नई दिल्ली। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई आज 10 जुलाई को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होगी। बिहार में इस मामले पर विपक्षी दल विरोध में सड़क पर उतर चुके हैं। एक दिन पहले ही बिहार बंद बुलाया गया था, जिसमें इंडिया गठबंधन के दलों ने एकजुटता दिखाई थी।
याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अब विरोध की दशा दिशा तय होगी। इस बीच एक ऐसी याचिका भी दाखिल की गई है जिसमें मांग की गई है कि मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन को पूरे देश में चलाया जाए। यह याचिका अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। जिसमें उन्होंने तर्क दिया है कि केंद्र, राज्य और चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि केवल वास्तविक नागरिक ही वोट डालें, विदेशी नहीं।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा प्रस्तुत तर्कों पर विचार करते हुए 10 जुलाई को सुनवाई के लिए सहमति दी। सिब्बल ने पीठ से आग्रह किया कि निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया जाए। इस पर न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि मामले की सुनवाई गुरुवार को होगी।
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन का आदेश दिया था। इसके खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ सहित कई पक्षों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं ने आयोग के इस कदम को रद्द करने की मांग की है। राजद का तर्क है कि चुनाव से कुछ महीने पहले इस तरह की प्रक्रिया निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है।
मनोज झा ने दावा किया कि निर्वाचन आयोग का 24 जून का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता), अनुच्छेद 325 (जाति, धर्म या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बहिष्करण नहीं) और अनुच्छेद 326 (18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक भारतीय नागरिक का मतदाता पंजीकरण का अधिकार) का उल्लंघन करता है।