रायगढ़। जिले के तमनार विकासखंड अंतर्गत ग्राम मुड़गांव में गुरुवार को जिला प्रशासन ने पुलिस बल के साथ मिलकर पहले गांव को सील कर दिया, इसके बाद जंगलों की कटाई शुरू कर दी, जिसका विरोध स्थानीय ग्रामीणों सहित विधायक और कई जनप्रतिनिधियों ने किया, जिसके बाद उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।
यहां के जंगल की कटाई गारे पेलमा सेक्टर 2 कोल ब्लॉक के लिए की जा रही है, जिसे कोयला मंत्रालय द्वारा महाराष्ट्र विद्युत जनन कंपनी (महाजेनको) को आवंटित किया गया है, जिसका एमडीओ (माइन डेवलपर ऑपरेटर) के लिए अडानी इंटरप्राइजेज के साथ महाजेनको कंपनी द्वारा समझौता किया गया है। इस मामले को लेकर शनिवार को भी ग्रामीणों ने विरोध किया।

यह कोल ब्लॉक 2024 में काफी कानूनी लड़ाई के बाद महाजेनको को आवंटित किया गया, जिसके बाद कोल ब्लॉक प्रारंभ करने और जमीन समतलीकरण के लिए यहां स्थित जंगलों की कटाई की जानी है। गारे पेलमा सेक्टर 2 के अंतर्गत 14 गांवों के 2245 परिवार प्रभावित होने वाले हैं। यह कोल ब्लॉक 2583.48 हेक्टेयर तक फैला हुआ है। इसमें 214.87 हेक्टेयर जमीन सुरक्षित वन भूमि है।
इस कोल ब्लॉक से 23.6 मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष निकाला जाना है। इस तरह यह कोल ब्लॉक व्यापक स्तर पर जल, जंगल, जमीन सहित वहां रहने वाले परिवारों को प्रभावित करने वाला है, यही कारण है कि स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधि इस कोल ब्लॉक का विरोध कर रहे हैं। इनके विरोध को देखते हुए जिला प्रशासन ने भारी पुलिस बल के साथ गुरुवार की तड़के सुबह गांव की घेराबंदी कर जंगलों की कटाई की प्रक्रिया शुरू की।

ग्रामीणों के विरोध के बीच हो चुकी है पब्लिक हियरिंग
जब से इस कोल कंपनी ने तमनार क्षेत्र में कदम रखा है, तब से ही स्थानीय स्तर पर उसका विरोध होने लगा। इस कंपनी की पहली पब्लिक हियरिंग 2017 में प्रस्तावित हुई, लेकिन विधानसभा चुनाव को देखते हुए रद्द कर दी गई। इसके बाद 2018 में फिर से इस कंपनी की पब्लिक हियरिंग की तारीख दी गई, लेकिन उस समय भी इसे स्थगित करना पड़ा। अंततः 27 सितंबर 2019 को तमनार के डोलनारा गांव में इसकी पब्लिक हियरिंग भारी विरोध के बीच की गई।
स्थानीय लोगों ने इस सुनवाई में हिस्सा ही नहीं लिया और सभी गांवों के लोग इकट्ठा होकर आयोजन स्थल के बाहर नारे लगाते रहे। पब्लिक हियरिंग की कार्यवाही में बहुत कम लोगों ने हिस्सा लिया था। यही कारण है कि जब इस कंपनी को 11 जून 2022 को पर्यावरणीय मंजूरी मिली, तो यह मामला एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में चला गया। डेढ़ साल चली सुनवाई के बाद एनजीटी ने 15 जनवरी को पर्यावरणीय मंजूरी, जो वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृत की गई थी, उसे समाप्त कर दिया।

