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लेंस रिपोर्ट

धनखड़ और मोदी-शिवराज का याराना

Rajesh Chaturvedi
Last updated: July 25, 2025 11:11 pm
Rajesh Chaturvedi
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कई बार ‘नियति’ हमको विचित्र स्थिति में डाल देती है। मतलब, बिना कुछ किए धरे ही हम मुश्किल में फंस जाते हैं। “संदिग्ध” हो जाते हैं या बना दिए जाते हैं। 7 माह से ज्यादा हो गए इस बात को, लेकिन जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद पुरानी बात को फिर उखाड़ा जा रहा है। वीडियो वायरल किये जा रहे हैं। कारण, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं, जो देश के कृषि मंत्री होने के नाते मुंबई में आयोजित केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के इस शताब्दी समारोह में उपस्थित थे। दिसंबर 2024 में हुए इस समारोह में धनखड़ ने चौहान को संबोधित करते हुए अपने मन की पीड़ा रखी थी और किसानों से जुड़े कई सवाल किए थे।

खबर में खास
जब कम बोलने वाले तोमर को भी बोलना पड़ादेखन में छोटे लगें और घाव करें गंभीरसंगठन महामंत्री के लिए दो नामआरआर और प्रमोटी आईएएस का झगड़ा

पूछा था, किसानों से किये वादे पूरे करने के लिए सरकार क्या कर रही है? किसानों से कहा गया था कि उनकी आय दोगुनी की जाएगी, क्या हुआ? क्या किसानों से आपके पूर्ववर्ती मंत्री के समय कोई वादा किया गया था? किया गया था तो निभाया क्यों नहीं? जाहिर है, शिवराज क्या जवाब देते? बल्कि, यदि उनके पूर्ववर्ती और मित्र नरेन्द्र सिंह तोमर भी होते तो क्या उत्तर देते? क्योंकि, धनखड़ ने परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही सवाल उठाए थे। कुलमिलाकर, भाषण धनखड़ का था, लेकिन उसे इस ढंग से सोशल मीडिया में घुमाया जा रहा हो, गोया कि शिवराज ने लिखकर दिया हो। असल में, धनखड़ ने मुंबई कार्यक्रम के दो दिन बाद एक और काम किया। शिवराज को राज्यसभा के सदन में “किसानों का लाड़ला” नाम दे दिया। बीजेपी में किसे नहीं मालूम है कि मोदी और शिवराज के बीच कितना याराना है?

जब कम बोलने वाले तोमर को भी बोलना पड़ा

कमलनाथ की सरकार गिराने के लिए बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को गाजेबाजे के साथ ले तो आई, मगर अब उसके क्षत्रपों को महाराज से दिक्कतें होने लगी हैं। शायद, घर के आदमी से लड़ाई लड़ना मुश्किल होता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जब तक कांग्रेस में थे, कोई समस्या नहीं थी। भाजपाई खुलकर लड़ते थे। लेकिन, अब नाम तक नहीं ले सकते। कुछ कहना है, तो इशारों में कहना है। मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर तो पहले से ही नपातुला बोलने के लिए जाने जाते हैं। पार्टी में अब तक ‘हां’, ‘हूं’ से ही उनकी सियासत चलती रही है। समझा जा सकता है कि कम बोलने वाले को यदि बहुत कुछ बोलना पड़े, तो कितनी ऊर्जा लगानी पड़ती होगी। लेकिन, तोमर ने मुरैना में एक कार्यक्रम में बोला कि “गांवों में सड़क, बिजली, और नल जल जैसी योजनाएं मेरे या मुरैना एमपी के कारण नहीं आई हैं, यह सब भाजपा सरकार की देन है। इनका श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। लेकिन, कुछ नेता कहते हैं मैं लाया, मैं लाया। उन्हें मैं से ही फुर्सत नहीं मिलती। मैं पूछना चाहता हूं कि जब कांग्रेस की सरकार थी तब कहां थे ये लोग?” दरअसल, सिंधिया ने कुछ ट्रेनों की शुरूआत कराने में खुद को क्रेडिट दिया था और इस मुद्दे पर ग्वालियर के सांसद भारत सिंह कुशवाह के साथ उनका सोशल मीडिया पर मुकाबला चला था और जिस दिन ट्रेन को हरी झंडी दिखाई गई, ग्वालियर स्टेशन पर लगाए जा रहे नारों ने भी बता दिया था कि इस अंचल में भाजपा के समीकरण पिछले पांच सालों में कितने बदल गए हैं। अब अपनी अम्मा महाराज की तरह सिंधिया भी एक फैक्टर हैं। इसका कारण भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व है, जो उन्हें फिलहाल उपयोगी मानकर पूरा प्रश्रय दे रहा है।

