
हालिया ईरान और इजरायल के बीच तनाव ने एशियाई देशों के लिए कच्चे तेल व पेट्रोलियम आपूर्ति को गंभीर अनिश्चितता में डाल दिया है। ऐसे समय में जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार, डॉलर और अमरीकी टैरिफ से पहले ही तनाव में है, कच्चे तेल की कमी इस स्थिति को और प्रभावित कर सकती है।
भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत की 85 प्रतिशत जरूरतें आयात से पूरी करता है। इस समय आतंकवाद, लगातार गिरते रूपये के मूल्य और अमरीकी दबाव के बीच उलझा हुआ है। कच्चे तेल की कीमत 95–100 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। भारत का ‘ईंधन आयात खर्च’ तेजी से बढ़ रहा है। 2020 के मुक़ाबले रुपया ~76 रूपए प्रति डॉलर से गिरकर 2025 में ~83 रूपए प्रति डॉलर है। भारत अब 2020 की तुलना में प्रति बैरल 2.5 गुना अधिक रुपये चुका रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि अगर यह अस्थिरता अगले 12–18 महीनों तक बनी रही, तो भारत की जीडीपी वृद्धि 7% की दर से फिसलकर ~6.5% तक आ सकती है, जिससे रोज़गार और राजस्व दोनों प्रभावित होंगे।
जून 2025 की शुरुआत से, ईरान के परमाणु व सैन्य ठिकानों पर इजरायल के हवाई हमलों ने, संभावित हथियार कार्यक्रमों पर नई खुफिया जानकारियों के चलते, दोनों देशों के बीच तनाव को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है। आतंरिक सुरक्षा का हवाला देते हुए ‘होर्मुज बंदरगाह‘ को भविष्य में बंद करने की चेतावनी दी है। इससे दक्षिण और पूर्वी एशियाई देश सकते में हैं।
भारत के लिए कच्चे तेल के परिवहन मार्ग: दूरी समय एवं लागत
मार्ग | औसत दूरी (समुद्री मील में) | अनुमानित दूरी (किमी में) | यात्रा अवधि | मूल्य भिन्नता |
होर्मुज़ से भारत (मुंबई) | 1,500 nm | 2,800 किमी | 5–7 दिन | 1 बैरल = 159 लीटर $72.06 प्रति बैरल = 6,014 रू |
केप ऑफ गुड होप से भारत (मुंबई) | 8,500 nm | 15,700 किमी | 20–25 दिन | $74.46 प्रति बैरल, 6,177 रू प्रति बैरल अर्थात प्रति बैरल 163 रू की अतिरिक्त लागत |
स्रोत: पेट्रोलियम नियोजन एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ, पीपीएसी, 14 जुलाई 2025 |
होर्मुज़ गलियारा ईरान की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ने वाली एक संकरी समुद्री नाकेबंदी है, जिसके जरिए दुनिया का करीब 20 प्रतिशत कच्चा तेल अपने गंतव्य तक पहुँचता है। भारत के लिए यह एक लाईफ लाईन है, जिससे खाड़ी देशों से आयात किया गया तेल, तेजी और कम लागत से देश के पश्चिमी बंदरगाहों तक पहुंचता है।
यदि ईरान-इजरायल का यह टकराव लंबा चला, तो यह न केवल होर्मुज को बल्कि दूसरे समुद्री मार्गों को भी खतरे में डाल देगा। इससे भारत को अपने तेल टैंकर को दक्षिण अफ्रीका के रास्ते से मोड़ना पड़ सकता है। इसमें दो हफ़्ते की अतिरिक्त यात्रा और करीब 20% अधिक मालभाड़े का शुल्क बढ़ेगा (PPAC, 2025)।
क्यों करता है भारत कच्चा तेल आयात?
- भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, लेकिन उसकी घरेलू उत्पादन क्षमता महज़ 15% ज़रूरतें ही पूरी कर पाती है (पीपीएसी, 2025)।
- असम, गुजरात और मुंबई हाई के तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित भारत के स्वयं के तेल क्षेत्र अब परिपक्व हो चुके हैं, राष्ट्रीय मांग से कहीं कम उत्पादन कर रहे।
भारत का कच्चा तेल आयात व्यय- (2021–2025)
वित्त वर्ष | आयातित मात्रा (मिलियन टन) | कच्चे तेल की खरीद (अरब रू में) |
2021 | 226 Mt | 6,113.53 |
2022 | 230 Mt | 12,078.03 |
2023 | 232.7 Mt | 16,824.75 |
2024 | 232.5 Mt | 14,802.32 |
2025 | प्रतीक्षित | प्रतीक्षित |
स्रोत: भारतीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय– MoPNG/ पेट्रोलियम नियोजन एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ– PPAC तथा स्टैटिस्टा |
कच्चे तेल की कीमतों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक
विश्व स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें कई कारणों से प्रभावित होती हैं।
‘स्वीट क्रूड’ सबसे उच्च गुणवत्ता वाला और महंगा कच्चा तेल माना जाता है। जबकि निम्न श्रेणी के कच्चे तेल की कीमत कम होती है।
वैश्विक मांग के आधार पर निवेशक कच्चे तेल की मौजूदा कीमतों का आकलन करते हैं। अमेरिका, यूरोप और चीन कच्चे तेल के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की अंतरराष्ट्रीय मांग भी कच्चे तेल की कीमतों को प्रभावित करती है।
जो देश कच्चे तेल का उत्पादन नहीं करता, वह आयात करता है। इसे ऑर्गनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज, (OPEC) नियंत्रित करता है।
भारत के समक्ष हालिया चुनौती
1. कीमतों में उतार-चढ़ाव और महंगाई का खतरा
- जून 2025 में, होरमुज़ बंदरगाह बंद होने की अटकलों के बीच कच्चे तेल की कीमतें 69 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर करीब 78 डॉलर प्रति बैरल तक
- यदि ये संघर्ष लंबा खिंचता है, तो तेल की कीमतें 100–120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
- भारत का वार्षिक तेल आयात खर्च करीब 12–13 अरब डॉलर बढ़ेगा है, जीडीपी दर ~0.3% तक घट सकती है।
2. चोकपॉइंट्स से आपूर्ति में बाधाएं:
- होर्मुज बंदरगाह में चल रहे तनाव की वजह से टैंकरों की आवाजाही पर असर
- भारत के लिए यह 25 दिन से बढ़कर हो सकता है 41 दिन का
3. भू–राजनीतिक असर:
- भारतीय रिज़र्व बैंक पर दबाव
- RBI की ब्याज़ दरें घटाने की क्षमता को कर रहा सीमित (स्रोत: फाइनेंशियल टाइम्स)
क्या है भारत की रणनीतिक तैयारी?
- विकेन्द्रित आयात
- भारत अपनी तेल खरीद रणनीति को लगातार बदल रहा है,
- जून 2025 तक भारत ने रूस से $7–10 प्रति बैरल तक छूट के बीच लगभग 2.0–2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन (bpd) तक की खरीदी की
- पिछले 11 महीने में ये सबसे अधिक ख़रीद
- साथ ही भारत ने अमेरिकी कच्चे तेल का आयात ~280,000 bpd से बढ़ाकर ~439,000 bpd किया (स्रोत: मिंट एवं ईटीएनर्जीवर्ल्ड)
भारत द्वारा विभिन्न देशों से कच्चे तेल का आयात 2021-2025
वर्ष | सऊदी अरब | ईरान | रूस | अमेरिका | अन्य OPEC |
2021 | 18% | 0% | 2% | 5% | 58% |
2022 | 16% | 0% | 10% | 7% | 55% |
2023 | 15% | 0% | 28% | 8% | 49% |
2024 | 14% | 0% | 30% | 9% | 47% |
2025 | 13% | 0% | 33% | 10% | 44% |
स्रोत: पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय (2024), आईएमएफ बाह्य क्षेत्र रिपोर्ट (2024) पीपीएसी मासिक तेल रिपोर्ट (2025) आरबीआई बुलेटिन (2025), मिंट एवं ईटी एनर्जी वर्ल्ड (2025) |
- पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर):
भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर) पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन आईएसपीआरएल द्वारा संचालित किए जाते हैं, जो
- विशाखापत्तनम, मंगलूरु और पडूर में लगभग 5.33 मिलियन टन कच्चे तेल का संग्रहण
- मगर यह देश की कुल खपत के लिए सिर्फ 9–10 दिनों के लिए ही पर्याप्त
- सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए भारत तलाश रहा यूएई और अमेरिका के साथ समझौते कर अतिरिक्त एसपीआर क्षमता लीज
- ऊर्जा स्रोतों में बदलाव एवं नवीनीकरण:
- कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए पवन और सौर्य ऊर्जा
- 2025 के मध्य तक तक भारत में इन स्रोतों की हिस्सेदारी हो चुकी है लगभग 38%
- जिसमें राजस्थान के सोलर पार्क, गुजरात की पवन ऊर्जा परियोजनाएं और कई महत्वाकांक्षी हाइब्रिड प्रोजेक्ट शामिल
SWOT विश्लेषण
श्रेणी | सकारात्मक | नकारात्मक |
रणनीतिक | आपूर्ति का विविधीकरण (रूस, अमेरिका) लचीलापन बढ़ाता है | होरमुज़ बंद होने से 2 करोड़ बैरल प्रतिदिन (bpd) आयात पर खतरा |
आर्थिक | घरेलू तेल उत्पादकों के मार्जिन में वृद्धि; आपूर्तिकर्ताओं से सौदे में बेहतर शर्तें | बढ़ा हुआ आयात बिल, महंगाई, चालू खाते पर दबाव |
भू-राजनीतिक | अमेरिका, रूस और खाड़ी देशों के साथ संबंध मजबूत; कॉरिडोर योजनाएं जारी | क्षेत्रीय अस्थिरता से व्यापार व रणनीतिक गलियारा परियोजनाएं प्रभावित |
ऊर्जा संक्रमण | कीमतों में झटके नवीकरणीय ऊर्जा व एसपीआर विस्तार में निवेश को प्रोत्साहित करते हैं | जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ऊर्जा बदलाव को धीमा करती है; भंडारण की कमी से संघर्ष के दौरान ऊर्जा संकट का खतरा |
इजराइल–ईरान युद्ध ने ऊर्जा बाज़ार में स्थिरता को चुनौती देकर, भारत में कच्चे तेल की आपूर्ति को चिंताजनक बना दिया है। यह संघर्ष केवल क्षेत्रीय मामला नहीं, बल्कि ये राजस्व, जीडीपी, और विकास योजनाओं को प्रभावित करने जा रहा है।
भारत के लिए कूटनीति, आयात में विकेन्द्रीकरण और ऊर्जा नवीनीकरण जरूरी होंगे। आगामी दो तिमाही यह तय करेंगी कि नई दिल्ली और सरकार जोखिम को बदलने में कितने सफल होते हैं ।