प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को देश भर के 47 शहरों में हुए रोजगार मेलों में शामिल 51 हजार युवाओं को वर्चुअली नियुक्ति पत्र प्रदान किए हैं, यह अपने आपमें एक गजब तमाशा है। इसके लिए बकायदा उन शहरों में अनेक केंद्रीय मंत्रियों के साथ पूरा सरकारी अमला जुटा हुआ था, ताकि युवाओं को सांकेतिक रूप में नियुक्ति पत्र दिए जा सकें! जबकि परीक्षा और इंटरव्यू वगैरह के बाद चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देना एक सामान्य प्रक्रिया है और ध्यान रहे यह अभ्यर्थियों पर एहसान नहीं है। बीते कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नक्शेकदम पर चलते हुए विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी अपने राज्यों में ऐसा दिखावा शुरू कर दिया है, जबकि पहले तो नियुक्ति पत्र डाक के जरिये ही घर पहुंच जाते थे। याद दिलाने की जरूरत नहीं कि अब देश में कोई ट्रेन भी शुरू होती है, तो उसे झंडी प्रधानमंत्री दिखाते हैं। वास्तव में रोजगार सृजन, रोजगार वितरण और फिर नियुक्ति पत्र इन तीनों को समझना होगा। सरकार का काम रोजगार पैदा करना और खाली पदों को भरना है, न कि नियुक्ति पत्र बांटना। 2023 के उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार के स्वीकृत 40 लाख पदों में से करीब साढे़ नौ लाख पद खाली थे, और अभी पता नहीं कि उनमें कितनी भर्तियां हुई हैं। बेकाबू होते निजी क्षेत्र की तो बात ही छोड़ दें, जहां कायदे-कानूनों की धज्जियां उड़ाने की कहानियां सामने आते रहती हैं। यही हाल राज्यों का है, जहां शिक्षको को शिक्षा कर्मी या शिक्षा मित्र बनाकर कम वेतन पर रखा जा रहा है। हालत यह है कि भर्तियों के लिए होने वाली परीक्षाओं के परचे तक लीक हो जा रहे हैं और जवाबदेही भी ठीक से तय नहीं की जा रही है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी अपना खासा वक्त नियुक्ति पत्र बांटने में खर्च कर रहे हैं, जबकि उनसे अपेक्षा तो यह थी कि उन्होंने हर साल जो दो करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया था, उसे जमीन पर उतारते।
जरूरत रोजगार पैदा करने की है

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