नई दिल्ली। पीएम मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े एक विवादित कार्टून मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को फटकार लगाई। सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कार्टून को “भड़काऊ” और “अपरिपक्व” करार दिया। मालवीय ने इस कार्टून को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया था, जिसके बाद उनके खिलाफ मध्य प्रदेश पुलिस ने मई में मामला दर्ज किया था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा 3 जुलाई को उनकी अग्रिम जमानत खारिज करने के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। कोर्ट ने मालवीय के व्यवहार पर असंतोष जताते हुए पूछा कि क्या वह अपनी पोस्ट हटाने को तैयार हैं।
मालवीय की वकील वृंदा ग्रोवर ने सहमति जताई और कहा कि पोस्ट हटा दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि मालवीय 50 वर्ष के हैं और उनकी टिप्पणियां भले ही कुछ लोगों को अप्रिय लगें, लेकिन वे अपराध की श्रेणी में नहीं आतीं। ग्रोवर ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हवाला देते हुए अंतरिम राहत की मांग की। हालांकि, जस्टिस धूलिया ने कहा, “इतनी उम्र होने के बावजूद कोई परिपक्वता नहीं। यह निश्चित रूप से भड़काऊ है।” कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई मंगलवार के लिए निर्धारित की है।
मालवीय के कार्टून में एक व्यक्ति को आरएसएस की वर्दी में झुके हुए दिखाया गया था, जिसमें उनके शॉर्ट्स नीचे खींचे गए थे और प्रधानमंत्री का कार्टून स्टेथोस्कोप के साथ इंजेक्शन लगाते हुए दिखाया गया था। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इसे “अपमानजनक”, “जानबूझकर किया गया” और “दुर्भावनापूर्ण” बताया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मालवीय ने भगवान शिव के नाम को अनावश्यक रूप से घसीटते हुए एक अपमानजनक टिप्पणी का समर्थन किया, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है।
कार्टून में क्या था, जिस पर हुआ विवाद
कार्टूनिस्ट मालवीय के खिलाफ आरएसएस कार्यकर्ता विनय जोशी की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 196 (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 299 (धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान), 302 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से कार्य), 352 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान) और 353 (उपद्रव) के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67ए के तहत भी आरोप लगाए गए हैं।
मालवीय ने अपनी याचिका में दावा किया कि यह कार्टून कोविड-19 महामारी के चरम के दौरान बनाया गया था, जब सोशल मीडिया पर वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता को लेकर भ्रामक जानकारी और डर फैल रहा था। उनका कहना है कि यह कार्टून एक व्यंग्यात्मक रचना थी, जो एक सार्वजनिक हस्ती के वैक्सीन से संबंधित बयानों पर सामाजिक टिप्पणी करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि एक अन्य सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने 1 मई को इस कार्टून को अपनी टिप्पणी के साथ पोस्ट किया था, जिसमें जाति जनगणना को लेकर एक बयान दिया गया था। मालवीय ने इसे केवल इसलिए साझा किया ताकि लोग उनके कार्टून को अपनी राय के साथ उपयोग कर सकें।
मालवीय का कहना है कि उनके कार्टून जनता के लिए हैं और लोग इन्हें अपनी राय के साथ उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने किसी भी मुद्दे पर अपनी टिप्पणी नहीं दी, बल्कि दूसरों की टिप्पणी को स्वीकार किया।