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Home » कोल्हापुरी चप्पल विवाद: Prada कंपनी ने मानी अपनी गलती, कारीगरों को मिलेगी पहचान?

दुनिया

कोल्हापुरी चप्पल विवाद: Prada कंपनी ने मानी अपनी गलती, कारीगरों को मिलेगी पहचान?

Poonam Ritu Sen
Last updated: July 1, 2025 11:50 am
Poonam Ritu Sen
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PRADA KOLHAPURI CHAPPAL VIVAD
PRADA KOLHAPURI CHAPPAL VIVAD
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इटली का मशहूर फैशन ब्रांड प्राडा ( PRADA KOLHAPURI CHAPPAL VIVAD) हाल ही में चर्चा में रहा, जब उसने अपने स्प्रिंग/समर 2026 मेन्स फैशन शो में भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों* से मिलते-जुलते सैंडल पेश किए। इन सैंडलों को देखकर भारत में हंगामा मच गया, क्योंकि प्राडा ने शुरू में इन्हें सिर्फ ‘चमड़े के सैंडल’ कहा, बिना कोल्हापुर के कारीगरों या इसकी सांस्कृतिक विरासत का जिक्र किए। सोशल मीडिया और कारीगर समुदायों के विरोध के बाद, प्राडा ने आखिरकार माना कि उनके डिज़ाइन कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित थे।

खबर में खास
प्राडा ने क्या किया?प्राडा ने क्या कहा?कारीगर और सरकार की मांग

क्या है कोल्हापुरी चप्पल?

कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र और कर्नाटक के कारीगरों द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित चमड़े के जूते हैं, जिनका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। ये चप्पलें कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, सतारा, बेलगाम और अन्य इलाकों में बनती हैं। इन्हें भैंस के चमड़े से बनाया जाता है, जिसमें सुंदर नक्काशी, ब्रेडिंग और पारंपरिक डिज़ाइन (जैसे हाथी, पक्षी) होते हैं। ये न केवल टिकाऊ हैं, बल्कि समय के साथ पैरों के आकार में ढल जाती हैं। 2019 में कोल्हापुरी चप्पलों को GI टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिला। यह टैग सुनिश्चित करता है कि केवल इन क्षेत्रों के कारीगर ही इसे ‘कोल्हापुरी चप्पल’ कह सकते हैं।

प्राडा ने क्या किया?

22 जून 2025 को मिलान फैशन वीक में प्राडा ने अपने नए पुरुषों के कलेक्शन में कुछ सैंडल दिखाए। ये सैंडल कोल्हापुरी चप्पलों जैसे थे , जिसमें खुले पंजे, टी-स्ट्रैप और चमड़े की बनावट, लेकिन प्राडा ने इन्हें सिर्फ ‘लेदर सैंडल’ कहा, बिना भारत या कोल्हापुर का नाम लिए। सोशल मीडिया पर खबर फैली कि प्राडा इन सैंडलों को 1.2 लाख रुपये में बेच रहा है, जबकि असली कोल्हापुरी चप्पलें भारत में 500-4,000 रुपये में मिलती हैं। कारीगरों को तो प्रति जोड़ी सिर्फ 250-400 रुपये मिलते हैं। इससे लोग भड़क गए। उन्होंने प्राडा पर सांस्कृतिक चोरी का आरोप लगाया, यानी भारतीय विरासत को बिना इजाजत या श्रेय के इस्तेमाल करने का। खासकर ‘चमार समुदाय’, जो इन चप्पलों को बनाता है, उनकी अपनी मेहनत और पहचान की अनदेखी बताया।

भारत में क्यों हुआ हंगामा?

