द लेंस डेस्क। दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और छत्तीसगढ़ के कुख्यात सलवा जुड़ूम को चुनौती देने वाले मामले में याचिकाकर्ता रहीं नंदिनी सुंदर ने छत्तीसगढ़ के विशेष पुलिस महानिदेशक और स्तंभकार आर के विज के द हिन्दू में प्रकाशित एक एक्सप्लेनर लेख पर कड़ा एतराज किया है।
विज ने द हिन्दू में प्रकाशित एक्सप्लेनर, क्या सुप्रीम कोर्ट किसी राज्य द्वारा पारित किसी अधिनियम को रोक सकता है? में मई, 2025 में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की चर्चा की है, जिसमें उसने नंदिनी सुंदर और अन्य की करीब 13 साल पुरानी एक याचिका को खारिज कर दिया।
नंदिनी सुंदर ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर विज को टैग करते हुए लिखा है कि यह बेहद खराब जानकारी के साथ लिखा गया लेख है। यही नहीं, इसे प्रकाशित करने वाले अंग्रेजी अखबार द हिन्दू के संपादकीय विवेक पर सवाल करते हुए सुंदर ने इसे एकतरफा लेख तक करार दिया।

सलवा जुड़ूम से जुड़ा है मामला
दरअसल यह सारा मामला छत्तीसगढ़ में 2005 में माओवादियों के खिलाफ चलाए गए कथित जनजागरण अभियान सलवा जुड़ूम से जुड़ा हुआ है। स्वस्फूर्त बताए गए इस अभियान के कारण बस्तर में नक्सली और आदिवासियों के बीच सीधे टकराव की स्थिति बन गई थी। वास्तव में सलवा जुडूम के पीछे राज्य की तत्कालीन रमन सिंह सरकार, केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा सब एक साथ थे।
इस अभियान के दौरान अप्रशिक्षित आदिवासी जवानों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) बनाकर हथियार थमा दिए गए थे।
नंदिनी सुंदर ने एक्स पर लिखा है कि विज ने कथित रूप से यह जहमत भी नहीं उठाई कि वे उनके सुप्रीम कोर्ट में दिए गए बयान को देख लेते। इसके साथ ही सुंदर ने हाल ही में लिखे गए अपने एक ब्लॉग का लिंक भी शेयर किया है, जिसमें सलवा जुड़ूम और उसके बाद के घटनाक्रम के ब्योरे हैं।
सलवा जुड़ूम को लेकर जब हिंसक खबरें आ रही थीं, उसी दौरान 2007 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर कर सलवा जुड़ूम और राज्य सरकार को चुनौती दी गई थी। इनमें सलवा जुड़ूम को राज्य प्रायोजित सशस्त्र निगरानी कहा गया। इनमें से एक याचिका नंदिनी सुंदर, रामचंद्र गुहा और ईएएस सरमा ने दायर की थी। दूसरी याचिका करतम जोगा, दूधी जोगा और पूर्व विधायक मनीष कुंजाम की ओर से दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों याचिकाओं को एक साथ कर दिया था।
इस बीच, सलवा जुड़ूम की आड़ में गांवों को जलाने और लोगों को मारने की खबरें आने लगीं। पांच जुलाई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिसाहिक फैसले में सलवा जुड़ूम पर रोक लगा दी और एसपीओ को अवैध करार दिया।
लेकिन उसी साल 2011 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम पारित कर दिया। इसे एसपीओ की भर्ती को वैधता बनाने वाले कदम की तरह देखा गया।
अवमानना याचिका खारिज

2012 में नंदिनी सुंदर और उनके साथियों ने छत्तीसगढ़ के इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की याचिका दायर की। इसी याचिका को मई, 2025 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया है। आर के विज ने अपने एक्सप्लेनर में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की चर्चा करते हुए लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो आधार हैं, एक तो यह कि राज्य सरकार ने कोर्ट के सारे दिशा-निर्देशों का पालन किया। दूसरा यह कि कोर्ट ने कहा है कि हर विधानसभा को कानून पारित करने का अधिकार है, जब तक कि संविधान का अल्ट्रा वायरस न करार दिया जाए।
नंदिनी सुंदर ने एतराज किया है कि आर के विज ने उन मुद्दों की चर्चा तक नहीं कि जिनके बारे में उन्होंने कोर्ट को दिए गए जवाब में विस्तार से लिखा है। सुंदर का आरोप है कि विज ने तोते की तरह केवल सरकार की बातों की रंटत लगाई।
नंदिनी सुंदर की पोस्ट को लेकर हमने छत्तीसगढ़ के पूर्व विशेष पुलिस महानिदेशक आर के विज से बात की। विज का कहना है कि उन्होंने नंदिनी सुंदर की पोस्ट अभी देखी नहीं है, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा कि द हिन्दू के एक्सप्लेलन में उन्होंने कोर्ट के फैसले का जिक्र किया है। उसके ब्योरे वही हैं, जो फैसले में हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नंदिनी सुंदर की पोस्ट देखने के बाद ही वह कुछ कह पाएंगे।