रायपुर | कश्मीरियत, कश्मीरी दोस्ती और मोहब्बत के दस्तावेज ‘दास्तान-ए -कश्मीर’ ( kashmiriyat ) का जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर में विमोचन किया, रायपुर के कथाकार शिव ग्वालानी इस किताब के लेखक है | 24 जून को इस किताब का विमोचन किया गया जिस पर डॉक्टर अब्दुल्ला ने कहा की किताब सही मायने में कश्मीर में समझाने का दस्तावेज है कॉलोनी ने इसमें कश्मीरी एट कश्मीरी दोस्ती कश्मीरी मोहब्बत का बड़ी ही संजीदगी के साथ उकेरा है|

फारूक अब्दुल्ला को रायपुर निवासी शिव ग्वालानी ने उनकी लिखी किताब ‘दास्ताने कश्मीर’ भेंट की, इस किताब में कश्मीरियत, कश्मीरी दोस्ती और मोहब्बत के दस्तावेज समेटे गए हैं, इस किताब पर फारूक ने कहा की यह किताब सही मायने में कश्मीर को समझने का दस्तावेज है|

बुक विमोचन के दौरान शिव ग्वालानी ने साल 1985 में किया अपने कश्मीर यात्रा का जिक्र किया जहां उनकी दोस्ती एक कश्मीरी मुस्लिम शफीक से हो गई थी, एक लोकल कश्मीरी भाई शफीक ने उन्हें घुमाया था और हिंदू तीर्थ स्थान को घूम लेने के बाद जब उसने कहा कि चलिए अब आप मुसलमानों के तीर्थ स्थान भी घूम लीजिए तब शिव ग्वालानी और उनका परिवार चरारे शरीफ, जामा मस्जिद समेत सभी मुस्लिम तीर्थ स्थान भी घूम थे। फिर साल 1985 के बाद वापस रायपुर लौट के बाद उस कश्मीरी भाई शफीक से शिव ग्वालानी की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी और 1989 तक वह एक दूसरे को पत्र लिखकर भेजा करते थे और उनकी अंतिम चिट्ठी 1989 में उनको मिली थी जिसमें शफीक ने जिक्र किया था कि यहां के हालात बहुत खराब है भगवान ने चाहा तो हम जरूर मिलेंगे और इसके बाद बातचीत बंद हो गई।

इस वाकये को 40 साल गुजरने के बाद अब शिव और कश्मीरी दोस्त शफीक की कोई खोज खबर नहीं मिली और रायपुर के शिव अब अपने कामकाज में और अपनी दुनिया में खो चुके थे और इसी कश्मीरियत की दास्तान को साल 2017 में उन्होंने अपनी किताब ‘ दास्तानें-कश्मीर’ में लिखा लेकिन किताब लिखने के बाद शिव ग्वालानी को लगा कि क्या सिर्फ एक किताब लिखने से बात बन जाएगी तो उन्होंने बाद में फिर से कश्मीर जाने का फैसला किया, सभी लोगों ने वहां जाने का विरोध किया क्योंकि कुछ ही समय पहले वहां आर्टिकल 370 हटाया गया था, लेकिन उन्होंने हर नहीं मानी और कश्मीर घूमने वापस गए डल झील के किनारे एक होटल में रुके, और तीसरे दिन वहां की लोकल पुलिस एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीम ने उन्हें पकड़ लिया और रात भर इंटेरोगेट किया और काफी पूछ परख के बाद उन्हें छोड़ा गया जब उन्होंने बताया कि वह अपने दोस्त शफीक से मिलने आए हैं, फिर शिव कॉलोनी ने 40 साल पुरानी एक तस्वीर के सहारे अपने दोस्त को 40 साल बाद खोजना जारी रखा और साल 2022 में उनकी मुलाकात अपने दोस्त शफीक से हो गई। जब जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने उनकी यह किताब पढ़ी तब उन्होंने शिव ग्वालानी से कहा की दोस्त इस जंग ए दुनिया में तुम मोहब्बत की दास्तान लेकर कैसे पहुंच गए, और इसके बाद फारूक अब्दुल्ला ने इस कहानी को सभी लोगों को बताया और शिव ग्वालानी के बेटी के शादी में शामिल होने साल 2023 में रायपुर भी आए।

रायपुर लौटने पर शिव ग्वालानी ने कहा की पहलगाम हमले के बाद जब उन्होंने पहलगाम का दौरा अपने पत्नी के साथ किया और सबसे पहले उन्होंने हिंदू भाइयों को श्रद्धांजलि अर्पित की, फिर वहां से 25 किलोमीटर नीचे एक गांव में जाकर आपकनाथ नामक गांव जंगलों, पगडंडियों और पहाड़ों के रास्ते होकर गुजरे, इसके बाद में आदिल हुसैन नामक व्यक्ति के घर पहुंचे जिन्होंने हिंदुओं को बचाते हुए अपनी जान गंवाई थी और आतंकवादियों ने चार गोलियां उनके शरीर के आर पार कर दी थी, जब वह उनसे मिलने गए तो उनके पूरे परिवार वाले और गांव वाले भी सामने आ गए और उन्हें यह महसूस हुआ कि उनसे मिलने पूरा देश आ पहुंचा है, और उन्होंने आदिल को भी श्रद्धांजलि दी, जब श्री शिव कॉलोनी ने आदिल के अब्बू से यह कहा कि ‘ उनका जो बेटा शहीद हुआ है ऐसी मौत तो अल्लाह ताला हर किसी को दे क्योंकि ऐसे लोगों को तो स्वर्ग में जगह मिलती है’ यह सुनते ही पूरा गांव फफक कर रो पड़ा. क्योंकि उनके बेटे के जनाजे में सभी बड़ी शख्सियत आई थी और उन्हें घर बनाकर देने का आश्वासन भी दिया गया है लेकिन एक हिंदू भाई अपनी पत्नी के साथ मिलकर उनके श्रद्धांजलि देने आया है ये देखकर आदिल के अब्बू भावुक हो उठे. शिव ग्वालानी ने यह भी कहा कि हम उनका बेटा तो नहीं लौटा सकते लेकिन पूरे देशवासियों की तरफ से हम आपके बेटे को श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी बहादुरी पर गर्व महसूस करते हैं।
