चुनाव आयोग द्वारा बिहार में किए जा रहे मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण का विपक्ष द्वारा संसद से लेकर सड़क तक विरोध किया जा रहा है। इस सबके बीच बिहार में मतदाताओं की पहचान के लिए चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है। बिहार के कुल 7.89 करोड़ में से 7.24 करोड़ (91.69 फीसदी) से अधिक मतदाताओं ने अपने फॉर्म जमा कर दिए हैं। आयोग के मुताबिक इस प्रक्रिया में 99.8 फीसदी मतदाताओं तक बीएलओ पहुंचे हैं। इस प्रक्रिया में 22 लाख मौजूदा मतदाताओं को मृत पाया गया है, जो कि कुल मतदाताओं का 2.83 फीसदी हैं।
36 लाख (4.59%) मतदाताओं के बारे में बताया गया है कि वे स्थायी तौर पर राज्य से बाहर चले गए हैं या बीएलओ को ऐसे मतदाता नहीं मिले हैं। 7 लाख (0.89 फीसदी) लोग ऐसे हैं जिनका नाम दूसरी जगह की वोटर लिस्ट में भी है। किसी विदेशी नागरिक या उससे संबंधित किसी भी तरह की जानकारी नहीं दी गई है। इस प्रक्रिया के तहत लिस्ट का ड्राफ्ट एक अगस्त को शेयर किया जाएगा और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी।

28 जुलाई को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आने वाला था। इससे पहले 28 जुलाई को ही निर्वाचन आयोग ने बयान दिया था कि इस मामले में भ्रम न फैलाएं। मसौदा मतदाता सूची से किसी भी नाम को बिना पूर्व सूचना और स्पीकिंग ऑर्डर के बिना नहीं हटाया जा सकता है। जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अपील की जा सकती है। इस प्रक्रिया में मदद के लिए वालंटियर्स को प्रशिक्षित किया जा रहा है और व्यापक रूप से प्रसारित किया जाएगा।
फैसले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। साथ ही चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि वह आधार कार्ड और वोटर ID को SIR में दस्तावेजों के रूप में मान्य करने पर विचार करे। यानी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक भी ऐसी टिप्पणी नहीं की जिससे यह इशारा भी दिखे कि SIR खारिज होने वाला है। उल्टे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव से प्रभावित हुआ है कि SIR की प्रक्रिया से Mass Exclusion नहीं बल्कि Mass Inclusion हुआ है।
सत्ताधारी पार्टी के नेता भी नाराज
मानसून सत्र के दौरान बिहार में चुनाव आयोग के वोटर लिस्ट रिवीजन के बारे में जेडीयू सांसद गिरधारी यादव ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि, “यह व्यवहारिक नहीं है, बिहार के लोगों पर जबरदस्ती थोपा गया है। चुनाव आयोग को न बिहार के इतिहास-भूगोल की जानकारी है और न ही यहां की परिस्थितियों की। यह खेती-बाड़ी और बरसात का सीजन है। ऐसी स्थिति में लोगों के माथे पर इतना बड़ा बोझ डाल दिया। मुझे कागज जुटाने में 10 दिन लग गए। मेरा बेटा अमेरिका में रहता है। वह कैसे कागज जुटाएगा? कैसे साइन करेगा?”
सांसद महोदय ने इसे तुगलकी फरमान बताया। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के इस विशेष वोटर लिस्ट रिवीजन अभियान से सिर्फ विपक्ष ही नहीं नाराज है, सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड के नेता भी खफा हैं, भले ही चैनलों की बहसों में पार्टी प्रवक्ता बीजेपी और चुनाव आयोग की तरफदारी करते रहते हों। इस पूरी प्रक्रिया के बाद जदयू ने बांका के अपने सांसद गिरधारी यादव को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों नहीं आप पर अनुशासनिक कार्रवाई की जाए?
समाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव एक मीडिया इंटरव्यू के दौरान विस्तार से बताते हैं कि, “वोटर और नागरिक में क्या अंतर होता है? अगर मैं बिहार का वोटर नहीं हूं तो संभव है कि किसी और राज्य का वोटर हो सकता हूं तो ऐसा कहना कहां तक जायज है कि SIR से नागरिकता चली जाएगी? चुनाव आयोग की भाषा तो कह रही है कि योग्य मतदाता नहीं छूटना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग को विशेष पावर मिली हुई है कि वह नए सिरे से मतदाता सूची तैयार करना चाहे तो तैयार कर सकती है, बशर्ते तरीका न्यायसंगत होना चाहिए। क्या आपको लगता है कि जब SIR की प्रक्रिया में बहुत ही ज्यादा धांधली दिखाई दे रही है तो सुप्रीम कोर्ट SIR को खारिज करेगा?”
आगे वे कहते हैं कि, “क्या ऐसा है कि अगर मेरे पास किसी भी तरह का दस्तावेज नहीं है फिर भी आपत्तियां और दावे के दौरान चुनाव आयोग के अधिकारी को यह विवेकाधिकार मिलता है कि वह यह तय करें कि मैं वोटर योग्य हूं या नहीं? अगर किसी के पास वर्तमान में अपने को वोटर योग्य साबित करने के सारे दस्तावेज हैं, मगर वह साल 2003 की वोटर लिस्ट से अपने माता-पिता के बारे में किसी तरह की जानकारी नहीं दे पाता है तो क्या इनकी जांच नहीं होनी चाहिए?”
कुत्ते-बिल्लियों के नाम पर जारी हो रहे निवास प्रमाण पत्र
24 जुलाई को अचानक सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल होने लगा। इस पोस्ट के मुताबिक कुत्ते की तस्वीर लगा हुआ आवासीय प्रमाण पत्र घूमने लगा। यह वही प्रमाणपत्र है जिसे बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन में मान्य किया जा रहा है, जबकि आधार और राशन कार्ड को फर्जी बताया जा रहा है। यह प्रमाण पत्र 24 जुलाई को जारी हुआ था और आवेदन का नाम डॉग बाबू था। आवासीय प्रमाण पत्र पटना के मसौढ़ी के पते पर जारी हुआ था। हालांकि उक्त आवासीय प्रमाण पत्र पर रेवेन्यू अफसर के हस्ताक्षर नहीं थे।
पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने भी इस पोस्ट को शेयर किया था। जिसके बाद पटना जिला प्रशासन की तरफ से थाने में इसकी शिकायत दर्ज करा दी गई और साथ ही उक्त निवास प्रमाण पत्र को भी रद्द कर दिया गया है। अब मोतिहारी में निवास प्रमाण पत्र के लिए सोनालिका ट्रैक्टर के नाम से आवेदन किया गया है। यह भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। सीओ ने इसकी शिनाख्त करते हुए आवेदन के सामने आते ही उसे रिजेक्ट कर दिया और आरटीपीसी कर्मचारी से फर्जी आवेदन करने वाले के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने को कहा गया है।
स्थायी रूप से बाहर बसने वाले सवर्ण मतदाता का ही कट रहा नाम
वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार यादव लिखते हैं कि, “असली समस्या यह है कि भारत में कोई एक पुख्ता आईडी नहीं है, जिससे यह साबित हो पाए कि कोई भारत का नागरिक है। इस तरह का कोई पुख्ता आईडी बनाना भी नामुमकिन है। इसलिए जिस पर शक होगा कि यह भारत का नागरिक है या नहीं? तो वहां पर कई तरह की आईडी और दस्तावेज मांगे जाएंगे। अगर आईडी और दस्तावेज से प्रशासन सहमत हो गया तब कोई दिक्कत नहीं। अगर प्रशासन आईडी से संतुष्ट नहीं हुआ तो वह फील्ड इंक्वायरी करने का भी हक रखता है। अगर फील्ड इंक्वायरी से नहीं सहमत हुआ तो समझिए अस्थायी तौर पर नागरिकता खारिज। लेकिन भारतीय व्यवस्था के अंतर्गत अच्छी बात यह है कि जिसकी नागरिकता प्रशासन खारिज करता है, उसे यह हक मिलता है कि वह कानून के मुताबिक अपील कर सके।”
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह के मुताबिक गहन मतदाता पुनरीक्षण बीजेपी को कहीं उलटा न पड़ जाए। सीतामढ़ी, दरभंगा, समस्तीपुर, और बेगूसराय के 40 से अधिक बीएलओ से बात हुई, उन्होंने बताया कि स्थायी रूप से बिहार से बाहर बसने वाले सवर्ण मतदाता ज्यादा हैं, उनका ही नाम कट रहा है! मुसलमान के पास जरूरत से ज्यादा ही कागज हैं, यादव का तो सवाल ही नहीं है। काटना मतलब यह पुनरीक्षण 2005 से उलट एनडीए को ही नुकसान पहुंचा दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी!