एनजीटी ने महाजेनको को फिर से टीओआर (टर्म्स ऑफ रेफरेंस) और ईआईए (एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट) रिपोर्ट जमा करने को कहा। इस आदेश के खिलाफ कंपनी सुप्रीम कोर्ट भी गई, लेकिन उसने 15 मार्च 2024 को अपनी अपील वापस ले ली। 20 मार्च को महाजेनको ने ईएसी (एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी) में मंजूरी के लिए फिर से आवेदन किया और 1 जुलाई को इसे मंजूरी मिल गई, बाद में वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी 13 अगस्त 2024 को इसे मंजूरी दे दी। इस फैसले के खिलाफ स्थानीय लोग फिर से एनजीटी चले गए, जहां इस मामले में सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है।
इसमें अब भी कई कानूनी अड़चनें हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सविता रथ, जो लगातार कई वर्षों से यहां के मुद्दों पर संघर्षरत हैं, का कहना है कि कंपनी द्वारा इस तरह अचानक काम शुरू करना एफआरए (फॉरेस्ट राइट्स एक्ट) का उल्लंघन है, क्योंकि इसके तहत यहां कई वनाधिकार पट्टों के दावों का निराकरण किया जाना बाकी है। इसके अलावा, यहां सामुदायिक वनाधिकार पट्टे भी दिए गए हैं, ऐसे में जंगलों की इस तरह रातोंरात कटाई शुरू कर देना स्थानीय वनवासियों के हितों पर कुठाराघात है।

लगातार उठ रही है आवाज
वहीं, इस क्षेत्र के लोगों के हित में सतत आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एवं केज (छत्तीसगढ़ एसोसिएशन फॉर जस्टिस एंड इक्वलिटी) के सदस्य डिग्री चौहान ने बताया कि यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत है। इस पूरे क्षेत्र को पुलिस छावनी में बदलकर दो सौ एकड़ भौगोलिक क्षेत्र में फैले जंगल को महाजेनको एवं संचालक अडानी कंपनी के हित के लिए उजाड़ने के खिलाफ प्रभावित जन समुदाय की लोकतांत्रिक आवाज को कुचल दिया गया। लगभग एक सौ लोगों को हिरासत में ले लिया गया। इस मामले में कानून का शासन, लोगों और समुदायों के वन अधिकार दावों का पूर्ण निराकरण किए बगैर उनकी वन भूमियों से जबरदस्ती बेदखली की कार्यवाही कर, आदिवासी अधिकारों को संरक्षण देने में विफल साबित हुआ है।
जन चेतना के राजेश त्रिपाठी ने कहा कि कंपनी ने छत्तीसगढ़ पेसा कानून का पालन नहीं किया है। जिन ग्राम सभाओं द्वारा कंपनी के प्रस्ताव का अनुमोदन होना बताया गया है, उन ग्राम पंचायतों ने सूचना के अधिकार के तहत हमें लिखित जानकारी दी है कि उस तारीख में ग्राम सभा द्वारा ऐसे किसी प्रस्ताव का अनुमोदन नहीं किया गया है, बल्कि कई ग्राम पंचायतों ने खदान स्थापना के विरोध में प्रस्ताव भी किया है। राजेश ने यह याद दिलाया कि इसी तरह के प्रकरण में ओडिशा के नियमगिरि और बस्तर के नंदराज का आबंटन कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
कांग्रेस के साथ विधायक मौके पर पहुंचे, लगाया पेड़
इस मामले में राजनीति भी तेज हो गई है। शुक्रवार को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने सात विधायकों के साथ वहां पहुंचकर प्रतीक के तौर पर एक पेड़ भी लगाया। उन्होंने सरकार पर आम लोगों के हितों को अनदेखा करने और उद्योगपतियों के हितों को साधने का आरोप लगाया।
गुरुवार को जब जंगल कटाई का काम शुरू करने के लिए पुलिस और प्रशासन पहुंचे, तब भी स्थानीय कांग्रेस विधायक ने विरोध किया और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। शुक्रवार को रायगढ़ जिले के खरसिया विधायक उमेश पटेल, विद्यावती सिदार, लालजीत राठिया, उतरी गणपत जांगड़े, कविता प्राण लहरे सहित तमाम नेता व कार्यकर्ताओं के साथ वहां रैली निकाली गई।
इस मामले पर अडानी इंटरप्राइजेज और जिला प्रशासन का पक्ष लेने के लिए हमने उन्हें कॉल और मैसेज किया गया था लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया। जवाब आते ही उनका पक्ष भी इस खबर में अपडेट किया जाएगा।
:: रायगढ़ से स्वतंत्र पत्रकार अंक पांडेय की रिपोर्ट ::