द लेंस। हिंदी सिनेमा के महान अभिनेता और फिल्मकार गुरुदत्त ( GURUDATT ) की 100वीं जयंती है। मात्र 39 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों से सिनेमा के इतिहास में गहरी छाप छोड़ी। बेंगलुरु में जन्मे गुरुदत्त की खासियत थी उनकी कहानियों की गहराई, गीतों का सुंदर निर्देशन और रोशनी-छाया का कमाल का इस्तेमाल। उनकी फिल्में जैसे ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ आज भी लोगों के दिलों में बसी हैं। कलकत्ता में प्रारभिक पढ़ाई करने के कारण बंगाली संस्कृति से उनका इतना लगाव था कि उन्होंने अपना नाम गुरुदत्त रख लिया। वे मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल उनके कजिन थे क्योंकि उनकी नानी और श्याम की दादी सगी बहनें थीं।

गुरुदत्त की जिंदगी जितनी उनकी फिल्मों में रंगीन थी उतनी ही असल में दुख भरी थी। मुंबई में संघर्ष के दिनों में गुरु दत्त पुणे में प्रभात फिल्म कंपनी में कॉरियोग्राफर और सहायक निर्देशक के रूप में शामिल हो गए। यहीं उनकी मुलाकात देव आनंद से हुई, जो बाद में उनके करीबी दोस्त बन गए। देव आनंद ने 1951 में उन्हें ‘बाज़ी’ को निर्देशित करने के लिए चुना, जो उस समय बहुत सफल रही। 1954 में गुरु दत्त ने ‘आर पार’ में अभिनय और निर्देशन किया । इसके बाद उन्होंने मधुबाला के साथ ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ का निर्देशन और इसी फिल्म में अभिनय किया। लेकिन 1959 में ‘कागज के फूल’ के फ्लॉप होने से वे बहुत दुखी हुए। आज यही फिल्म उनकी सबसे शानदार कृति मानी जाती है, पर तब इस फिल्म ने उन्हें इतना तोड़ दिया था कि उन्होंने फिर कभी निर्देशन नहीं किया। 1953 में उन्होंने गायिका गीता रॉय से शादी की लेकिन प्यार में धोखा और शराब की लत ने उनकी जिंदगी मुश्किल कर दी।

गुरुदत्त ने 2 बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, साल 1956 में ‘प्यासा’ बनाते समय उन्होंने पहली बार प्रयास किया जिसे परिवार ने गंभीरता से नहीं लिया। जबकि दूसरी बार नींद की गोलियों के ओवरडोज़ लेने से 3 दिन तक उनकी हालत गंभीर थी, फिर धीरे-धीरे उनकी हालत बिगड़ती गई और 10 अक्टूबर 1964 में सिर्फ 39 साल की उम्र में वे दुनिया छोड़ गए। उनकी फिल्मों का दर्द ‘वक्त ने किया क्या हसीन सितम’ जैसे गाने में झलकता है जिसे गीता दत्त ने गाया। अभिनेता और फिल्म निर्माता के रूप में गुरुदत्त की कई फिल्म भाग्यवाद और निराशा से भरी हुई थीं। अपनी मृत्यु से कुछ दिनों पहले वह ‘बहारें फिर भी आएंगी’ फिल्म बना रहे थे और इसमें अभिनय भी कर रहे थे लेकिन यह फिल्म अंततः 1966 में रिलीज हुई। इस फिल्म को धर्मेन्द्र को मुख्य भूमिका में लेकर पुनः फिल्माया गया।
