लेंस डेस्क। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को पूर्व नौकरशाहों ने लोकतंत्र पर हमला बताया है। 93 पूर्व नौकरशाहों ने खुला पत्र जारी कर चुनाव आयोग के इस कदम की आलोचना की है। पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि आयोग ने नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी मतदाताओं पर डाल दी है, जबकि पहले अधिकारियों को यह साबित करना होता था कि किसी व्यक्ति को फर्जी नागरिकता के आधार पर क्यों हटाया गया।
पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि यह कदम लोकतंत्र के लिए खतरा है, क्योंकि इससे बड़ी संख्या में वो मतदाता जो गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग हैं, वह दस्तावेजों की कमी के चलते वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
उनका कहना है कि पहले मतदाता सूची बनाते समय दस्तावेजों के लिए उदार और लचीला रवैया अपनाया जाता था, क्योंकि ज्यादातर भारतीयों के पास नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त कागजात नहीं होते। खासकर गरीब लोगों को दस्तावेज जुटाने में मुश्किल होती है, इसलिए उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए जाते थे। लेकिन अब इस प्रक्रिया को उलट दिया गया है, जिससे दस्तावेजों की कमी वाले लोगों का मताधिकार छिन सकता है।
पत्र में कहा गया कि निर्वाचन आयोग ने पुराने नियमों को बदलकर मतदाताओं पर अपनी नागरिकता साबित करने का बोझ डाला है। आयोग ने बिना संवैधानिक अधिकार के खुद को नागरिकता देने या छीनने की शक्ति दे ली है। इसके अलावा, अधिकारियों को मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए असीमित अधिकार दे दिए गए हैं, जिससे भ्रष्टाचार की आशंका बढ़ गई है।
पत्र में चेतावनी दी गई कि बिहार में यह “निरर्थक” प्रक्रिया जारी रखना और इसे देश के बाकी हिस्सों में लागू करना भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
2003 की मतदाता सूची को विशेष महत्व क्यों…
जिन पूर्व नौकरशाहों ने खुला पत्र जारी किया है वह कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) का हिस्सा हैं, जिसमें अखिल भारतीय और केंद्र सरकार की विभिन्न सेवाओं के रिटायर्ड अधिकारी शामिल हैं। इस पत्र पर इस बयान पर के. सुजाता राव, सतवंत रेड्डी, विजया लता रेड्डी, जूलियो रिबेरो और अरुणा रॉय जैसे प्रमुख लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं।
वेबसाइट काउंटरव्यू की खबर के हवाले से कहा गया है कि समूह ने सवाल उठाया कि आयोग ने 2003 की मतदाता सूची को विशेष महत्व क्यों दिया, जबकि बाद की सूचियों को नजरअंदाज किया गया। उनका कहना है कि यह अन्यायपूर्ण और भेदभाव करने वाला है। सीसीजी का आरोप है कि यह प्रक्रिया राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को चुपके से लागू करने जैसी है, क्योंकि हाल की 2024 लोकसभा चुनाव की मतदाता सूचियों को अमान्य किया जा रहा है। इससे अधिकारियों को मनमानी करने और भ्रष्टाचार का मौका मिल सकता है।
पटना में 21 जून, 2025 को हुई जन सुनवाई और पत्रकार अजीत अंजुम की जांच के हवाले से सीसीजी ने कहा कि बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) बड़े पैमाने पर मतदाता फॉर्म भर रहे हैं और हस्ताक्षर जालसाजी कर रहे हैं। समय की कमी और अपर्याप्त सुविधाओं ने इस प्रक्रिया की विश्वसनीयता को और कम कर दिया है।
सीसीजी ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बताया और जनता से इसके खिलाफ एकजुट होने की अपील की। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनकी सुनवाई 12 और 13 अगस्त, 2025 को होगी। निर्वाचन आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को साफ करने और अवैध मतदाताओं को हटाने के लिए है, लेकिन विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और मनोज के. झा ने इसे अपारदर्शी और दुरुपयोग की आशंका वाला बताया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 5 जुलाई, 2025 तक केवल 14.18% संभावित मतदाताओं ने फॉर्म जमा किए।
सीसीजी ने जनता से अपील की कि वे इस प्रक्रिया के खिलाफ आवाज उठाएं और निर्वाचन आयोग पर सुधार के लिए दबाव बनाएं। उनका कहना है कि सत्य की जीत होनी चाहिए।