लेंस डेस्क। कांग्रेस और शशि थरूर के बीच एक बार फिर मतभेद उभर कर सामने आए हैं। इस बार मुद्दा आपातकाल है। 1975 के आपातकाल के फैसले पर घेरते हुए थरूर ने इस काला अध्याय बताया और नसबंदी के फैसले पर संजय गांधी की आलोचना की है।
मलयाली अखबार दीपिका में लिखे एक लेख में थरूर ने कहा कि आपातकाल के दौरान अनुशासन और व्यवस्था की आड़ में क्रूरता को अंजाम दिया गया। इसे केवल भारत के इतिहास का एक काला पन्ना मानकर नहीं छोड़ा जा सकता, बल्कि इसके सबक को गहराई से समझने की जरूरत है। उन्होंने इंदिरा गांधी और संजय गांधी के उस दौर के कार्यों पर सवाल उठाए।
कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और तिरुवनंतपुरम के सांसद थरूर ने लेख में कहा, “इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जबरन नसबंदी कार्यक्रम शुरू किया, जो एक बदनाम मिसाल बन गया। ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बलपूर्वक कार्रवाई और दबाव का सहारा लिया गया। नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों को निर्दयता से तोड़ा गया और उन्हें हटा दिया गया। इससे हजारों लोग बेघर हो गए, और उनके हितों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।”
लेख में थरूर ने कहा कि लोकतंत्र को हल्के में लेना ठीक नहीं। यह एक अनमोल धरोहर है, जिसे लगातार संरक्षित और मजबूत करना जरूरी है। इसे विश्व भर के लोगों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का भारत 1975 के भारत से कहीं अधिक आत्मविश्वास से भरा, विकसित और मजबूत लोकतंत्र वाला देश है। फिर भी, आपातकाल के सबक आज भी उतने ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं।
थरूर ने चेतावनी दी कि सत्ता का केंद्रीकरण, असहमति को कुचलना और संवैधानिक सुरक्षा को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति विभिन्न रूपों में फिर से उभर सकती है। कई बार इसे राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर सही ठहराने की कोशिश की जा सकती है। ऐसे में आपातकाल एक सख्त सबक है। लोकतंत्र की रक्षा करने वालों को हमेशा सजग रहना होगा।
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