कोल्हापुर और बेलगाम के हजारों कारीगर, जो पीढ़ियों से ये चप्पलें बनाते हैं, उन्होंने कहा कि प्राडा ने उनकी कला को बिना श्रेय दिए चुराया। कारीगरों ने मांग की कि प्राडा उन्हें पहचान दे और बिक्री का कुछ हिस्सा उनके साथ साझा करे। कुछ नेताओं ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इस मामले में कार्रवाई की मांग की। यह कारीगरों की आजीविका और भारत की सांस्कृतिक विरासत पर हमला है। कुछ लोगों ने प्राडा को “चप्पल चोर” कहा और सरकार से सख्त कदम उठाने को कहा। महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स ने प्राडा को पत्र लिखकर मांग की कि वे:

  1. कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरणा लेने की बात स्वीकार करें।
  2. कारीगरों के साथ सहयोग करें या उन्हें मुआवजा दें।
  3. नैतिक फैशन नियमों का पालन करें।

दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर भी कई प्रतिक्रियाएं सामने आयी |

प्राडा ने क्या कहा?

27 जून 2025 को प्राडा ने जवाब दिया। उनके अधिकारी लोरेंजो बर्टेली ने MACCIA को लिखा:

  • हम मानते हैं कि हमारे सैंडल कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित हैं। हम भारतीय कारीगरी के महत्व को समझते हैं।
  • सैंडल अभी सिर्फ डिज़ाइन चरण में हैं और इन्हें बेचने का फैसला नहीं हुआ है।
  • प्राडा ने 1.2 लाख रुपये की कीमत के दावे को खारिज किया।
  • कंपनी ने भविष्य में भारतीय कारीगरों के साथ काम करने और उनकी कला को सम्मान देने की इच्छा जताई।

कानूनी और नैतिक सवाल

कोल्हापुरी चप्पलों का GI टैग भारत में तो सुरक्षा देता है, लेकिन विदेशों में डिज़ाइन की नकल रोकना मुश्किल है। प्राडा ने “कोल्हापुरी” नाम का इस्तेमाल नहीं किया, इसलिए कानूनी कार्रवाई कमजोर हो सकती है। LIDCOM और कर्नाटक की LIDKAR (GI टैग के सह-धारक) कानूनी रास्ते तलाश रहे हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका की तैयारी चल रही है। प्राडा का शुरू में चुप रहना और श्रेय न देना वैश्विक फैशन में नैतिकता पर सवाल उठाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रांडों को पारंपरिक डिज़ाइनों का इस्तेमाल करते समय उनकी जड़ों को सम्मान देना चाहिए।

कारीगर और सरकार की मांग

कोल्हापुर के कारीगरों ने कहा है कि प्राडा ने उनकी कला को दुनिया तक पहुंचाया, लेकिन अब उन्हें इसका फायदा मिलना चाहिए। वे चाहते हैं कि प्राडा उनके साथ सहयोग करे, डिज़ाइन को बेहतर बनाने में मदद करे, और बिक्री का कुछ हिस्सा (जैसे 10%) कारीगरों को दे।

प्राडा पहला ब्रांड नहीं है जिसने भारतीय डिज़ाइनों की नकल की। पहले भी गुच्ची ने साड़ी को “गाउन” कहा। हर्मेस ने साड़ी को नया सिल्हूट बताया। ज़ारा और H&M ने अजरख प्रिंट का इस्तेमाल बिना श्रेय दिए किया। डायर ने अंगरखा को यूरोपीय ट्विस्ट के साथ पेश किया। ये मामले बताते हैं कि वैश्विक ब्रांड अक्सर भारतीय संस्कृति का फायदा उठाते हैं, बिना कारीगरों को सम्मान या लाभ दिए।

यह विवाद दिखाता है कि भारतीय हस्तशिल्प और सांस्कृतिक विरासत को बचाना कितना जरूरी है। कोल्हापुरी चप्पलें सिर्फ जूते नहीं, बल्कि कारीगरों की मेहनत और भारत की पहचान का प्रतीक हैं। प्राडा की माफी एक शुरुआत है, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब कारीगरों को उनकी कला का सही सम्मान और आर्थिक फायदा मिलेगा।

TAGGED:INDIAN CULTUREKOLHAPURI CHAPPALMAHRASHTRA GOVERNMENTPRADA COMPANYPRADA KOLHAPURI CHAPPAL VIVADTop_News
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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