देखन में छोटे लगें और घाव करें गंभीर

कई ऐसे लोग, जो वेशभूषा के कारण हेमंत खंडेलवाल को कम आंक रहे थे, बतौर बीजेपी के नए अध्यक्ष उनके प्रदर्शन से हैरान हैं। अभी महज तीन हफ्ते हुए हैं, मगर उनके अंदा और शैली ने कईयों को “देखन में छोटे लगें और घाव करें गंभीर” कहावत याद दिला दी है। फिलहाल, प्रदेश में उनके दौरे हो रहे हैं। बड़े शहरों में जा चुके हैं और बड़े नेताओं से मुलाकात का काम भी पूरा हो गया है। अब, नज़रें प्रदेश कार्यकारिणी पर हैं। विशेषकर, कौन संगठन महामंत्री बनता है, कौन प्रदेश कार्यालय प्रभारी और कार्यालय मंत्री। भाजपा दफ्तर की संरचना में अध्यक्ष के बाद ये तीनों पद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वैसे, तमाम झंझटों से बचने के लिए अभी खंडेलवाल ने पुरानी ईकाई को ही बरकरार रखा है। सिर्फ ड्राईवर को छोड़कर। ड्राईवर उनका अपना है और गाड़ी भी। अकसर ड्राईवर खबरों का स्रोत बन जाते हैं, लिहाजा कई लोग कह रहे हैं कि ऐसा करके उन्होंने जता दिया है कि खुद के मामले में वे बहुत सजग हैं। निवास का इंतज़ाम भी अलग किया है। दरअसल, उन्हें इस तरह के तमाम नुस्खे विरासत में मिले हैं। उनके स्वर्गीय पिता विजय खंडेलवाल भी प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष रहे हैं। पूरा परिवार संघ से जुड़ा रहा है।

कुशाभाऊ ठाकरे जब बैतूल जाते तो खंडेलवाल निवास पर ही भोजन पानी का इंतजाम होता। सौदान सिंह को जब बैतूल भेजा गया तो उनकी सारी व्यवस्था खंडेलवाल परिवार ने ही की। अपने होटल में कमरा और दौरों के लिए एक चौपहिया वाहन दिया। सौदान की मेहनत रंग लाई। 1996 में पार्टी ने विजय खंडेलवाल को लोकसभा का टिकट दे दिया और वह चुनाव जीत गए। इसीलिए, 2 जुलाई को जब हेमंत के निर्वाचन की घोषणा हुई तो भोपाल स्थित पार्टी मुख्यालय में लंबे अरसे बाद सौदान भी दिखाई दिए। हालांकि, उनकी उपस्थिति निजी रिश्तों के कारण थी, लेकिन इसने पार्टी के भीतर कुछ लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया दिया है। वे ये सोचकर परेशान हैं कि छतीसगढ़ में लगभग दो दशक तक पार्टी पर राज करने वाले सौदान का कहीं मध्यप्रदेश में तो हस्तेक्षप नहीं बढ़ेगा? बहरहाल, सौदान की उपस्थिति से समझा जा सकता है कि हेमंत का सब देखाभाला है। संगठन और संगठन के लोगों को वे समझते-पहचानते हैं। पिता जी के असामयिक निधन के बाद उपचुनाव जीतकर एक बार लोकसभा में पहुंचे और दो बार के विधायक हैं। पिता की तरह कोषाध्यक्ष भी रहे हैं। लिहाजा, वर्ष 2003 (जब बीजेपी मध्यप्रदेश में सत्ता में आई) के पहले का कार्यकर्ता “ठीक” महसूस कर रहा है। उनको लग रहा है कि उनकी चिंता करने वाला कोई आ गया है। दफ्तर में फ़ीलगुड का माहौल है। परिवर्तन से कर्मचारी भी खुश हैं, हेमंत ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि वे निजी तौर पर उनकी और उनके होनहार बच्चों के भविष्य की चिंता करेंगे।

