नेशनल ब्यूरो। दिल्ली
बिहार में विशेष मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) के लिए उचित प्रक्रिया की कमी और अनुचित रूप से कम समयसीमा का हवाला देते हुए गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। ADR ने चुनाव आयोग की इस कवायद को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी है और चेतावनी दी है कि इससे “लाखों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।”
अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से 4 जुलाई को दायर अपनी याचिका में ADR ने कहा, “वर्तमान रिट याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है, जिसमें भारत के प्र चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा जारी 24.06.2025 के आदेश और संचार को रद्द करने की मांग की गई है, जिसमें बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर आदेश) का निर्देश दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21 ए के प्रावधानों का उल्लंघन है।”
इस बात की ओर ध्यान दिलाते हुए कि “बिहार एक ऐसा राज्य है जहां गरीबी और पलायन की दर बहुत अधिक है, जहां कई लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे दस्तावेजों तक पहुंच नहीं है,” इसने कहा, “अनुमान के अनुसार, 3 करोड़ से अधिक मतदाता और विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों (जैसे एससी, एसटी और प्रवासी श्रमिक) को एसआईआर आदेश में उल्लिखित कठोर आवश्यकताओं के कारण मतदान से बाहर रखा जा सकता है।”
इसमें कहा गया है कि, “बिहार से प्राप्त वर्तमान रिपोर्ट, जहां एसआईआर पहले से ही चल रही है, से पता चलता है कि गांवों और हाशिए के समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास वे दस्तावेज नहीं हैं, जो उनसे मांगे जा रहे हैं।”
किस बात का है डर, नागरिकों पर जिम्मेदारी डालने का आरोप
याचिका में कहा गया है, “यदि 24.06.2025 काआदेश रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने से वंचित किया जा सकता है, जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।”
इसमें कहा गया है कि दस्तावेजीकरण से जुड़ी आवश्यकताओं के लिए उचित प्रक्रिया की कमी और साथ ही संशोधन के लिए अनुचित रूप से कम समयसीमा है। इस अभ्यास के परिणामस्वरूप लाखों वास्तविक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।”
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एडीआर ने कहा कि चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश ने “मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर नागरिकों पर डाल दी है। इसमें आधार या राशन कार्ड जैसे पहचान दस्तावेजों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों के मतदान से वंचित होने की संभावना और बढ़ गई है।”
इसमें कहा गया है, “एसआईआर प्रक्रिया के तहत अपेक्षित घोषणा अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें मतदाता को अपनी नागरिकता तथा अपने माता या पिता की नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है, अन्यथा उसका नाम मसौदा मतदाता सूची में नहीं जोड़ा जाएगा तथा उसे हटाया भी जा सकता है।”
लाखों नागरिकों के पास दस्तावेज नहीं
याचिका में कहा गया है कि “ईसीआई ने नवंबर 2025 में होने वाले राज्य चुनावों के करीब बिहार में एसआईआर आयोजित करने के लिए अनुचित और अव्यवहारिक समयसीमा जारी की है। लाखों नागरिक हैं जिनके पास एसआईआर आदेश के तहत आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं, ऐसे कई लोग हैं जो दस्तावेज हासिल करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन निर्देश में उल्लिखित छोटी समयसीमा उन्हें समयावधि के भीतर इसे प्रस्तुत करने से रोक सकती है।”
संशोधन की कवायद जरूरी, लेकिन इस बार खड़े हो रहें हैं सवाल
एडीआर के अनुसार, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) भारत के निर्वाचन आयोग को “कारणों को दर्ज करने के लिए” मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का निर्देश देने की अनुमति देती है, लेकिन बिहार के लिए दिए गए निर्देश में “किसी भी साक्ष्य या पारदर्शी कार्यप्रणाली द्वारा समर्थित दर्ज कारणों का अभाव है, जिससे यह मनमाना हो जाता है और इस प्रकार इसे रद्द किया जा सकता है।”
इसमें कहा गया है कि, “बिहार या देश के किसी भी अन्य राज्य का एसआईआर एक सकारात्मक कदम है, लेकिन जिस तरह से चुनाव आयोग ने बिहार जैसे चुनावी राज्य में एसआईआर के संचालन का निर्देश दिया है, उसने सभी हितधारकों, विशेषकर मतदाताओं की ओर से सवाल खड़े कर दिए हैं।”
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