लेंस डेस्क। बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को राहत देते हुए सुझाव दिया कि आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आई कार्ड को दस्तावेज के तौर लिया जाए। कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से फिलहाल मना कर दिया। इस मामले की अगली सुनवाई अब 28 जुलाई को होगी। जबकि चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सर्वे का काम 25 जुलाई को ही पूरा कर लेगा।
चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन का आदेश दिया था। इसके खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ सहित कई पक्षों ने उच्चतम न्यायालय में १० याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं ने आयोग के इस कदम को रद्द करने की मांग की थी।
सुनावाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग तय नहीं कर सकता कि कौन देश का नागरिक है। कोर्ट ने कहा कि मतदाता पुनरीक्षण को बिहार चुनाव से नहीं जोड़ा जा सकता। कोर्ट ने आयोग को यह भी कहा कि मतदाताओं को पर्याप्त समय देने की जरूरत है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची को ठीक करने और गैर-नागरिकों के नाम हटाने के लिए गहन जांच में कोई खामी नहीं है। लेकिन कोर्ट ने सवाल उठाया, “आपने प्रस्तावित चुनाव से कुछ समय पहले ही यह कदम उठाने का निर्णय क्यों लिया? इसके पीछे का मकसद क्या है?”
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को यह अधिकार देना गलत है कि वे किसी की नागरिकता तय करें। उनका कहना था कि यह फैसला केंद्र सरकार को करना चाहिए, न कि चुनाव आयोग को। जवाब में कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर चुनाव आयोग को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का मौका दिया जाए।
चुनाव आयोग की दलीलें
चुनाव आयोग ने बताया कि फॉर्म अपलोड होने के बाद डेटाबेस तैयार हो जाएगा, जिससे प्रक्रिया को और आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं होगी। आयोग ने यह भी कहा कि मतदान केंद्रों की संख्या को 1500 से घटाकर 1200 करने का लक्ष्य है। इसके लिए आवास और पहचान पत्रों की जांच होगी। आयोग ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड केवल पहचान का प्रमाण है, न कि नागरिकता का।
नागरिकता और मतदाता योग्यता सत्यापन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची दी गई है, जिनका एक खास उद्देश्य है। आयोग के मुताबिक, अब तक 60% योग्य मतदाताओं ने फॉर्म भर दिया है और लगभग आधे फॉर्म अपलोड हो चुके हैं, जिसमें करीब 5 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया है।
आयोग ने दोहराया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, बल्कि केवल पहचान पत्र है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या 2025 में जिनका नाम मतदाता सूची में है, वे बने रहेंगे? आयोग ने जवाब दिया कि हां, लेकिन फॉर्म भरना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने पूछा कि अगर कोई फॉर्म नहीं भर पाता, तो क्या उसका नाम सूची में रहेगा?
आयोग ने यह भी कहा कि घर-घर सर्वे किया जाएगा। अगर कोई पहली बार घर पर नहीं मिलता, तो दूसरी और तीसरी बार भी प्रयास होगा। दस्तावेजों पर हस्ताक्षर घर से ही होंगे। इस काम में 1 लाख BLO और 1.5 लाख BLA लगे हैं, जो रोजाना 50 फॉर्म जमा करवा रहे हैं। आयोग के अनुसार, 2003 की मतदाता सूची में शामिल 3 करोड़ से अधिक मतदाताओं को सिर्फ फॉर्म भरना है।
कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका और चुनाव आयोग दोनों का उद्देश्य संविधान और कानून का पालन सुनिश्चित करना है। आयोग ने बताया कि कुछ याचिकाओं में दावा किया गया कि पिछले 20 साल में 1.1 करोड़ लोग मर चुके हैं और 70 लाख लोग पलायन कर गए हैं। इसे मान भी लिया जाए, तो 4.96 करोड़ में से केवल 3.8 करोड़ लोगों को ही फॉर्म भरना है।
जजों ने क्या कहा
सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने कहा कि जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, वह संविधान के दायरे में है, इसलिए इसे गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। इस पर शंकर नारायणन ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता प्रक्रिया के अधिकार को चुनौती नहीं दे रहे, बल्कि इसके अमल में लाए जा रहे तरीके को नियम-विरुद्ध मानते हैं।
कोर्ट ने चुनाव आयोग से सवाल किया कि यदि नागरिकता की जांच को इस प्रक्रिया में शामिल किया गया, तो यह जटिल बन जाएगा। कोर्ट ने सुझाव दिया कि नागरिकता जांच की प्रक्रिया को समय से पहले शुरू करना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यदि नागरिकता जांच के लिए किसी अर्ध-न्यायिक संस्था को शामिल किया गया, तो प्रक्रिया और भी जटिल हो सकती है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि नागरिकता को मतदाता सूची संशोधन से जोड़ने पर पूरी निर्वाचन प्रक्रिया लंबी और समय लेने वाली हो सकती है।
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