लेंस इंटरनेशनल डेस्क। चीन ने तिब्बत (tibet dam) में ब्रह्मपुत्र नदी (चीन में यारलुंग सांगपो नाम ) पर दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण शुरू कर दिया है। शनिवार को चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने न्यिंगची शहर में इस विशाल परियोजना की आधारशिला रखी। इस बांध की अनुमानित लागत 167.8 अरब डॉलर (लगभग 12 लाख करोड़ रुपये) है, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना बनाती है। यह परियोजना भारत और बांग्लादेश के लिए चिंता का विषय बन गई है क्योंकि यह बांध अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास बन रहा है और इसके पर्यावरणीय व भू-राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं।
क्या है यह बांध परियोजना ?
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार यह बांध हिमालय की एक विशाल घाटी में बनाया जा रहा है, जहां ब्रह्मपुत्र नदी तीखा मोड़ यानी सी शेप लेकर अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश की ओर बहती है। परियोजना में पांच सीढ़ीदार हाइड्रोलिक स्टेशन होंगे, जो हर साल 300 अरब किलोवाट-घंटे से ज्यादा बिजली पैदा करेंगे। यह बिजली 30 करोड़ लोगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकती है जो चीन के थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना अधिक है।
भारत और बांग्लादेश की चिंताएं
यह बांध तिब्बत पठार के भूकंप-प्रवण क्षेत्र में बन रहा है, जो पर्यावरण के लिए जोखिम भरा है। भारत और बांग्लादेश जो पहले से ही बाढ़, भूस्खलन और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, इस बांध से और खतरे की आशंका जता रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने 3 जनवरी 2025 को एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा था कि इस बांध से निचले इलाकों, खासकर अरुणाचल प्रदेश और असम, में पानी की आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण पर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस बांध के जरिए नदी के जलप्रवाह को नियंत्रित कर सकता है, जिससे सूखे या बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। बांग्लादेश में भी नदी के प्रवाह में कमी से कृषि, मछली पालन और पीने के पानी की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
भारत की जवाबी रणनीति
भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बना रहा है ताकि चीन की परियोजना के प्रभाव को कम किया जा सके। 2006 से भारत और चीन के बीच एक विशेषज्ञ स्तर तंत्र (ELM) के तहत ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जलप्रवाह डेटा साझा किए जाते हैं। पिछले साल दिसंबर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बातचीत में भी यह मुद्दा उठा था। भारत ने बार-बार पारदर्शिता और निचले इलाकों के हितों की रक्षा की मांग की है।
पहले भी उठ चुकी हैं चिंताएं
यह पहली बार नहीं है जब चीन की परियोजना से भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। 2015 में चीन ने तिब्बत में 1.5 अरब डॉलर की लागत से जम हाइड्रोपावर स्टेशन शुरू किया था, जिस पर भारत ने जल नियंत्रण और पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर सवाल उठाए थे। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह नया बांध न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता पर भी असर डाल सकता है।
क्या कहता है चीन?
चीन का दावा है कि यह परियोजना सुरक्षित है और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देती है। चीनी अधिकारियों का कहना है कि यह बांध स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देगा और तिब्बत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। हालांकि भारत और बांग्लादेश का मानना है कि इस परियोजना पर पारदर्शी जानकारी और क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत है।
यह बांध दक्षिण एशिया में पानी और भू-राजनीति के लिए एक नया टकराव बिंदु बन सकता है। भारत और बांग्लादेश को मिलकर क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने और जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इस बीच, भारत अपनी परियोजनाओं और कूटनीतिक प्रयासों के जरिए इस चुनौती का सामना करने की तैयारी कर रहा है।