छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक ननों और उनके एक साथी की कथित धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में हुई गिरफ्तारी बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ ही धर्म के नाम पर देश का मौहाल खराब किए जाने की कोशिशों का ही एक और कुत्सित उदाहरण है। घटना के जो ब्योरे सामने आए हैं, उनसे पता चलता है कि केरल के अलापुझा के सीरियन मलाबार चर्च से संबंधित ये दो कैथोलिक नन आगरा में एक अस्पताल में कार्यरत हैं और वे अपने साथ नारायणपुर की तीन युवतियों को उनकी स्वेच्छा से जैसा कि एक युवती ने मीडिया से कहा है, आगरा ले जा रही थीं। इसके बावजूद हिन्दुत्व संगठनों से जुड़े कुछ लोगों ने इन ननों को न केवल धमकाया, बल्कि उनकी शिकायत पर जीआरपीएफ ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सबसे पहला सवाल तो यही है कि जिन संगठनों और लोगों की शिकायत पर यह कार्रवाई की गई है, उन्हें कानून को अपने हाथों में लेने का अधिकार किसने दिया? भाजपा शासित राज्यों में जिस तरह से कथित धर्मांतरण के नाम पर ईसाई समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, उसमें इस घटना को अलग करके नहीं देखा जा सकता। छत्तीसगढ़ में ही ईसाई मिशनरी से जुड़े एक सौ साल से भी अधिक पुराने एक अस्पताल में इन्हीं संगठनों से जुड़े लोगों ने तोड़फोड़ की है। वहीं बस्तर में एक धर्मांतरित व्यक्ति की मौत पर उसके अंतिम संस्कार को लेकर टकराव की स्थिति बन गई और उसमें भी इन्हीं संगठनों का नाम आया है। निसंदेह जबरिया या प्रलोभन देकर किसी का धर्मांतरण करवाना गंभीर मामला है और उसमें कानून सम्मत कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करे। दुर्ग की ताजा घटना कितनी गंभीर है, इसका पता इससे भी चलता है कि संसद तक में इसे लेकर आवाज उठाई गई है। केरल से एलडीएफ और यूडीएफ के सांसदों के दल ने दुर्ग आकर छत्तीसगढ़ में इन ननों के खिलाफ की गई इस कार्रवाई को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। यह मामला अब एनआईए की विशेष अदालत में है, जहां राज्य सरकार के वकील ने उनकी जमानत का विरोध किया है और इस पर दो अगस्त को फैसला आना है। वहीं केरल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर का इस मामले में आया बयान छत्तीसगढ़ सरकार और भाजपा के बयानों से एकदम अलग है। चंद्रशेखर ने शुक्रवार को कहा है कि ननों की गिरफ्तारी ‘गलतफहमी’ के कारण हुई है, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने कहा है कि राज्य सरकार इन ननों की जमानत का विरोध नहीं करेगी और उनकी रिहाई जल्द होगी। इन बयानों से इतर फैसला तो अंततः अदालत सुनाएगी। सवाल यह भी है कि क्या राज्य सरकार कानून को हाथ में लेकर माहौल खराब करने वाले संगठनों और व्यक्तियों पर भी कोई कार्रवाई करेगी?

