नई दिल्ली। नीति आयोग ने चीनी कंपनियों के निवेश की राह में आने वाले उन नियमों को आसान बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिनके तहत चीनी कंपनियों द्वारा किए गए निवेश के लिए अतिरिक्त जांच की आवश्यकता होती है। समाचार एजेंसी रायटर्स ने तीन सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि इन नियमों के कारण कुछ बड़े सौदों में देरी हो रही है।
वर्तमान में, भारतीय कंपनियों में चीन द्वारा किए जाने वाले सभी निवेशों को भारत के गृह और विदेश मंत्रालय दोनों से सुरक्षा मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
नीति आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि चीनी कंपनियां बिना किसी मंजूरी के किसी भारतीय कंपनी में 24 फीसदी तक की हिस्सेदारी ले सकती हैं। रायटर्स का कहना है कि नाम न बताने की शर्त पर यह जानकारी दी गई है।
सूत्रों ने बताया है कि यह प्रस्ताव भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की योजना का हिस्सा है और इसकी निगरानी व्यापार मंत्रालय के उद्योग विभाग, वित्त और विदेश मंत्रालयों के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय द्वारा किया जा रहा है।
सरकार प्रस्ताव मानने को मजबूर नहीं
नीति आयोग के सभी विचारों को सरकार द्वारा आवश्यक रूप से स्वीकार नहीं किया जाता है, लेकिन यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब भारत और चीन अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, जो 2020 में सीमा पर हुई झड़पों के बाद से विशेष रूप से तनावपूर्ण हो गए हैं।
उद्योग विभाग चीन को ढील देने पर राजी
दो सूत्रों ने रायटर्स को बताया कि दरों में ढील देने का कोई भी फैसला महीनों बाद लिया जाएगा और यह फैसला राजनीतिक स्तर पर द लिया जाएगा। उन्होंने आगे बताया कि उद्योग विभाग दरों में ढील देने के पक्ष में है, लेकिन अन्य सरकारी निकायों ने अभी तक अपनी अंतिम राय नहीं दी है। नीति आयोग, मंत्रालयों, उद्योग विभाग और प्रधानमंत्री कार्यालय ने टिप्पणी के लिए रॉयटर्स के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया।