रायपुर। जम्मू कश्मीर के जीएमसी जम्मू में ब्रेन हेमरेज से मरने वाले एक मरीज के परिजनों के महिला डॉक्टर की पिटाई के मामले में सोशल मीडिया में एक पोस्ट डॉक्टरों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) रायपुर के अध्यक्ष और छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी के चेयरमैन डॉ. कुलदीप सोलंकी ने एक्स में एक अजीबो गरीब पोस्ट कर दिया।
डॉ. सोलंकी ने X पर एक मीडिया रिपोर्ट पर रिप्लाई करते हुए लिखा, ‘सरकार ने मरीजों के रिश्तेदारों को डॉक्टरों पर हिंसा करने की; उनको लात मारने की इजाजत दी हुई है। हमारा भारत सरकार @PMOIndia @narendramodi से निवेदन है कि हम डॉक्टरों को भी मरीज के रिश्तेदार के सिर फोड़ने की उसके हाथ टांग तोड़ने की इजाजत संविधान में मुहैया कराए जो समाज चिकित्सकों की इज्जत नहीं कर सकता उसका विनाश निश्चित है।’
मैं पोस्ट पर कायम हूं : डॉ. सोलंकी
इस पोस्ट के संबंध में thelens.in ने डॉ. कुलदीप सोलंकी से बात की। डॉ. सोलंकी ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया में जो भी पोस्ट किया है, वह उस पर कायम हैं। जो समाज डॉक्टरों की इज्जत नहीं कर सकता, उस समाज की परवाह हम क्यों करें? समाज को समझ आना चाहिए कि हम जो काम करते हैं, उससे समाज का ही हित होता है। ऐसे में डॉक्टरों के साथ मारपीट करने वालों पर कड़े कानून के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।
पद की गरिमा धूमिल : डॉ. गुप्ता
IMA रायपुर के अध्यक्ष के इस पोस्ट को IMA के विभिन्न पदों पर रह चुके पूर्व अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता ने गलत ठहराया है। उन्होंने thelens.in से कहा कि आईएमए के अध्यक्ष का इस प्रकार प्रधानमंत्री के नाम टैग कर मरीजों के रिश्तेदार से मारपीट करने की आज्ञा मांगना हतप्रभ ही नहीं करता बल्कि पद की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए यह कथन काफी है। चिकित्सा परिसर में मरीज के परिवार और उनके साथ शामिल अन्य आसामाजिक तत्वों के बढ़ते हमलों से चिकित्सा समुदाय पहले से ही चिंतित है और इसका तर्क सम्मत कानूनी एवं सामाजिक पहलू तलाशने की कोशिश कर रहा है। अक्सर ही हो रहीं इस तरह की घटनाओं से पूरा स्वास्थ्य सेवा समुदाय असुरक्षित महसूस करता है और सरकार से मांग करता है कि उसे गंभीरता के साथ इस बढ़ रही प्रवृत्ति का कानूनी हल खोजना चाहिए। किसी सरकार ने किसी भी व्यक्ति या मरीज को कानून हाथ में लेने के लिए छूट नहीं दी है। ऐसे में हिंसा का जवाब हिंसा से देने की कोशिश करना, पढ़े लिखे और कुलीन वर्ग द्वारा कानून को हाथ में लेना, दुखद परिणीति है। चिकित्सा समुदाय के चिंतनशील सदस्यों को इस प्रकार के हिंसक विचारों को भी हतोत्साहित करना चाहिए। डॉक्टर जान बचाने के लिए होते हैं, चोट पहुंचाने के लिए नहीं! किसी डॉक्टर का ऐसा बयान परेशान करने वाला है।
भ्रामक जानकारी फैला रहे डॉक्टर : अधिवक्ता
इस संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता एल. के. शुक्ला ने कहा कि किसी पेशेवर डॉक्टर का इस तरह सोशल मीडिया में पोस्ट करना सही नहीं हैं। पोस्ट में डॉक्टर भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं कि सरकार ने डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की इजाजत दी है। ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि चिकित्सा सेवा कर्मियों और चिकित्सा सेवा संस्थानों के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम के लिए एक अधिनियम है, जिसमें इस तरह से चिकित्सकों या चिकित्सा संस्थानों पर हमले पर विशेष अधिकार दिए गए हैं। इस अधिनियम के तहत गैर जमानती कार्रवाई का प्रावधान है।
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