नेशनल ब्यूरो। दिल्ली
बैंकिंग, बीमा, डाक से लेकर कोयला खनन, राजमार्ग और निर्माण क्षेत्र में लगे 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों ने बुधवार को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल पर जाने का फैसला किया है, जिससे देशभर में जरूरी सेवाएं बाधित हो सकती हैं।
Trade union strike : 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगियों के एक मंच ने सरकार की “मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों का विरोध करने के लिए इस आम हड़ताल का आह्वान किया है। एक बयान में यूनियनों के संयुक्त मंच ने “राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को एक बड़ी सफलता” बनाने का आह्वान किया है, और कहा है कि इस हड़ताल में औपचारिक और अनौपचारिक तथा असंगठित क्षेत्रों के मजदूर हिस्सा लेंगे। यूनियनों द्वारा तैयारी पूरी कर ली गई है।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अमरजीत कौर ने कहा, “हड़ताल में 25 करोड़ से ज्यादा मजदूरों के हिस्सा लेने की उम्मीद है। देश भर में किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे।” हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि हड़ताल के कारण बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, कारखाने, राज्य परिवहन सेवाएं प्रभावित होंगी।
श्रम मंत्री को सौंपा था 17 सूत्रीय मांगपत्र
ट्रेड यूनियनों के सामूहिक मंच ने अपने ताजा बयान में कहा कि पिछले साल मंच ने श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को 17 सूत्री मांगों का एक चार्टर सौंपा था।
इसमें आगे कहा गया है कि सरकार पिछले 10 वर्षों से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं कर रही है और श्रम बल के हितों के विपरीत निर्णय ले रही है, सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करने, यूनियनों की गतिविधियों को बाधित करने और ‘व्यापार करने में आसानी’ के नाम पर नियोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए चार श्रम संहिताओं को लागू करने का प्रयास कर रही है।
मंच ने यह भी आरोप लगाया कि आर्थिक नीतियों के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है, आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, मजदूरी में कमी आ रही है, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी नागरिक सुविधाओं में सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती हो रही है, तथा इन सबके कारण गरीबों, निम्न आय वर्ग के लोगों के साथ-साथ मध्यम वर्ग के लोगों के लिए असमानताएं और दुख बढ़ रहे हैं।
फोरम ने कहा कि सरकार ने देश के कल्याणकारी राज्य के दर्जे को त्याग दिया है और वह विदेशी तथा भारतीय कॉरपोरेट्स के हित में काम कर रही है, तथा यह उसकी नीतियों के जोरदार क्रियान्वयन से स्पष्ट है।
चार श्रम कानूनों का पुरजोर विरोध
बयान में कहा गया है कि संसद द्वारा पारित चार श्रम संहिताओं का उद्देश्य ट्रेड यूनियन आंदोलन को दबाना और पंगु बनाना, काम के घंटे बढ़ाना, श्रमिकों के सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार, हड़ताल के अधिकार को छीनना और नियोक्ताओं द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन को अपराधमुक्त करना है।
इसमें कहा गया है, “हम सरकार से बेरोजगारी दूर करने, स्वीकृत पदों पर भर्ती करने, अधिक नौकरियों का सृजन करने, मनरेगा श्रमिकों के कार्य दिवस और पारिश्रमिक में वृद्धि करने तथा शहरी क्षेत्रों के लिए समान कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए ईएलआई (रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन) योजना लागू करने में व्यस्त है।”
इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि सरकारी विभागों में युवाओं को नियमित नियुक्तियां देने के बजाय सेवानिवृत्त लोगों को भर्ती करने की नीति अपनाई जा रही है, जैसा कि रेलवे, एनएमडीसी लिमिटेड, इस्पात क्षेत्र और शिक्षण संवर्गों में देखा जा रहा है। यह नीति देश के विकास के लिए हानिकारक है, जहां 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है और बेरोजगारों की संख्या 20 से 25 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में सबसे अधिक है।
खेतिहर मजदूर भी साथ
एनएमडीसी लिमिटेड और अन्य गैर-कोयला खनिज, इस्पात, राज्य सरकार के विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के यूनियन नेताओं ने भी हड़ताल में शामिल होने के लिए नोटिस दिया है। यूनियन नेताओं ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक यूनियनों के संयुक्त मोर्चे ने इस हड़ताल को समर्थन दिया है और ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर लामबंदी करने का फैसला किया है।
ट्रेड यूनियनों ने इससे पहले 26 नवंबर, 2020, 28-29 मार्च, 2022 और पिछले साल 16 फरवरी को इसी तरह की देशव्यापी हड़ताल की थी।