BIHAR KATHA. बिहार में बेरोजगारी, गरीबी और पलायन चिरस्थायी चुनावी मुद्दे रहे हैं। इन सारे मुद्दों की जड़ उद्योग है। जब तक उद्योग के माध्यम से रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं होंगे, तब तक पलायन, बेरोजगारी और गरीबी पर रोक लगाना संभव नहीं है। इस साल भी अक्टूबर-नवंबर में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, प्रमुख दलों ने फिर से इन मुद्दों को अपने चुनाव प्रचार अभियान का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया है। 20 साल से ज्यादा समय से सरकार में रहने के बावजूद राज्य की एनडीए सरकार चुनाव से पहले तमाम दावे कर रही है कि दो जून की रोटी के लिए किसी को बाहर जाने की जरूरत नहीं है, किंतु हकीकत सरकारी दावों के बिल्कुल उलट है। नए उद्योग-धंधे लगे नहीं हैं, पुराने की स्थिति खस्ताहाल हो चुकी है। आज हम इसकी विस्तृत पड़ताल करते हैं।
बिहार उद्योग विभाग के मुताबिक अभी राज्य के कई जिलों में ‘बिहार आइडिया फेस्टिवल 2025’ का आयोजन किया जा रहा है। इससे पहले देश के कई शहरों में नियमित अंतराल पर एनआरआई मीट एवं इन्वेस्टर मीट का आयोजन होता रहा है। बिहार सरकार के इन प्रयासों का ही नतीजा है कि ब्रिटानिया, पेप्सिको, टाटा समूह और मेदांता जैसी दिग्गज कंपनियों ने बिहार में उद्योग के लिए निवेश किया है। कई स्थानीय युवा भी स्टार्टअप के जरिए उद्यमिता की ओर बढ़ रहे हैं। इस सबके बावजूद मजदूर राज्य के तौर पर पहचान रखने वाले बिहार के लिए उद्योग एक ख्वाब की तरह है।
बिहार लघु उद्यमी योजना के तहत लाभार्थी को चेक देते उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013-14 में 3,132 के मुकाबले वर्ष 2022-23 में परिचालन कारखानों की संख्या घटकर 2,782 हो गई है। यह राष्ट्रीय स्तर की औद्योगिक वृद्धि के उलट है। 2013-14 में 1,85,690 के मुकाबले 2022-23 में देश भर में 2,06,523 कारखाने चल रहे हैं। विडंबना यह है कि देश में कुल परिचालन औद्योगिक इकाइयों का सिर्फ 1.34% हिस्सा बिहार में है।
‘उद्घाटन‘ एवं ‘शिलान्यास‘ की संस्कृति से लोगों का भरोसा उठा
EY और TCS जैसी बड़ी कंपनी के साथ काम कर चुके अतुल कुमार का सपना बिहार में कंपनी खोलने का है। वह इस पर काम भी कर रहे हैं। अतुल बताते हैं कि, “मीडिया के माध्यम से जितना यहां उद्योग के बारे में पता चल रहा है, समझ में आ रहा है कि यहां का सिस्टम ही नए निवेशकों के आने में बड़ी रुकावट है। बिहार में ‘उद्घाटन’ एवं ‘शिलान्यास’ की संस्कृति पर आम लोगों का विश्वास उठ चुका है। बिहार में एक सरकारी कागजात बनाने के लिए अधिकारी खुलेआम रिश्वत मांगते हैं।” रिश्वत लेने के आधार पर इंडिया करप्शन सर्वे रिपोर्ट 2019 के मुताबिक बिहार दूसरे नंबर पर है।

बिहार के नामचीन ब्लॉगर और लेखक रंजन ऋतुराज बताते है कि,” 1990 के बाद से बिहार से पलायन करने वाले लोग वापस नहीं लौट रहे। मुजफ्फरपुर की बेला इंडस्ट्रियल बेल्ट में छोटे उद्योग लगने शुरू हुए, तो वहां पर बनियान बनाने वाली एक स्थानीय फैक्ट्री शुरू हुई,लेकिन बस कुछ सालों में ही सब बर्बाद हो गया। फतुहा में विजय सुपर स्कूटर और बिहार की राजधानी पटना से 80 किलोमीटर दूर मढ़ौरा में ‘मॉर्टन’ चॉकलेट की कंपनी थी। रोहतास जिले का डालमियानगर 90 से पहले शक्कर, कागज, वनस्पति तेल, सीमेंट, रसायन और एस्बेस्टस उद्योग के लिए विख्यात था। सब बर्बाद हो चुका है। अब जब कहा जा रहा है कि हम विकास कर रहे हैं, तो सारे कारखाने खत्म हो गए हैं।” आंकड़े के मुताबिक नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में जाने वाले लोगों के मामले में बिहार उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है, और देश में बहुआयामी गरीबी दर सबसे अधिक बिहार राज्य में है।
पटना एलएन मिश्रा इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर चुके विक्की मिश्रा पुणे की नामचीन कंपनी में काम कर रहे हैं। वह कहते हैं, “बिहार में क्राइम की स्थिति पहले जैसी है। नहीं भी हो, तो मीडिया जो दिखाता है, वही लोग देख रहे हैं। कोई ऐसे राज्य में इन्वेस्ट करना क्यों चाहेगा, जो क्राइम और भ्रष्टाचार के तौर पर जाना जा रहा हो।” बिहार में पिछले 19 दिन में 60 हत्याएं हुई हैं, जिसमें अधिकतर व्यापारी ही हैं।
रिटायर्ड सरकारी अधिकारी अरुण कुमार झा कहते हैं, ” आजादी के वक्त बिहार में लगभग 33 चीनी मिलें हुआ करती थीं, लेकिन आज लगभग 10 चीनी मिलें ही ठीक हैं। ये वे मिलें हैं, जिनका स्वामित्व सरकार के पास नहीं, बल्कि प्राइवेट कंपनियों के पास है। देश के कुल चीनी उत्पादन में 40 फीसदी का योगदान देने वाला बिहार बमुश्किल चार फीसदी का योगदान दे रहा है।”
सरकार का प्रयास

