प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टेर्मर की मौजूदगी में गुरुवार को लंदन में दोनों देशों के बीच बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर होने के साथ ही दोनों देशों के रिश्ते औपनिवेशिक काल के बाद अब एक नए धरातल पर आ गए हैं। ऐसे समय जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमिकयों से दुनिया सहमी हुई है, इस समझौते को समझना जरूरी है। इस समझौते को दोनों पक्ष अपने अपने लिए लाभकारी बता रहे हैं, लिहाजा इसे जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी भी दोनों पर है। निस्संदेह इस समझौते के अमल में आने के बाद भारत के उत्पादों को ब्रिटेन में बाजार मिलेगा और वहां के उत्पाद यहां के उपभोक्ताओं तक पहुंचेंगे। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि इस समझौते से ब्रिटेन के साथ 99 फीसदी भारतीय निर्यात को लाभ होगा। उनका कहना है कि भारत के 95 फीसदी कृषि उत्पादों का शुल्क मुक्त निर्यात सुनिश्चित होगा। वास्तव में भारत अभी ब्रिटेन को इंजीनियरिंग सामान, रत्न और आभूषण, कपड़ा, रेडीमेड कपड़े, और कुछ खाद्य उत्पाद जैसे कि झींगा और मसाले के साथ ही फार्मास्यूटिकल्स, रसायन, और फर्नीचर का निर्यात करता है। वास्तव में इस समझौते की जरूरत भारत से कहीं अधिक ब्रिटेन को थी, जो ब्रेग्जिट के बाद एक नए बाजार की तलाश में था। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का यह बयान गौर करने लायक है, जिसमें वह इस समझौते को ब्रिटेन के पक्ष में एक बड़ी जीत बता रहे हैं। उन्होंने कहा है कि इससे पूरे ब्रिटेन में ब्रिटिश लोगों के लिए हजारों नौकरियां पैदा होंगी और हम मेहनती ब्रिटिश लोगों की जेबों में और अधिक पैसे डाल सकेंगे जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हो। ऐसे में यह देखना होगा कि जमीन पर यह समझौता संतुलन बनाए रखे।
यह दावा भी किया जा रहा है कि इससे मोदी सरकार की फ्लैगशिप योजना मेक इन इंडिया को गति मिलेगी। यह अच्छी बात है, लेकिन यह सुनिश्चित किए जाने की भी जरूरत है कि इससे एमएसएमई (मध्य, लघु और सूक्ष्म उद्योगों) के हित सुरक्षित रहें, क्योंकि यह क्षेत्र दो वजहों से आज भी चुनौतियों का सामना कर रहा है, एक तो मनमाने ढंग सी की गई नोटबंदी और दूसरा है जीएसटी की विसंगतियां।
समझौता ऐतिहासिक, सतर्कता जरूरी
