर क्रिकेट इन इंडिया’ खुद को देश से ऊपर समझता है। आरटीआई तो क्या ही चीज है इसके आगे?

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिसिएटिव, नई दिल्ली के निदेशक वेंकटेश नायक ने आरटीआई एक्ट आने के समय से ही इस पर जागरूकता फैलाई है। श्री नायक ने ‘नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल, 2025’ में चार अगस्त को हुए संशोधन को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त लोढ़ा समिति और भारत के विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद बीसीसीआई को आरटीआई से बचने का रास्ता निकाला जा रहा है। लेकिन ऐसा करना इतना आसान नहीं होगा।

कौशल किशोर बनाम यूपी सरकार और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2023 में कहा था कि निजी संस्थानों के खिलाफ भी जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा की अनुमति है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने 1988 और 2004 के दो मामलों में माना है कि नागरिकों का जानने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक हिस्सा है। इसलिए यदि केंद्र सरकार इस खेल प्रशासन विधेयक में संशोधन करती है, तो प्रभावित नागरिक अपने जानने के अधिकार के लिए उच्च न्यायालयों में याचिका दायर कर सकते हैं। सरकार को यह बताना होगा कि ऐसा संशोधन क्यों आवश्यक था?

बीसीसीआई द्वारा सूचनाएं न देने का मामला लंबे अरसे से विवाद में है। खेलकूद और युवा कार्य मंत्रालय ने 21 अप्रैल 2010 के आदेश के जरिए सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल संघो को आरटीआई एक्ट के तहत लोक प्राधिकार घोषित किया था। लेकिन बीसीसीआई ने कभी मंत्रालय से राष्ट्रीय खेल संघ के बतौर मान्यता तक नहीं ली। इसलिए मंत्रालय का यह आदेश बीसीसीआई पर लागू नहीं हुआ। खेल मंत्रालय भी कुछ अज्ञात कारणों से दब्बू बना रहा।

दूसरी ओर, केंद्रीय सूचना आयोग ने एक अक्टूबर 2018 को अपने महत्वपूर्ण फैसले में बीसीसीआई को आरटीआई एक्ट के दायरे में बताया था। बीसीसीआई को जन सूचना पदाधिकारी नियुक्त करके ऑनलाइन और ऑफलाइन सूचना देने का निर्देश दिया था। आयोग ने खेलकूद और युवा कार्य मंत्रालय को भी इस आदेश के कार्यान्वयन के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था। लेकिन बीसीसीआई ने केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी। मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले पर रोक लगा दी। इसके कारण केंद्रीय सूचना आयोग का फैसला लागू नहीं हो पाया।

केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश में क्या है?

आवेदक गीता रानी ने खेलकूद और युवा कार्य मंत्रालय से बीसीसीआई के संबंध में कई सूचना मांगी थी। उन्होंने जानना चाहा कि बीसीसीआई अगर प्राइवेट संस्था है, तो किस आधार पर देश-विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व करती है? भारत के लिए खिलाड़ियों के चयन का अधिकार इसे किसने दिया? यह ‘टीम इंडिया’ है या ‘टीम बीसीसीआई’ है? इससे भारत सरकार को क्या लाभ है?

आवेदक को सूचना नहीं मिली। मामला केंद्रीय सूचना आयोग पहुंचा। आयोग ने मंत्रालय से जवाब मांगा। इस क्रम ने आयोग ने कई बिंदु स्पष्ट किये। जैसे, सुप्रीम कोर्ट तथा कई हाईकोर्ट ने बीसीसीआई के काम को सरकारी प्रकृति का माना है। इसलिए उसे पारदर्शी और नागरिकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। आयोग ने भारत के विधि आयोग की 275वीं रिपोर्ट का भी उल्लेख किया। इसमें कहा गया था कि बीसीसीआई के काम का चरित्र सार्वजनिक प्रकृति का है।

यह सरकार की तरह भारत में क्रिकेट के नियमन और प्रबंधन का काम करने वाली संस्था है। इसलिए इसे आरटीआई एक्ट के दायरे में आना चाहिए। भले ही इसे कोई सरकारी अनुदान ना मिलता हो, लेकिन अन्य रूप में वित्तीय सहायता मिलती है। जैसे, इनकम टैक्स और कस्टम ड्यूटी में छूट, अनुदानित दर पर जमीन उपलब्ध कराना, सरकारी अधिसंरचना का उपयोग करना इत्यादि। अगर सरकार ऐसी छूट नहीं देती, तो सरकार के खजाने में राशि जमा होती। विधि आयोग ने यह भी कहा कि बीसीसीआई के द्वारा चुने गए खिलाड़ी तिरंगा झंडा और अशोक चक्र का उपयोग करते हैं। बीसीसीआई के द्वारा अर्जुन अवार्ड के लिए क्रिकेटर्स का नामांकन किया जाता है।

ऐसे विभिन्न आधार पर केंद्रीय सूचना आयोग ने बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे में माना। निर्देश दिया कि आवेदक को सभी बिंदुओं पर दस दिनों के भीतर सूचना प्रदान करें। केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने खेलकूद और युवा कार्य मंत्रालय को इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने रोक लगा दी।

क्रिकेट के साथ अरबों-खरबों रूपयों का कारोबार जुड़ा है। इसका नियंत्रण कोई प्राइवेट बॉडी कैसे कर सकती है। सरकार खुद अपनी नेशनल क्रिकेट बॉडी क्यों नहीं बना लेती? नया भारतीय क्रिकेट संघ यदि देश-विदेश में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करेगा, तो बीसीसीआई की क्या औकात रह जाएगी? आखिर एक प्राइवेट संस्था के आगे भारत सरकार नतमस्तक क्यों है?

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