बिहार सरकार के उद्योग विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 30 सितंबर 2023 तक 4713 करोड़ रुपये की लागत से 524 नई कंपनियां स्थापित हुई हैं। मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना के तहत 2055 लाभार्थियों को 81.13 करोड़ रुपए दिए गए हैं।
बिहार सरकार का उद्योग में प्रयास का असर जीविका, टेक्सटाइल और लेदर पॉलिसी और लघु एवं सूक्ष्म उद्योग में देखने को मिल रहा है। स्थानीय पत्रकार परमवीर सिंह कहते हैं कि, “बिहार में टेक्सटाइल और लेदर उद्योगों में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। जिस पर सरकार काम भी कर रही है। जीविका के माध्यम से गांव में कई सूक्ष्म उद्योग शुरू की गई है। एक सच यह भी है कि राज्य में सरकारी व्यवस्था में कमियां, माफियागिरी और बुनियादी ढांचे का अभाव निवेशकों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।” बिहार निर्यात प्रोत्साहन नीति 2024 में भी कपड़ा और टेक्सटाइल व्यवसाय को महत्वपूर्ण भूमिका में रखा गया है।
बिहार के मुजफ्फरपुर में देश की पहली सेमीकंडक्टर कंपनी ‘सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर प्राइवेट लिमिटेड’ के मालिक चंदन राज ने अक्टूबर 2024 में सोशल मीडिया पर लिखा “बिहार में सेमीकंडक्टर प्लांट चलाना मेरे लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। कंपनी शुरू करना मेरे जीवन का सबसे बुरा फैसला था।” हालांकि, बाद में यह ट्वीट हटा दिया गया। इस ट्वीट को उन्होंने क्यों हटाया, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
2020 के विधानसभा चुनावी रैली के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि, “जो राज्य समुद्र के किनारे हैं, वहीं बड़े उद्योग लग पाते हैं।” बिहार के अधिकांश लोग नौकरी की तलाश में दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़,पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जाते है। यह राज्य भी समुद्र से घिरा हुआ नहीं है। बिहार ने भी मालवहन को आसान बनाने के लिए रेल और सड़क मार्ग की सुविधाओं का पर्याप्त इस्तेमाल नहीं किया है। उस वक्त मुख्यमंत्री के इस बयान की काफी आलोचना की गई थी।

बिहार के लोगों को चुनाव में इस बात पर सवाल खड़ा करना चाहिए?
ब्लॉगर रंजन ऋतुराज कहते हैं,”आईटी और कंपनी तो अभी बिहार के लिए सपना है। अभी सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योग बिहार की सबसे बड़ी जरूरत है। इसके लिए कई चीजों की जरूरत है और उसमें राज्य में व्यापारिक माहौल के साथ-साथ बैंकों का सीडी रेशियो भी बढ़ना जरूरी है। जबकि आंकड़े के अनुसार पिछले 35 साल में क्रेडिट डिपाजिट रेशियो में कोई सुधार नहीं है। यानी की बिहार के लोग जितना पैसा बैंकों में डालते हैं उसका मात्र 40 % ही वापस ऋण में जाता है,जबकि विकसित राज्यों में यह बिहार का दोगुना है। जब तक व्यापारी या उद्यमी को सुलभता से धन मुहैया नहीं होगा,तब तक वो कैसे व्यापार या उद्यम करेगा ?
युवा हल्ला बोल से जुड़े प्रशांत बताते हैं कि, “2024 के लोकसभा चुनाव के बाद गया जी से लोकसभा सांसद जीतन राम। मांझी को मध्यम,लघु और सूक्ष्म उद्योग का मंत्रालय मिला है। चिराग जी को फूड प्रोसेसिंग भी मिला है। ललन सिंह को दुग्ध उत्पादन और मत्स्य मिला है। गिरिराज सिंह को टेक्सटाइल उद्योग मिला है। बिहार से राजनीति कर रहे यह केन्द्रीय मंत्री कैसे बिहार को आगे ले जा रहे हैं? कृषि उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट कितना लगाया गया है? बिहार के लोगों को चुनाव में इस बात पर सवाल खड़ा करना चाहिए?”
बिहार सरकार के द्वारा उद्योग विभाग, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा विभाग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति विभाग उद्यमियों के लिए मुख्यमंत्री उद्यमी योजना संचालित कर रहे हैं। इस योजना के माध्यम से सरकार की वित्तीय सहायता से कुछ उद्यमियों ने अपना काम अवश्य ही शुरू किया है, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। सरकारें बदलती रहीं, उद्योगों की स्थिति में सुधार के दावे किए जाते रहे, किंतु यथार्थ में जो उद्योग पहले से यहां थे उनकी भी स्थिति दिन-प्रतिदिन खस्ताहाल होती गई और अंतत: वे बंदी की कगार पर पहुंच गए। हालांकि सरकारी प्रयास का असर कुछ इस तरह देखने को मिल रहा है कि बिहार बिजनेस कनेक्ट 2024 में 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हुए। यह 2023 के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है।
