महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर उठे सवालों का स्पष्ट जवाब अभी तक नहीं आ पाया था कि बिहार में भी मतदाता सूची ठीक करने की प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। चुनाव से ठीक दो महीने पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान की शुरुआत चुनाव आयोग ने कर दी है। इस अभियान की टाइमिंग और प्रकृति को लेकर विपक्षी दल, विशेषकर आरजेडी और टीएमसी ने गंभीर सवाल उठाए हैं। बूथ स्तर पर घर-घर जाकर मतदाताओं की नागरिकता, जन्म तिथि, जन्म स्थान और माता-पिता से जुड़े दस्तावेजों की जांच और शपथ पत्र की मांग को विपक्षी दल राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को चुपके से लागू करने की साजिश करार दे रहे हैं। यह चुनाव आयोग की साख पर सवाल भी है। चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था होने के नाते सभी राजनीतिक दलों के लिए निष्पक्षता का दावा करता है। फिर भी बिहार में इस अभियान की शुरुआत और इसकी प्रक्रिया ने संदेह को जन्म दिया है। आयोग ने असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी 2026 के चुनावों से पहले समान समीक्षा की घोषणा भी की है। लेकिन बिहार में चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची अपेक्षाओं के मुताबिक ठीक हो पाएगी, इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह सवाल इसलिए भी है कि अंतिम सूची जारी होने के बाद उस पर आने वाली आपत्तियों के समाधान के लिए कितना समय मिलेगा। क्योंकि इसके बाद बिहार में समय से विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भी चुनाव आयोग को ही उठानी है। क्या यह वास्तव में मतदाता सूची को शुद्ध करने का प्रयास है, या कुछ और? चुनाव आयोग को चाहिए कि वह इस प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करे और विपक्ष के सवालों का तथ्यपरक जवाब दे। मतदाता सूची का पुनरीक्षण लोकतांत्रिक प्रक्रिया का जरूरी हिस्सा है, लेकिन भरोसे में लिए बगैर इस प्रक्रिया को लागू करना हजम होने वाली बात नहीं है। निष्पक्षता और विश्वास बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग को तत्काल स्पष्टता लानी होगी।
चुनाव आयोग की साख पर सवाल

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