द लेंस डेस्क। असम के धुबरी जिले में प्रस्तावित थर्मल पावर परियोजना को लेकर विरोध तेज हो गया है। इस परियोजना से करीब 1,400 परिवार प्रभावित हुए हैं, जिनमें ज्यादातर बंगाली भाषी मुस्लिम हैं। जहां इस परियोजना का काम चल रहा है, वह जगह धुबरी शहर से 55 किलोमीटर दूर है। परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाकर जमीन खाली कराया गया है। विपक्षी दलों ने इसे “गैरकानूनी और असंवैधानिक” करार दिया, तो नहीं प्रभावितों ने विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया है।
धुबरी जिला प्रशासन ने चापोर सर्कल के तहत तीन गांवों चारुवाबाखरा, संतोषपुर और चिरकुता में लगभग 3,500 बीघा सरकारी जमीन खाली कराने के लिए 50 जेसीबी मशीनें और बुलडोजर लगाए गए थे। द टेली ग्राफ की खबर के अनुसार, खाली की गई जमीन असम पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एपीडीसीएल) को सौंपी जाएगी, जो थर्मल पावर परियोजना के लिए निजी कंपनियों को शामिल करने के लिए निविदाएं जारी करने की योजना बना रही है। हालांकि निविदा प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन स्थानीय लोग और कार्यकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि यह जमीन संभवत अदानी समूह को पट्टे पर दी जाएगी।
मंगलवार को जमीन खाली कराने के अभियान से पहले ही लगभग 90 प्रतिशत परिवारों ने अपने घर खाली कर दिए थे, लेकिन चारुवाबाखरा में तनाव बढ़ गया। वहां ग्रामीणों ने दो जेसीबी मशीनों को नुकसान पहुंचाया और पथराव किया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
स्थानीय प्रशासन का दावा है कि यह अभियान शांति पूर्ण ढंग से शाम 6 बजे तक पूरी हो गई। अधिकारियों ने बताया कि 400 परिवारों को मुआवजा राशि दी जा चुकी है, जबकि 197 भूमि पट्टाधारकों को लोक निर्माण विभाग के मूल्यांकन के बाद मुआवजा दिया जाएगा। बेदखली की प्रक्रिया अप्रैल के मध्य में शुरू हुई थी, जिसके बाद दावों और आपत्तियों का निपटारा किया गया। पिछले सप्ताह अंतिम नोटिस जारी किए गए थे, जिसमें अतिक्रमणकारियों को सोमवार तक स्वेच्छा से जमीन खाली करने के लिए तीन दिन का समय दिया गया था। अधिकारियों ने कहा कि इस कार्रवाई पर कोई अदालती रोक नहीं थी।
विपक्षी नेता और रायजोर दल के अध्यक्ष अखिल गोगोई ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कुछ समय के लिए हिरासत में ले लिया गया। उन्होंने बेदखली को अल्पसंख्यकों पर हमला करार देते हुए इसे असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया। उन्होंने दावा किया कि गुवाहाटी हाई कोर्ट के तीन मौजूदा स्थगन आदेश हैं। हालांकि, जिला प्रशासन ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा कोई आदेश प्रभावी नहीं है।
गोगोई ने यह भी आरोप लगाया कि न तो स्थानीय एआईयूडीएफ विधायक और न ही धुबरी के कांग्रेस सांसद ने प्रभावित परिवारों का दौरा किया या उनकी मदद की। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “ये लोग 40 साल से यहां रह रहे हैं। कुछ लोगों ने अधिक समय मांगा, कुछ मुआवजे से असंतुष्ट थे, और कुछ को अभी तक कुछ नहीं मिला है।”
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि 90 प्रतिशत लोग स्वेच्छा से चले गए। उन्होंने दोहराया कि सरकारी और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील जमीन को वापस लेने के लिए ऐसे अभियान जारी रहेंगे।
सत्तारूढ़ भाजपा ने सरकार का समर्थन करते हुए इस अभियान को असम के मूल निवासियों की पहचान और जमीन की रक्षा के लिए जरूरी बताया। पार्टी ने एक बयान में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर “बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों” को वोट बैंक की राजनीति के लिए इस क्षेत्र में बसाने का आरोप लगाया।
हाल ही में नलबारी, लखीमपुर, गोलपारा और कामरूप मेट्रो जिलों में भी बेदखली अभियान चलाए गए हैं। राजनीतिक विरोध के बावजूद, सरकार ने संकेत दिया कि “लंबे समय तक सार्वजनिक कल्याण और पर्यावरण संरक्षण” के हित में बेदखली नीति जारी रहेगी।
कांग्रेस सांसद राकिबुल हुसैन ने बेदखली को “अमानवीय और असंवैधानिक” बताया और कहा कि “सरकार स्पष्ट रूप से अदानी के इशारों पर चल रही है।” उन्होंने कहा कि 24 जून को एक अदालती स्थगन आदेश के बावजूद यह कार्रवाई की गई थी, और अगली सुनवाई 22 जुलाई को निर्धारित है।