बिहार कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अमित चौधरी बताते हैं कि, “भाकपा माले हर टोले-मुहल्ले इस मुद्दे को लेकर पहुंच रही है। इसी सिलसिले में मैं भी पिपरा के हटवारिया मुसहरी था। सरकारी फरमान से डरने वाले गरीब तबका काफी चिंतित हैं।”
कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े धीरेन्द्र झा कहते हैं कि, “चुनाव आयोग ने जैसे-तैसे गणना फॉर्म जमा किया है। अब कह रहा है कि तकरीबन 5 प्रतिशत मतदाताओं का पता नहीं चल रहा है। ये कौन हैं? हमारे हुक्मरानों को यह पता नहीं है कि कर्जदारी के दबाव में हजारों गरीब परिवारों ने गांव छोड़ दिया है। माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के जिस आतंक से सैकड़ों आत्महत्याएं बिहार में दर्ज हुई हैं, उसी दबाव के चलते हजारों परिवारों ने गांव छोड़कर अन्यत्र शरण ले ली है! चुनाव आयोग को इस दुखद परिघटना से साबका नहीं हो सकता है लेकिन बिहार सरकार का मुंह मोड़ लेना आश्चर्य में डालता है। कैसी सरकार है! किसकी सरकार है? इन प्रश्नों पर विधानमंडल में चर्चा से भागने वाली सरकार की मंशा क्या है?” महागठबंधन को बिहार विस चुनाव का बहिष्कार करना चाहिए?
साकिब देश खास कर बिहार राजनीति पर लिखने के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। वे कहते हैं कि, “35 लाख माइग्रेट कर गए, 20 लाख मृत हैं फिर भी अब तक नाम वोटर लिस्ट में है, इसका जिम्मेदार कौन? क्या वोटर लिस्ट अपडेट एक सतत प्रक्रिया नहीं है? इसके लिए आप दशकों के अंतराल में होने वाले Special Intensive Revision का इंतजार क्यों कर रहे थे? बिहार में लेटेस्ट फरवरी 2025 में सामान्य रिवीजन हुआ है, उसमें यह 35+20 लाख कैसे आइडेंटिफाई नहीं हो पाए?”
आगे वे कहते हैं कि, “सामान्य पुनरीक्षण- आपके पास एक लिस्ट है। आप उसमें चिन्हित करते हैं कि इसमें से कौन-कौन अब हट जाना चाहिए और कौन नया जुड़ना चाहिए। यह लगभग हमेशा चलता रहता है और चुनावों से पहले उस चुनाव के लिए फाइनल लिस्ट प्रकाशित होती है। इसमें जिम्मेदारी चुनाव से जुड़ी एजेंसियों पर होती है। विशेष गहन पुनरीक्षण में आपने पुरानी लिस्ट को कूड़ेदान में फेंक दिया। जिम्मेदारी आम लोगों पर डाल दी कि अब लिस्ट जीरो से शुरू होगी और जिसको अपना नाम जुड़वाना है, तो कागज लेकर आओ और साबित करो तुम यहीं के हो।”
राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी इस पूरे मुद्दे पर लिखते हैं कि, “चुनाव बहिष्कार महागठबंधन का क्रांतिकारी कदम होगा। जब चुनाव आयोग मोदी जी की जेब में होगा तो चुनाव में भागीदारी का मतलब जेबी चुनाव आयोग को मान्यता देना होगा। महाराष्ट्र के चुनाव में मतदाता सूची में गंभीर हेरफेर के आरोप का कोई जवाब आयोग ने नहीं दिया। ऐसे में इस चुनाव आयोग के अंतर्गत चुनाव लड़ने का मतलब होगा मोदी जी द्वारा बाबा साहब अंबेडकर के संविधान को तिलांजलि देकर मनुस्मृति के आधार पर देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में बढ़ते हुए कदम का समर्थन करना। इसलिए संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए महागठबंधन को बिहार विधानसभा के चुनाव का बहिष्कार करना चाहिए।”