संगठन महामंत्री के लिए दो नाम

लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि हेमंत खंडेलवाल के लिए सबकुछ मुफीद है। राज्य में पार्टी के भीतर कई ऐसे छत्रप हैं, जिनके दबाव से उन्हें जूझना होगा। इस लिहाज से आने वाला एक डेढ़ माह महत्वपूर्ण होगा। तब तक संभव है कि पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन भी कर ले, जो वह कर नहीं पा रही है। कहा जा रहा है कि दिल्ली का निर्णय होने के बाद नई प्रदेश कार्यकारिणी सामने आएगी। तब तक निगम-मंडलों और नगरीय निकायों में एल्डरमेन की नियुक्तियां निपटाई जाएंगी। सूचियां बनाई जा रही हैं। संगठन महामंत्री के लिए भी दो नाम चर्चाओं में हैं। एक, दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन और दूसरे, विद्याभारती मध्य प्रांत के संगठन मंत्री निखिलेश माहेश्वरी।

आरआर और प्रमोटी आईएएस का झगड़ा

अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में आरआर (डायरेक्ट) और नॉन आरआर (प्रमोटी) का झगड़ा अनादिकाल से रहा है। ऐसी मान्यता है कि यूपीएससी से चुने जाने वाले अफसर प्रमोटी अफसरों को बर्दाश्त नहीं कर पाते। प्रमोटी को दोयम दर्जे का समझा जाता है। दो दिन पहले तक, स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (सिया) में भी यही विवाद था। लेकिन, बात जब सुप्रीम कोर्ट और भारत सरकार तक पहुंच गई तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को विदेश से लौटते ही “सिया” की फाइल निपटाना पड़ी। दरअसल, सिया में महीनों से चेयरमेन का पद खाली पड़ा था। सरकार ने कुछ समय पहले ही सेवानिवृत्त आईएएस शिवनारायण सिंह चौहान की नियुक्ति तो कर दी, लेकिन इस पर ध्यान ही नहीं दिया कि उन्हें काम तो करने ही नहीं दिया जा रहा। न उनको दफ्तर में जगह मिली और न गाड़ी-घोड़ा। जबकि नियुक्ति के लिए चौहान ने आरएसएस में अपने संपर्कों पर खासी मेहनत की थी। लेकिन, उनमें एक कमी थी कि वे प्रमोटी आईएएस थे और उन्हें सीधी भर्ती वाले आईएएस के ऊपर बैठा दिया गया था। बहरहाल, उन्हें लड़ना पड़ा। पर्यावरणीय मंजूरी में करोड़ों के खेल की शिकायतें की गईं। कहा गया की पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत मोहन कोठारी और सिया की सदस्य सचिव उमा माहेश्वरी ने 450 से ज्यादा मामलों को मंजूरी दे दी, इनमें से करीब 230 माइनिंग से जुड़े हैं। कांग्रेस ने करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। राज्य विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू होने वाला है। लिहाजा, मोहन यादव ने स्पेन से लौटते ही दोनों अफसरों की बदली कर दी। मगर, भ्रष्टाचार या सिया के चेयरमेन चौहान ने जो शिकायतों को जगह-जगह पहुंचाया है, उनकी जांच के बारे में कोई आदेश नहीं निकला है। उलटे, कोठारी को राजभवन में महत्वपूर्ण पोस्टिंग दे दी गई है।

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